
रिचर्ड एल्बर्ट अपनी प्रसिद्ध पुस्तक में बाबा नीम करोली के जीवन से जुड़ी एक अद्भुत घटना का वर्णन करते हैं। बात सन् 1943 की है, जब बाबा फतेहगढ़ में एक अत्यंत साधारण, वृद्ध दंपति के घर अतिथि बनकर ठहरे थे। उस दंपति का इकलौता पुत्र सेना में था, और युद्ध के उन दिनों में, वे उसकी सुरक्षा को लेकर निरंतर गहरी चिंता में डूबे रहते थे।
अपनी सीमित सामर्थ्य के अनुसार, उन्होंने बाबा के रात्रि विश्राम के लिए एक चारपाई और एक साधारण सा कंबल दिया। बाबा उसी पर लेट गए, किंतु पूरी रात वे बेचैनी से कराहते रहे, जैसे कोई असीम पीड़ा सह रहे हों। बाबा की यह दशा देखकर वृद्ध दंपति का हृदय और भी व्यथित हो उठा। उन्हें अपनी निर्धनता और बाबा का ठीक से सत्कार न कर पाने का गहरा मलाल सालने लगा, वे सोचने लगे कि शायद उनके बिछावन में कोई कमी रह गई।
प्रातःकाल जब बाबा उठे, तो उन्होंने उस कंबल की एक गठरी बनाई और दंपति को आदेश दिया, “इस गठरी को खोलो मत। इसे सीधे जाकर नदी में प्रवाहित कर दो।” फिर उन्होंने आश्वस्त करते हुए कहा, “ऐसा करने के बाद तुम्हारा पुत्र महीने भर के भीतर सकुशल घर लौट आएगा।”
बाबा के कथन में दृढ़ विश्वास रखते हुए, जब वृद्ध दंपति उस कंबल की गठरी को ले जाने लगे, तो उन्हें वह आश्चर्यजनक रूप से भारी प्रतीत हुई। उसमें से ऐसी आवाजें आ रही थीं, मानो भीतर लोहे के टुकड़े आपस में टकरा रहे हों। यद्यपि उनके मन में कौतूहल जागा, तथापि बाबा के आदेश का मान रखते हुए, उन्होंने उसे बिना खोले नदी की धारा में विसर्जित कर दिया।
ठीक एक महीने बाद, जैसा बाबा ने कहा था, उनका पुत्र युद्ध के मैदान से जीवित और सुरक्षित लौट आया! उसकी वापसी पर घर में खुशियाँ छा गईं। जब बेटे ने अपनी आपबीती सुनाई, तो सभी के रोंगटे खड़े हो गए। उसने बताया कि एक भीषण मुठभेड़ में दुश्मन की टुकड़ी ने उसे और उसके साथियों को चारों ओर से घेर लिया था। उस हमले में उसके सभी साथी वीरगति को प्राप्त हो गए थे, केवल वही एकमात्र चमत्कारिक ढंग से बच निकला था, जैसे कोई अदृश्य शक्ति उसकी रक्षा कर रही हो।
तब उस वृद्ध दंपति को बाबा नीम करोली की रात्रि की पीड़ा और उस भारी कंबल का रहस्य समझ आया। उन्हें आभास हुआ कि बाबा ने उनके पुत्र पर आने वाले सभी प्राणघातक संकटों और प्रहारों को अपनी योगशक्ति से उस कंबल में समेट लिया था और उसे नदी में प्रवाहित करवाकर उनके पुत्र की रक्षा की थी। यह घटना बाबा की असीम करुणा, उनके भक्तों के प्रति गहरे वात्सल्य और उनकी अगम्य दिव्य शक्तियों का एक और जीवंत प्रमाण बन गई।