
क्या आप जानते हैं…
राजस्थान के चित्तौड़गढ़ में एक ऐसा चमत्कारी मंदिर है,
जहाँ भगवान सिर्फ पूजे नहीं जाते —
बल्कि आपके बिज़नेस पार्टनर भी बनते हैं।
एक ऐसा धाम, जहाँ भक्तों की हर अर्जी भगवान के दरबार में लगाई जाती है…
और हर मुराद, भगवान खुद पूरी करते हैं।
ये कोई साधारण मंदिर नहीं…
ये है — श्री सांवरिया सेठ का धाम।
राजस्थान के चित्तौड़गढ़ जिले में बसा मेवाड़, सिर्फ वीरता की धरती ही नहीं…
यहाँ बसी है भक्ति और चमत्कारों की एक ऐसी गाथा, जो हर श्रद्धालु को आज भी हैरान करती है।
इस भूमि पर स्थित है —
श्री सांवरिया सेठ मंदिर,
जहाँ श्रीकृष्ण “सेठ” के रूप में विराजमान हैं।
इस कहानी की जड़ें जुड़ी हैं महान भक्त मीरा बाई से,
जिन्होंने अपने आराध्य गिरधर गोपाल को जीवन का साथी माना।
कहते हैं, उन्हीं की पूजा में उपयोग की जाने वाली श्रीकृष्ण की सुंदर मूर्तियाँ —
सदियों तक साधु-संतों की संगति में रहीं।
एक संत थे — दयाराम जी, जिनकी टोली इन मूर्तियों की सेवा करती थी। पर समय का चक्र चला…
मुगल बादशाह औरंगज़ेब की सेनाओं ने मंदिरों को तोड़ना शुरू किया।
भगवान की मूर्तियों को बचाने के लिए
संत दयाराम जी ने इन्हें छुपा दिया —
बागुंड और भादसोड़ा गाँव की सीमा पर छापर नामक स्थान पर।
वो दिव्य मूर्तियाँ धरती के गर्भ में समा गईं… और फिर…
सन् 1840 में मंडफिया गाँव के एक ग्वाले भोलाराम गुर्जर को
एक अद्भुत सपना आया।
“भगवान श्रीकृष्ण” ने स्वयं दर्शन देकर कहा —
“हम यहीं छापर में भूमि के नीचे छुपे हुए हैं। उठो, हमें बाहर निकालो।”शुरुआत में लोगों ने भोलाराम की बातों को अनसुना किया।
लेकिन जब स्वप्न बार-बार आया,
तो गाँव वाले खुदाई के लिए तैयार हो गए।
और फिर…
धरती के गर्भ से निकलीं —
चार एक जैसी, सुंदर, सांवली सूरत वाली —
श्रीकृष्ण की मूर्तियाँ।
साक्षात “सांवरिया सेठ” —
जैसे युगों बाद भक्तों के बुलावे पर प्रकट हुए हों।”भगवान को ‘सेठ’ क्यों कहा गया?”
क्योंकि भक्तों का विश्वास है कि सांवरिया सेठ,
उनके व्यापार में साझेदार बनते हैं।
व्यापारी अपने मुनाफे का हिस्सा हर महीने मंदिर भेजते हैं।
और कहते हैं —
“हमारे बिज़नेस का सच्चा मालिक वही है।”मंदिर के दानपात्र हर महीने खोले जाते हैं।
जिसमें निकलती हैं —
करोड़ों रुपये, सोना, चांदी और विदेशी करेंसी।
ये सिर्फ दान नहीं…
ये उस विश्वास का प्रमाण है जो करोड़ों लोग सांवरिया सेठ पर करते हैं।