
नई दिल्ली: लोक आस्था का महापर्व छठ पूजा की शुरुआत नहाय-खाय के साथ हो चुकी है. चार दिनों तक चलने वाला यह कठिन व्रत सूर्य देव और छठी मैया को समर्पित है.इस दौरान व्रती संतान की लंबी आयु, सुख-समृद्धि और परिवार की खुशहाली के लिए निर्जला उपवास रखते हैं.कार्तिक मास की चतुर्थी तिथि से लेकर सप्तमी तिथि तक चलने वाले इस पर्व में भगवान भास्कर और छठी मैया की पूजा-अर्चना की जाती है.
चार दिवसीय कठिन साधना
छठ पूजा का अनुष्ठान चार दिनों तक चलता है, जिसकी शुरुआत कार्तिक शुक्ल चतुर्थी को ‘नहाय-खाय’ से होती है.इस दिन व्रती स्नान कर पवित्र भोजन ग्रहण करते हैं और व्रत का संकल्प लेते हैं.दूसरे दिन, जिसे ‘खरना’ कहा जाता है, व्रती पूरे दिन उपवास रखकर शाम को गुड़ की खीर और रोटी का प्रसाद ग्रहण करते हैं. इसके बाद लगभग 36 घंटे का निर्जला उपवास शुरू होता है.
पर्व के तीसरे दिन यानी कार्तिक शुक्ल षष्ठी को ‘संध्या अर्घ्य’ दिया जाता है. इस दिन व्रती नदी, तालाब या घाट पर सूर्यास्त के समय अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य अर्पित करते हैं.चौथे और अंतिम दिन उगते सूर्य को ‘उषा अर्घ्य’ देने के साथ ही इस महापर्व का समापन होता है.
पौराणिक कथाओं में छठ का महत्व
छठ पर्व की शुरुआत को लेकर कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं. इन कथाओं का जिक्र रामायण और महाभारत काल में भी मिलता है.
- राजा प्रियंवद की कथा: पुराणों के अनुसार, राजा प्रियंवद को कोई संतान नहीं थी .महर्षि कश्यप के कहने पर उन्होंने पुत्रेष्टि यज्ञ करवाया. यज्ञ के फलस्वरूप रानी मालिनी ने एक पुत्र को जन्म दिया, लेकिन वह मृत पैदा हुआ. पुत्र वियोग में जब राजा प्राण त्यागने लगे, तब ब्रह्मा की मानस पुत्री षष्ठी देवी प्रकट हुईं और उन्होंने राजा को अपनी पूजा करने के लिए प्रेरित किया.राजा ने कार्तिक शुक्ल षष्ठी को देवी षष्ठी का व्रत किया, जिसके बाद उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई.माना जाता है कि तभी से छठ पूजा की परंपरा चली आ रही है.
- सूर्यपुत्र कर्ण की कथा: एक अन्य मान्यता के अनुसार, छठ पर्व की शुरुआत महाभारत काल में सूर्यपुत्र कर्ण ने की थी. कर्ण भगवान सूर्य के परम भक्त थे और प्रतिदिन घंटों कमर तक पानी में खड़े होकर उन्हें अर्घ्य देते थे. सूर्य देव की कृपा से ही वे एक महान योद्धा बने. आज भी छठ में अर्घ्य देने की यही परंपरा प्रचलित है.
- द्रौपदी की छठ कथा: महाभारत काल से जुड़ी एक और कथा के अनुसार, जब पांडव जुए में अपना सारा राजपाट हार गए थे, तब द्रौपदी ने छठ का व्रत रखा था.उनकी मनोकामना पूरी हुई और पांडवों को अपना राजपाट वापस मिल गया.
- माता सीता की छठ कथा: रामायण काल से भी छठ का संबंध माना जाता है. एक मान्यता के अनुसार, जब भगवान राम और माता सीता 14 वर्ष के वनवास के बाद अयोध्या लौटे, तो उन्होंने रावण वध के पाप से मुक्ति पाने के लिए ऋषि-मुनियों की सलाह पर सूर्य देव की उपासना की.माता सीता ने मुग्दल ऋषि के आश्रम में रहकर कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को सूर्य देव का व्रत किया था.धार्मिक मान्यता है कि माता सीता ने पहला छठ पूजन बिहार के मुंगेर में गंगा तट पर किया था.
यह महापर्व न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि प्रकृति के प्रति कृतज्ञता और स्वच्छता का भी संदेश देता है.
