
भारत ने शतरंज के खेल में इतिहास रचते हुए नई ऊंचाइयों को छुआ। 18 साल के भारतीय ग्रैंडमास्टर डी गुकेश ने वर्ल्ड चेस चैंपियनशिप में चीन के डिंग लिरेन को हराकर सबसे युवा वर्ल्ड चैंपियन बनने का गौरव हासिल किया। गुकेश ने फाइनल की 14वीं और निर्णायक बाजी जीतकर यह प्रतिष्ठित खिताब अपने नाम किया।
इस ऐतिहासिक जीत के साथ गुकेश ने विश्वनाथन आनंद के बाद वर्ल्ड चेस चैंपियनशिप जीतने वाले दूसरे भारतीय होने का सम्मान भी हासिल किया। जीत के बाद भावुक गुकेश अपनी खुशी के आंसू नहीं रोक सके।
डिंग लिरेन का सपना टूटा, गुकेश ने रचा इतिहास
इस टूर्नामेंट में चीन के डिंग लिरेन, जो 2023 में वर्ल्ड चैंपियन बने थे, खिताब बचाने के इरादे से उतरे थे। लेकिन गुकेश ने उनके सपने को चकनाचूर कर दिया।
- टूर्नामेंट में गुकेश ने बार-बार कठिन परिस्थितियों से उभरते हुए कमाल का प्रदर्शन किया।
- 14वीं बाजी में निर्णायक जीत हासिल करते हुए वह नए वर्ल्ड चेस चैंपियन बन गए।
सबसे युवा वर्ल्ड चैंपियन बनने का गौरव
गुकेश ने रूस के महान खिलाड़ी गैरी कास्पारोव का रिकॉर्ड तोड़ते हुए यह खिताब जीता। कास्पारोव ने 1985 में 22 साल की उम्र में वर्ल्ड चैंपियनशिप जीती थी।
इस साल की शुरुआत में गुकेश ने कैंडिडेट्स टूर्नामेंट जीतकर सबसे युवा चैलेंजर के रूप में इतिहास रच दिया था। उनकी इस जीत ने उन्हें शतरंज की दुनिया का नया सुपरस्टार बना दिया।
शानदार सफर: गुकेश की चमकती हुई यात्रा
गुकेश की वर्ल्ड चैंपियनशिप की यात्रा दिसंबर 2023 में चेन्नई ग्रैंडमास्टर्स टूर्नामेंट जीतने के साथ शुरू हुई। इसके बाद उन्होंने कैंडिडेट्स टूर्नामेंट में प्रवेश किया, जहां उन्हें फाबियानो कारुआना और हिकारू नाकामुरा जैसे दिग्गजों के खिलाफ चुनौती का सामना करना पड़ा।
- गुकेश ने अपने शानदार प्रदर्शन से न केवल इन्हें पछाड़ा बल्कि भारतीय दिग्गज आर प्रज्ञानानंदा को भी हराया।
- उनकी यह यात्रा शतरंज की दुनिया में एक नई प्रेरणा बन गई है।
गुकेश की जीत भारत के लिए गौरव का क्षण
गुकेश की इस ऐतिहासिक जीत ने भारत को विश्व शतरंज मंच पर एक नई पहचान दिलाई है। पांच बार के वर्ल्ड चैंपियन विश्वनाथन आनंद के बाद यह खिताब जीतने वाले वह पहले भारतीय हैं। आनंद ने आखिरी बार यह खिताब 2013 में जीता था।
गुकेश की जीत से न केवल भारत में शतरंज को नया प्रोत्साहन मिलेगा, बल्कि यह युवा खिलाड़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत भी बनेगी। उनकी यह ऐतिहासिक उपलब्धि भारतीय शतरंज के स्वर्णिम युग की शुरुआत है।