
देहरादून: उत्तराखंड में इस मानसून सीजन में हुई भारी तबाही और नुकसान का आकलन करने के लिए एक अंतर-मंत्रालयी केंद्रीय टीम आज, 8 सितंबर को राज्य का दौरा करेगी. यह टीम प्रदेश के छह आपदा प्रभावित जिलों का स्थलीय निरीक्षण करने के साथ-साथ शासन के वरिष्ठ अधिकारियों के साथ बैठक कर क्षति का विस्तृत जायजा लेगी. दूसरी ओर, राज्य में आपदा के एक बड़े खतरे, यानी संवेदनशील हिमनद झीलों को लेकर प्रशासनिक स्तर पर निर्णय लेने की प्रक्रिया बेहद धीमी गति से चल रही है.
चमोली स्थित ‘अत्यधिक संवेदनशील’ वसुंधरा झील के सर्वेक्षण के लगभग 11 महीने बीत जाने के बाद भी यहां अर्ली वार्निंग सिस्टम (EWS) लगाने और इसकी निगरानी की जिम्मेदारी तय नहीं हो पाई है.
नुकसान के आकलन को केंद्रीय टीम का दौरा
इस साल मानसून में भूस्खलन, बाढ़ और अतिवृष्टि से राज्य को भारी क्षति पहुंची है. इसी के आकलन के लिए केंद्रीय टीम उत्तराखंड आ रही है. टीम पहले शासन के अधिकारियों से आपदा से हुए नुकसान का ब्यौरा लेगी और फिर प्रभावित जिलों का दौरा करेगी. इस टीम की रिपोर्ट के आधार पर ही केंद्र सरकार राज्य को आपदा राहत पैकेज जारी करेगी.
संवेदनशील झीलों पर सिस्टम लगाने की प्रक्रिया अधर में
राज्य में 13 हिमनद झीलों को संवेदनशील चिह्नित किया गया है, जिनमें से पांच को ‘बेहद संवेदनशील’ की श्रेणी में रखा गया है. इन झीलों के फटने (GLOF- ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड) के खतरे का मूल्यांकन करने के लिए GLOF असेसमेंट सर्वे कराने का निर्णय लिया गया था.
इसी क्रम में, पिछले साल अक्टूबर में वसुंधरा झील का सर्वेक्षण पूरा किया गया था, जिसमें राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (USDMA), वाडिया संस्थान, ITBP और NDRF के विशेषज्ञ शामिल थे. सूत्रों के अनुसार, सर्वे रिपोर्ट सरकार को सौंपी जा चुकी है, जिसमें झील से पानी के बहाव के लिए दो संभावित निकासी क्षेत्रों की पहचान की गई है और साथ ही हिमस्खलन व भूस्खलन के खतरों का भी विस्तृत उल्लेख किया गया है.
इस रिपोर्ट के आधार पर झील पर तत्काल अर्ली वार्निंग सिस्टम लगाया जाना था, जिसके लिए राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) से वित्तीय सहायता भी प्रस्तावित है. लेकिन विडंबना यह है कि 11 महीने बाद भी यह तय नहीं हो सका है कि सिस्टम कौन सी संस्था लगाएगी और इसके लगने के बाद इसकी निगरानी और रखरखाव का जिम्मा किसे सौंपा जाएगा. यह मामला अभी भी मंथन के स्तर पर ही अटका हुआ है. बताया जा रहा है कि इस महत्वपूर्ण विषय पर निर्णय लेने के लिए जल्द ही मुख्य सचिव की अध्यक्षता में एक बैठक होगी, जिसमें सभी पहलुओं पर विचार कर अंतिम फैसला लिया जाएगा.
यह स्थिति स्पष्ट रूप से दर्शाती है कि एक ओर जहां आपदा के बाद राहत और बचाव कार्यों पर जोर दिया जा रहा है, वहीं दूसरी ओर भविष्य की संभावित महाविनाशकारी आपदाओं को रोकने के लिए महत्वपूर्ण प्रणालियों की स्थापना नौकरशाही की सुस्ती का शिकार हो रही है.