रामायण के पन्नों में किष्किंधा के पराक्रमी राजा बाली का वर्णन एक ऐसे योद्धा के रूप में मिलता है, जिसके बल का कोई सानी नहीं था। वह वानर राज सुग्रीव का बड़ा भाई और देवराज इंद्र का धर्मपुत्र था
रामायण के अनुसार बाली को उसके धर्मपिता इंद्र से एक स्वर्ण हार प्राप्त हुआ था। इसी हार की शक्ति के कारण बाली लगभग अजेय था। उसने कई युद्ध लड़े और सभी में वह जीता। इस स्वर्ण हार को ब्रह्मा ने मंत्रयुक्त करके यह वरदान दिया था कि इसको पहनकर बाली जब भी रणभूमि में अपने शत्रु का सामना करेगा तो उसके शत्रु की आधी शक्ति क्षीण हो जाएगी और यह आधी शक्ति बाली को प्राप्त हो जाएगी। यही बाली की शक्ति का राज था।
एक दिन बाली अपने बल के नशे में जंगल में पेड़-पौधों को उखाड़ने लगा और जोर-जोर से गरजने लगा। उसी जंगल में हनुमान जी प्रभु राम का ध्यान कर रहे थे। बाली के शोर से उनकी साधना भंग हो गई।
हनुमान जी ने शांत भाव से बाली को ऐसा न करने की सलाह दी। लेकिन बाली, अहंकार में चूर होकर, हनुमान जी को ही युद्ध के लिए ललकार बैठा। हनुमान जी ने पहले तो उसे अनदेखा किया, किंतु जब बाली ने प्रभु राम का नाम लेकर चुनौती दी, तब महावीर हनुमान उसकी ललकार स्वीकार करने को बाध्य हो युद्ध से पहले ब्रह्मा जी हनुमान जी के समक्ष प्रकट हुए और बोले –
“हे रुद्रावतार! आप अनंत शक्ति के स्वामी हैं। यदि आप अपनी पूरी शक्ति के साथ युद्ध करेंगे, तो बाली का अस्तित्व ही समाप्त हो जाएगा। अतः आप अपनी शक्ति का केवल दसवां हिस्सा लेकर युद्ध में जाएँ और शेष शक्ति प्रभु राम के पास सुरक्षित रख दें।”
हनुमान जी ने ब्रह्मा जी की आज्ञा का पालन किया। निर्धारित समय पर हनुमान जी युद्धभूमि में पहुँचे। जैसे ही वे रामनाम का उच्चारण करते हुए बाली के सामने खड़े हुए, वरदान के अनुसार उनकी शक्ति का आधा हिस्सा बाली के शरीर में प्रवेश करने लगा।
शुरू में बाली अत्यंत प्रसन्न हुआ—उसे लगा कि वह और भी बलशाली हो गया है। लेकिन कुछ ही क्षणों बाद वह समझ गया कि यह शक्ति तो उसकी सीमा से कहीं अधिक है। उसका शरीर उस शक्ति के बोझ को सहन नहीं कर पा रहा था। ऐसा प्रतीत होने लगा कि उसका शरीर भीतर से ही फट जाएगा।
तभी ब्रह्मा जी प्रकट हुए और बोले—
“हे बाली! यह तो हनुमान जी की मात्र दसवें हिस्से की शक्ति है। सोचो, यदि वे सम्पूर्ण बल लेकर आते तो तुम्हारा क्या होता? तुमने घमंड में आकर जिस शक्ति को चुनौती दी थी, वही शक्ति आज तुम्हें स्वयं अपनी सीमा का ज्ञान करा रही है।” यह सुनकर बाली का अहंकार चूर-चूर हो गया। वह समझ गया कि हनुमान जी कोई साधारण वानर नहीं, बल्कि रुद्रावतार हैं—जिनकी शक्ति का मापन करना असंभव है।
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