
कलियुग के प्रारंभिक काल में मालवा क्षेत्र में एक धर्मनिष्ठ और कृष्णभक्त राजा राज्य करता था, राजा इंद्रद्युम्न। राजा का दैनिक नियम था — दिन की शुरुआत श्रीकृष्ण की पूजा से और अंत रात्रि में श्रीकृष्ण को सुलाकर ही विश्राम लेना। भक्ति उनके जीवन का सार थी।एक रात्रि राजा को एक रहस्यमयी स्वप्न आया। उन्होंने देखा कि वे किसी शांत और सुंदर सरोवर के किनारे ध्यानमग्न हैं। तभी एक कौवा वहाँ आकर कांव-कांव करता है और जल पीते ही वह एक दिव्य पुरुष में परिवर्तित हो जाता है। इसके बाद आकाश से वैकुंठ का एक रथ आता है और उस दिव्य पुरुष को साथ ले जाता है। तभी राजा ने एक नीले प्रकाश से दीप्त एक गुफा देखी। स्वप्न इतना जीवंत था कि नींद खुलते ही राजा बेचैन हो गया।
राजा ने राज्य के श्रेष्ठ ज्योतिषी और विद्वानों को बुलवाया। चित्रकारों से उस स्थान का चित्र बनवाया। कई दिनों की खोजबीन के बाद एक वृद्ध ज्योतिषी ने कहा — “यह नीलांजन क्षेत्र हो सकता है, जिसे शास्त्रों में दिव्य सरोवर और गुफा के रूप में वर्णित किया गया है। श्रीकृष्ण आपको कोई इशारा दे रहे हैं।” राजा ने उसी क्षण व्रत का संकल्प लिया — जब तक श्रीकृष्ण स्वयं संकेत न दें, वे शैय्या का त्याग करेंगे और निरंतर भक्ति करेंगे। ध्यान के दौरान राजा को समुद्र तट दिखा। लहरें उठीं और जैसे ही शांत हुईं, एक भव्य मंदिर का दृश्य प्रकट हुआ। राजा ने इसे भगवान का संकेत माना और मंदिर निर्माण प्रारंभ कराया।लेकिन आश्चर्य! हर बार समुद्र की लहरें आकर निर्माण कार्य को तहस-नहस कर देती थीं। छह बार ऐसा हुआ। कोष समाप्त हो रहा था, प्रजा भी चिंतित होने लगी।
एक दिन राजा ने देखा कि एक वानर समुद्र तट पर निर्भय होकर क्रीड़ा कर रहा है। उसी क्षण समुद्र की लहरें आईं, लेकिन वह वानर अडिग रहा। तभी राजा को झटका सा लगा — क्या वह भगवान का फिर संकेत था? राजा ने तुरंत श्रीकृष्ण का स्मरण किया। तभी उन्हें रथ पर विराजमान श्रीकृष्ण के दर्शन हुए, जिनकी ध्वजा पर वानर चिह्न था। राजा को अपनी भूल समझ आई!उन्होंने तुरंत हनुमानजी की स्तुति की। हनुमानजी प्रकट हुए और आशीर्वाद दिया, “हे राजन! तुम्हारी भक्ति सिद्ध हुई। यह क्षेत्र ‘सिद्धक्षेत्र’ कहलाएगा। मैं यहां सूक्ष्म रूप में निवास करूंगा।” यह कहकर हनुमानजी समुद्र की ओर मुख करके बैठ गए। इसके बाद समुद्र शांत रहा और श्रीमंदिर का निर्माण निर्विघ्न पूरा हुआ। आज भी जगन्नाथ मंदिर के पास, समुद्र की ओर ‘बेड़ी हनुमान’ का मंदिर है, जो राजा इंद्रद्युम्न के उसी संकल्प की पूर्ति और हनुमानजी की कृपा का साक्षी है।