
समुद्र के किनारे एक छोटा-सा गांव बसा था। उसी गांव के छोर पर एक कच्ची-सी झोपड़ी में रहती थी एक वृद्धा — कृष्णा बाई। उनका असली नाम था सुखिया, परंतु भगवान श्रीकृष्ण की अनन्य भक्ति में लीन रहने के कारण पूरा गांव उन्हें श्रद्धा से कृष्णा बाई कहकर पुकारता था।
उनका जीवन बहुत ही साधारण था। गांव में घर-घर जाकर झाड़ू लगाना, बर्तन मांजना, खाना बनाना — यही उनका रोज़गार था। लेकिन उनका हृदय, वह तो श्रीकृष्ण के चरणों में अर्पित था। दिन-रात वह अपने कान्हा की सेवा में लगी रहतीं। रोज़ सुबह-संध्या वे फूलों की माला बनाकर अपने ठाकुर जी को पहनातीं और घंटों उनसे बातें करतीं। गांव के लोग उन्हें पागल समझते थे — एक बूढ़ी जो मूर्ति से बातें करती है!
लेकिन, वह जानती थी कि उसका कान्हा सुनता भी है और उत्तर भी देता है।
एक रात, श्रीकृष्ण ने दर्शन दिए। बोले —
“कृष्णा! सुन, कल प्रलय आने वाली है। यह गांव समुद्र में समा जाएगा। तू अपना सामान समेट और दूसरे गांव चली जा, अभी इसी वक्त!”
आज्ञा थी प्रभु की — कैसे टाली जाती?
कृष्णा बाई ने बिना देरी किए अपनी गठरी बांधी, श्रीकृष्ण की मूर्ति को प्रेम से उठाया और एक बैलगाड़ी मंगवाकर गांव से निकल पड़ीं। जाते-जाते हर किसी को बताती रहीं कि “कान्हा ने कहा है, गांव छोड़ दो, प्रलय आएगी!”
परन्तु लोगों ने उनकी बात को मज़ाक समझा।
“देखो, फिर पगली की बातों का नाटक शुरू!”
हर कोई हँस रहा था, कोई सुनने को भी तैयार नहीं।
गाड़ी गांव की सीमा पार करने ही वाली थी कि कान्हा की पुकार फिर गूंजी —
“पगली! तू मेरी माला बनाने वाली सुई भूल आई है। क्या अब तू मुझे माला नहीं पहनाएगी?”
यह सुनते ही कृष्णा बाई काँप गईं।
“हे नाथ! मैं इतनी बड़ी भूल कैसे कर बैठी!”
उन्होंने गाड़ी रुकवाई और बिना कुछ सोचे अपनी झोपड़ी की ओर दौड़ पड़ीं। लोग और भी हँसे —
“अब ये सुई लेने भागी है! देखो, कितनी पागल हो गई है!”
परंतु वह हँसी कृष्णा बाई को सुनाई ही न दी। उनके कानों में तो केवल कान्हा की पुकार गूंज रही थी। झोपड़ी पहुंचकर उन्होंने तिनकों के बीच वह सुई खोज निकाली — वही सुई जिससे वे रोज़ माला बनाकर ठाकुर जी को सजाया करती थीं।
सुई लेकर वे दोबारा बैलगाड़ी पर चढ़ीं और बोलीं —
“अब चल बेटा, तेज़ चल, मुझे गांव की सीमा पार करनी है!”
गाड़ीवान भी कोई साधारण नहीं था — वह भी श्रीकृष्ण का भक्त था। वह तुरंत गाड़ी बढ़ा ले गया।
और फिर…
जैसे ही गाड़ी गांव की सीमा पार करती है, एक भयानक गर्जना होती है — समुद्र की लहरें बेकाबू हो उठती हैं, और कुछ ही पलों में पूरा गांव समुद्र में समा जाता है।
सिर्फ वही बचते हैं जो प्रभु के कहे पर चले।
इस घटना ने सबको सन्न कर दिया।
गांव जो कभी हँसता था, अब मौन था।
और तब लोगों को समझ आया —
वह बूढ़ी पगली नहीं थी, वह तो प्रभु की प्यारी भक्त थी।