
नई दिल्ली: भारतीय पौराणिक कथाओं में देवी-देवताओं से जुड़े कई ऐसे रोचक प्रसंग मिलते हैं जो न सिर्फ मनोरंजक होते हैं बल्कि गहरे आध्यात्मिक संदेश भी देते हैं। ऐसी ही एक लोकप्रिय कथा भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी के विवाह से जुड़ी है, जिसमें प्रथम पूज्य भगवान गणेश को निमंत्रण नहीं दिया गया था। इस घटना के कारण विष्णुजी की बारात में ऐसा विघ्न पड़ा कि सभी देवताओं को अपनी भूल का एहसास हुआ।
एक पौराणिक कथा के अनुसार, जब भगवान विष्णु का विवाह देवी लक्ष्मी के साथ निश्चित हुआ तो इसकी भव्य तैयारियां आरंभ की गईं। इस शुभ अवसर पर सभी देवी-देवताओं को सम्मान सहित निमंत्रण भेजा गया, परंतु भगवान गणेश को निमंत्रण नहीं दिया गया।
जब भगवान विष्णु की बारात प्रस्थान करने के लिए तैयार हुई तो सभी देवता अपनी पत्नियों के साथ वहां उपस्थित थे। उन्होंने देखा कि गणेशजी कहीं भी दिखाई नहीं दे रहे हैं। तब आपस में चर्चा होने लगी कि क्या गणेशजी को निमंत्रण नहीं भेजा गया या वे स्वयं ही नहीं आए? इस पर भगवान विष्णु ने स्पष्ट किया कि उन्होंने गणेशजी के पिता भोलेनाथ महादेव को न्योता भेजा है, और यदि गणेशजी आना चाहते तो अपने पिता के साथ आ सकते थे, उन्हें अलग से निमंत्रण की कोई आवश्यकता नहीं थी।
एक और कारण यह भी बताया गया कि गणेशजी का भोजन बहुत अधिक है, वे सवा मन मूंग, सवा मन चावल, सवा मन घी और सवा मन लड्डू का भोजन करते हैं। किसी दूसरे के घर पर इतना भोजन करना उचित नहीं लगता। इतने में किसी ने सुझाव दिया कि यदि गणेशजी आ भी जाएं, तो उन्हें द्वारपाल बनाकर घर की रखवाली का काम सौंप दिया जाएगा, क्योंकि वे अपने वाहन चूहे पर धीरे-धीरे चलेंगे और बारात से पीछे रह जाएंगे।
संयोग से उसी समय गणेशजी वहां आ पहुंचे और उन्हें समझा-बुझाकर घर की रखवाली के लिए बैठा दिया गया। जब बारात चली तो देवर्षि नारद ने गणेशजी को द्वार पर उदास बैठे देखा। कारण पूछने पर गणेशजी ने अपने अपमान की बात बताई। तब नारदजी ने उन्हें एक युक्ति सुझाई। गणेशजी ने नारदजी के कहने पर अपनी मूषक सेना को आगे भेज दिया, जिसने रास्ते की सारी जमीन खोदकर पोली कर दी।
जब विष्णुजी की बारात उस रास्ते पर पहुंची तो रथों के पहिए जमीन में धंस गए। सभी ने बहुत प्रयास किया, परंतु पहिए नहीं निकले। तब नारदजी ने देवताओं को उनकी भूल का एहसास कराते हुए कहा, “आप लोगों ने गणेशजी का अपमान करके अच्छा नहीं किया। यदि उन्हें मनाकर यहां लाया जाए, तभी आपका कार्य सिद्ध हो सकता है।”
इसके बाद भगवान शंकर ने अपने दूत नंदी को भेजकर गणेशजी को सम्मान सहित लाने को कहा। गणेशजी का आदर-सत्कार के साथ पूजन किया गया, जिसके बाद रथ के पहिए तो निकल गए, परंतु वे टूट-फूट चुके थे। पास के खेत में काम कर रहे एक खाती (बढ़ई) को पहिए ठीक करने के लिए बुलाया गया। उस कारीगर ने अपना काम शुरू करने से पहले मन ही मन ‘श्री गणेशाय नमः’ कहकर गणेशजी की वंदना की और देखते ही देखते सभी पहियों को ठीक कर दिया।
तब उस खाती ने देवताओं से कहा, “हे देवताओं! आपने सर्वप्रथम गणेशजी को नहीं मनाया और न ही उनकी पूजा की, इसीलिए आपके कार्य में यह संकट आया। हम तो अज्ञानी हैं, फिर भी कोई भी काम करने से पहले गणेशजी को ही पूजते हैं। आप तो देवता होकर भी उन्हें कैसे भूल गए? अब आप भगवान श्री गणेशजी की जय-जयकार करते हुए प्रस्थान करें, आपके सभी कार्य सफल होंगे।”
इसके बाद सभी देवताओं ने भगवान गणेश की जय बोली और बारात सकुशल आगे बढ़ी, और भगवान विष्णु व देवी लक्ष्मी का विवाह निर्विघ्न संपन्न हुआ। यह कथा बताती है कि किसी भी शुभ कार्य के आरंभ में भगवान गणेश की पूजा क्यों अनिवार्य है, ताकि सभी कार्य बिना किसी बाधा के पूर्ण हों।