
नई दिल्ली: हर साल कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मनाई जाने वाली देवउठनी एकादशी इस बार नवंबर 2025 में दो तिथियों को लेकर असमंजस की स्थिति पैदा कर रही है. इसे प्रबोधिनी एकादशी या देवोत्थान एकादशी के नाम से भी जाना जाता है. इसी दिन से चातुर्मास का समापन होता है और भगवान विष्णु चार महीने की योगनिद्रा से जागते हैं, जिसके साथ ही सभी मांगलिक कार्यों जैसे विवाह, गृह प्रवेश आदि की शुरुआत हो जाती है.
आइए जानते हैं कि साल 2025 में देवउठनी एकादशी की सही तिथि क्या है, पंडितों और पंचांग में दो तारीखें क्यों हैं, और पूजा का शुभ मुहूर्त और विधि क्या है.
1 या 2 नवंबर? जानिए किस दिन रखें व्रत
वैदिक पंचांग के अनुसार, कार्तिक शुक्ल एकादशी तिथि की शुरुआत 1 नवंबर 2025, शनिवार को सुबह 09 बजकर 11 मिनट पर होगी और इसका समापन 2 नवंबर 2025, रविवार को सुबह 07 बजकर 31 मिनट पर होगा.
तिथियों के इसी फेर के कारण पंडितों और धर्म शास्त्रों में व्रत की दो तारीखें बताई गई हैं:
- 1 नवंबर 2025 (गृहस्थों के लिए): जो लोग गृहस्थ जीवन में हैं, उनके लिए 1 नवंबर को देवउठनी एकादशी का व्रत रखना शास्त्र सम्मत माना गया है.चूँकि एकादशी तिथि 1 नवंबर को ही शुरू हो जाएगी, इसलिए इस दिन व्रत रखा जाएगा.
- 2 नवंबर 2025 (वैष्णव संप्रदाय के लिए): वैष्णव संप्रदाय और साधु-संत उदया तिथि को मानते हैं, अर्थात जिस तिथि में सूर्योदय होता है, उसे ही पूरे दिन माना जाता है. 2 नवंबर को सूर्योदय के समय एकादशी तिथि रहेगी, इसलिए वैष्णव जन 2 नवंबर को यह व्रत रखेंगे.
देवउठनी एकादशी 2025 शुभ मुहूर्त
- एकादशी तिथि प्रारंभ: 1 नवंबर 2025, सुबह 09:11 बजे
- एकादशी तिथि समाप्त: 2 नवंबर 2025, सुबह 07:31 बजे
- पूजा का मुहूर्त (1 नवंबर): सुबह 08:00 बजे से सुबह 10:30 बजे तक का समय पूजा के लिए उत्तम है.
- व्रत पारण का समय: व्रत का पारण 2 नवंबर, रविवार को दोपहर 01:11 बजे से शाम 03:23 बजे के बीच करना शुभ रहेगा.
देवउठनी एकादशी पूजा विधि
इस दिन भगवान विष्णु की विशेष पूजा-अर्चना का विधान है. मान्यता है कि इस दिन पूरे विधि-विधान से पूजा करने से सभी पापों से मुक्ति मिलती है और घर में सुख-शांति का वास होता है.
- इस दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और व्रत का संकल्प लें.
- पूजा स्थल पर भगवान विष्णु की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें.
- भगवान को पीले वस्त्र, पीले फूल, फल और मिठाई अर्पित करें.
- घर के आंगन में भगवान विष्णु के चरणों की आकृति बनाएं.
- शाम के समय पूजा स्थल पर और घर के बाहर दीपक जलाएं. गन्ना, सिंघाड़ा और मौसमी फल भगवान को अर्पित करें.
- इस दिन तुलसी विवाह की भी परंपरा है. शाम के समय तुलसी के पौधे का भगवान शालिग्राम (विष्णु का स्वरूप) से विवाह कराया जाता है.
- पूजा के दौरान “उत्तिष्ठ गोविन्द त्यज निद्रां जगत्पतये। त्वयि सुप्ते जगन्नाथ जगत् सुप्तं भवेदिदम्॥” मंत्र का जाप करते हुए भगवान विष्णु को निद्रा से जगाएं.
