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एक बार की बात है, एक महाजन को अपना चित्र बनवाने का शौक लगा। उसने नगर के प्रसिद्ध चित्रकार को बुलवाया और उसे अपना चित्र बनाने का आदेश दिया। चित्रकार ने पूरे मनोयोग से चित्र बनाना शुरू किया और कुछ ही दिनों में एक सुंदर चित्र तैयार कर दिया।
जब चित्र पूरा हुआ, तो महाजन ने उसे देखकर कहा, “यह चित्र ठीक नहीं बना है, इसे दोबारा बनाओ।”
चित्रकार ने महाजन की बात मानी और फिर से नया चित्र बनाया। लेकिन जब वह दूसरा चित्र लेकर आया, तो महाजन फिर असंतुष्ट दिखा और उसे भी खारिज कर दिया। इस तरह महाजन ने कई बार चित्रकार से नए-नए चित्र बनवाए, पर हर बार कोई न कोई बहाना बनाकर उसे गलत बता दिया।
अब चित्रकार समझ चुका था कि महाजन हर बार चेहरा बदल लेता है और अपनी धूर्तता से चित्र बनवाने के बाद मेहनताना देने से बच रहा है। उसने महाजन से अब तक बनाए गए सभी चित्रों का मेहनताना माँगा, लेकिन महाजन ने कठोर स्वर में कहा, “कैसा मेहनताना? जब तुम एक भी सही चित्र नहीं बना पाए तो तुम्हें मेहनताना क्यों दूं?”
चित्रकार निराश होकर अपने घर लौटा और उसने सारी बात अपनी पत्नी को बताई। उसकी पत्नी समझदार थी। उसने सलाह दी, “तुम बादशाह अकबर के दरबार में जाओ, वही तुम्हें न्याय दिला सकते हैं।”
चित्रकार को यह सलाह उचित लगी, और अगले ही दिन वह बादशाह अकबर के दरबार में अपनी फरियाद लेकर पहुँचा।
अकबर का न्याय और बीरबल की चतुराई
बादशाह अकबर ने चित्रकार की बात ध्यान से सुनी और महाजन को दरबार में बुलवाया। चित्रकार द्वारा बनाए गए सभी चित्र भी मंगवाए गए। जब चित्रों को देखा गया, तो बादशाह ने महाजन से पूछा,
“इन चित्रों में क्या कोई कमी है?”
महाजन ने बड़ी चालाकी से उत्तर दिया, “जी हुजूर, इनमें से कोई भी चित्र हूबहू मेरे चेहरे जैसा नहीं बना है।”
अकबर यह सुनकर सोच में पड़ गए और उन्होंने बीरबल से इस समस्या का समाधान निकालने को कहा। बीरबल पहले से ही सारा मामला समझ चुके थे। उन्होंने ध्यान से चित्रों को देखा और फिर बोले,
“चित्रकार, तुम्हें दो दिन का समय दिया जाता है। दो दिन बाद तुम महाजन का सबसे सुंदर चित्र बनाकर लाओ। और महाजन, अगर तुम्हें चित्र पसंद आ जाए तो तुम्हें मेहनताना देना ही होगा।”
महाजन को बीरबल की यह शर्त माननी पड़ी। बीरबल ने दोनों को बाहर भेज दिया, लेकिन कुछ देर बाद उन्होंने चित्रकार को अकेले दरबार में बुलाया और उसे कुछ निर्देश दिए।
बीरबल की अनोखी चाल
दो दिन बाद, महाजन और चित्रकार दरबार में हाजिर हुए। लेकिन इस बार चित्रकार कोई कागज़ पर बना चित्र नहीं, बल्कि एक बड़ा सा दर्पण साथ लाया था।
जैसे ही महाजन के सामने दर्पण रखा गया, चित्रकार ने मुस्कुराकर कहा, “जनाब, यह रहा आपका सबसे सटीक चित्र!”
महाजन आश्चर्य से बोला, “यह चित्र नहीं, दर्पण है!”
चित्रकार ने मुस्कुराते हुए उत्तर दिया, “लेकिन इसमें तो आपका असली चेहरा ही दिख रहा है! इससे सटीक चित्र और क्या हो सकता है?”
बीरबल भी अपनी जगह से उठे और बोले, “बिल्कुल सही कह रहा है चित्रकार। यह दर्पण ही तुम्हारा असली चित्र है।”
अब महाजन समझ गया कि उसकी चालाकी नहीं चलने वाली। वह चुपचाप अपनी जेब से पैसे निकालकर चित्रकार को मेहनताना देने लगा।
चित्रकार ने खुशी-खुशी बीरबल का धन्यवाद किया और संतोषपूर्वक अपने घर की ओर चल पड़ा।
शिक्षा:
धोखा और चालाकी ज्यादा दिनों तक नहीं चलती। सत्य और बुद्धिमानी हमेशा जीतती है।