
वृंदावन: अक्षय तृतीया के पावन अवसर पर, भक्तों को वर्ष में केवल एक बार ठाकुर बांकेबिहारी के चरणों के दर्शन का सौभाग्य प्राप्त होता है। इस दिन, आराध्य के चरण जो वर्षभर पोशाक में छिपे रहते हैं, भक्तों के लिए प्रकट होते हैं। इस परंपरा के पीछे एक रहस्यमयी कथा है, जिसकी शुरुआत स्वामी हरिदास से हुई थी।
स्वामी हरिदास, जो बांकेबिहारी के प्राकट्यकर्ता हैं, उन्होंने अपने लाड़ले ठाकुरजी के साथ गहरा संबंध स्थापित किया और उनकी सेवा में अपना जीवन समर्पित कर दिया। एक समय था जब ठाकुरजी की सेवा के लिए धन का अभाव था, लेकिन ठाकुरजी के चमत्कार से हर दिन उनके चरणों में एक स्वर्ण मुद्रा प्रकट होने लगी, जिससे स्वामीजी उनकी सेवा जारी रख सके।
ऐसे शुरू हुई चंदन के लेप की परंपरा
इस दिन ठाकुरजी सुबह तो राजा के भेष में चरण दर्शन देते हैं और उनके चरणों में चंदन का सवा किलो वजन का लड्डू भी रखा जाता है। मंदिर सेवायतों की मानें तो ये चंदन का लड्डू भी इसी मान्यता के तौर पर रखा जाता है, कि स्वर्ण मुद्रा के दर्शन भक्तों को करवाए जा सकें। सुबह राजा के भेष में चरण दर्शन देने के बाद शाम को ठा. बांकेबिहारी के पूरे श्रीविग्रह पर चंदन लेपन होता है और आराध्य अपने भक्तों को सर्वांग दर्शन देते हैं।ये परंपरा जो स्वामी हरिदास जी द्वारा लगभग 500 वर्ष पहले शुरू की गई थी। इस दिन, ठाकुर जी के चरणों में पाजेब और चंदन के गोले रखे जाते हैं, और उनके पूरे शरीर पर चंदन का लेप किया जाता है। मान्यता है कि आज से करीब 500 वर्ष पूर्व स्वामी हरिदास जी ने गर्मी के प्रकोप से अपने आराध्य को बचाने के लिए प्रभु बांके बिहारी जी के श्री विग्रह पर चन्दन का लेप किया था। तभी से ये परंपरा चलती आ रही है। अक्षय तृतीया से ही उनकी पंखा सेवा शुरू हो जाती है।यह प्रथा गर्मी सेहत देने और भक्तों को पुण्य प्रदान करने के लिए है।
इस दिन की मान्यता यह भी है कि त्रेता युग की शुरुआत और नर-नारायण का अवतार बद्रीनाथ धाम में हुआ था। मान्यता है कि अक्षय तृतीया के दिन जो पुण्य बद्रीनाथ धाम में नारायण के दर्शन करके प्राप्त होता है, वही पुण्य वृंदावन के बांके बिहारी के दर्शन से प्राप्त होता है।अक्षय तृतीया के दिन कमाए गए पुण्य का कभी क्षय नहीं होता।
अक्षय तृतीया के दिन, भगवान के चरणों के चंदन का लेप भक्तों को प्रसाद के रूप में वितरित किया जाता है, जिसे वे बड़े आनंद के साथ ग्रहण करते हैं। इस दिन भगवान को सत्तू के लड्डू, शरबत, ककड़ी और आमरस का भोग भी लगाया जाता है। यह दिन भक्ति और परंपरा का संगम है, जो वृंदावन की धार्मिक विरासत को दर्शाता है।
ठाकुर जी के पूरे श्रीविग्रह पर चंदन का लेप
वृंदावन में अक्षय तृतीया के दिन ठाकुर जी के पूरे श्रीविग्रह पर चंदन का लेप इसलिए किया जाता है क्योंकि यह परंपरा गर्मी के मौसम में ठाकुर जी को शीतलता प्रदान करने और उनके श्रीविग्रह की रक्षा करने के लिए शुरू की गई थी। स्वामी हरिदास जी ने यह परंपरा शुरू की थी, और यह आज भी उनकी भक्ति और समर्पण का प्रतीक है। चंदन का लेप न केवल शीतलता प्रदान करता है बल्कि यह भक्तों के लिए एक पवित्र प्रसाद के रूप में भी माना जाता है। इस प्रकार, यह परंपरा धार्मिक आस्था और श्रद्धा का एक अभिन्न अंग बन गई है।
ठाकुर जी के श्रीविग्रह की सजावट
ठाकुर जी के श्रीविग्रह की सजावट में विभिन्न प्रकार के श्रृंगार और अलंकरण शामिल होते हैं। इनमें आमतौर पर चंदन, फूल, वस्त्र, आभूषण, और मुकुट आदि शामिल होते हैं। विशेष अवसरों पर, जैसे कि अक्षय तृतीया, ठाकुर जी के श्रीविग्रह को और भी भव्यता से सजाया जाता है, जिसमें चंदन का लेप, पाजेब, और अन्य शुभ चिह्न शामिल होते हैं। यह सजावट भक्तों की आस्था और श्रद्धा का प्रतीक है और इसे बहुत ही श्रद्धा और समर्पण के साथ किया जाता है।
मान्यता है कि अक्षय तृतीया के दिन भगवान के चरणों पर चंदन का लेप लगाने से भक्तों को विशेष कृपा प्राप्त होती है। इस दिन भगवान के चरणों के दर्शन करने से भक्तों को धन-धान्य की कमी नहीं होती और उनके सभी संकट मिट जाते हैं। यह भी माना जाता है कि बांके बिहारी जी के दर्शन करने वाले व्यक्ति का जीवन सफल हो जाता है। इस प्रकार, बांके बिहारी जी के चरणों के दर्शन का बहुत बड़ा महत्व है।