
नई दिल्ली: सनातन धर्म में भगवान विष्णु को सृष्टि का पालनहार माना जाता है. जब-जब पृथ्वी पर अधर्म और संकट बढ़ा है, तब-तब उन्होंने धर्म की स्थापना के लिए विभिन्न अवतार लिए हैं. इन्हीं अवतारों में से एक है उनका वामन अवतार, जो भगवान का पांचवां और मानव रूप में पहला अवतार माना जाता है.इस अवतार की कथा सीधे तौर पर असुरों के राजा बलि से जुड़ी है, जो अपनी दानवीरता के लिए प्रसिद्ध थे.
क्यों लेना पड़ा वामन अवतार?
पौराणिक कथाओं के अनुसार, सतयुग में दैत्य राजा बलि अत्यंत शक्तिशाली हो गए थे. वे भगवान विष्णु के परम भक्त प्रह्लाद के पौत्र थे और अपनी प्रजा का बहुत ध्यान रखते थे. अपने बल और तप से राजा बलि ने तीनों लोकों पर अधिकार कर लिया था, यहाँ तक कि उन्होंने इंद्र से देवलोक भी छीन लिया था.इससे चिंतित होकर देवराज इंद्र अन्य देवताओं के साथ भगवान विष्णु की शरण में गए और सहायता की प्रार्थना की. भगवान विष्णु ने देवताओं को आश्वासन दिया कि वे इस समस्या का समाधान करेंगे और देवलोक उन्हें वापस दिलाएंगे.इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए भगवान विष्णु ने माता अदिति और कश्यप ऋषि के पुत्र के रूप में एक बौने ब्राह्मण बालक का अवतार लिया, जिन्हें वामन कहा गया.
राजा बलि का महायज्ञ और वामन का आगमन
उस समय राजा बलि अपनी शक्ति को और बढ़ाने के लिए अश्वमेध यज्ञ कर रहे थे. उन्होंने घोषणा कर रखी थी कि यज्ञ के दौरान उनके द्वार से कोई भी खाली हाथ नहीं लौटेगा. भगवान वामन एक छोटे ब्राह्मण बालक का रूप धारण कर राजा बलि के यज्ञ स्थल पर पहुंचे.उनके दिव्य तेज से पूरा यज्ञ मंडप प्रकाशित हो उठा. राजा बलि ने स्वयं उनका आदर-सत्कार किया.
तीन पग भूमि का दान
राजा बलि ने जब नन्हे ब्राह्मण से आने का कारण पूछा और कुछ मांगने को कहा, तो भगवान वामन ने विनम्रता से केवल तीन पग भूमि दान में मांगी. यह सुनकर राजा बलि को आश्चर्य हुआ और उन्होंने बालक वामन से कुछ और बड़ा मांगने का आग्रह किया.इसी बीच, असुरों के गुरु शुक्राचार्य ने भगवान विष्णु की माया को पहचान लिया और राजा बलि को तीन पग भूमि दान करने से रोका. उन्होंने बलि को चेतावनी दी कि यह कोई साधारण बालक नहीं, बल्कि स्वयं भगवान विष्णु हैं, जो उनका सर्वस्व छीनने आए हैं.
लेकिन राजा बलि अपने वचन से पीछे नहीं हटे. उन्होंने कहा कि यदि भगवान स्वयं उनसे भिक्षा मांगने आए हैं तो यह उनका परम सौभाग्य है.यह कहकर उन्होंने वामन देव को तीन पग भूमि दान देने का संकल्प ले लिया.
विराट रूप और दो पग में तीनों लोक
संकल्प लेते ही भगवान वामन ने अपना आकार बढ़ाना शुरू कर दिया और एक विराट रूप धारण कर लिया.उन्होंने अपने पहले पग में पूरी पृथ्वी (भूलोक) को नाप लिया.दूसरे पग में उन्होंने देवलोक सहित पूरे स्वर्ग को नाप लिया.अब तीसरा पग रखने के लिए कोई स्थान शेष नहीं था.
बलि ने निभाया वचन, मिला पाताल लोक का राज्य
भगवान वामन ने राजा बलि से पूछा कि वे अपना तीसरा पग कहां रखें. वचन के पक्के राजा बलि ने अपना वादा पूरा करते हुए अपना सिर वामन देव के आगे कर दिया और कहा, “प्रभु, तीसरा पग मेरे मस्तक पर रख दीजिए.”राजा बलि की इस दानवीरता और वचनबद्धता से भगवान विष्णु अत्यंत प्रसन्न हुए. उन्होंने अपना तीसरा पग बलि के सिर पर रखा, जिससे राजा बलि पाताल लोक में पहुंच गए.भगवान विष्णु ने उन्हें पाताल लोक का राजा बना दिया और वरदान दिया कि वे स्वयं उनके द्वारपाल बनकर रहेंगे. इस प्रकार, देवताओं को उनका स्वर्गलोक वापस मिला और राजा बलि के अहंकार का नाश हुआ, लेकिन उनकी भक्ति और दानवीरता अमर हो गई.