देहरादून: आषाढ़ मास की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाने वाला गुरु पूर्णिमा का महापर्व इस वर्ष 10 जुलाई 2025, गुरुवार को है। यह दिन गुरु-शिष्य परंपरा के प्रति श्रद्धा और कृतज्ञता व्यक्त करने का एक विशेष अवसर है।इस दिन शिष्य अपने गुरुओं की पूजा-अर्चना कर उनका आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। इस बार गुरु पूर्णिमा का गुरुवार के दिन पड़ना इसे और भी महत्वपूर्ण बना रहा है, साथ ही इस दिन इंद्र योग और वैधृति योग का शुभ संयोग भी बन रहा है।
गुरु पूर्णिमा का महत्व
गुरु पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है, क्योंकि यह दिन महर्षि वेदव्यास की जयंती के रूप में मनाया जाता है।महर्षि वेदव्यास ने ही चारों वेदों का संकलन किया था और महाभारत जैसे महाग्रंथ की रचना की थी, जिस कारण उन्हें ‘आदि गुरु’ का दर्जा प्राप्त है।यह पर्व केवल हिंदुओं तक ही सीमित नहीं है, बल्कि बौद्ध और जैन धर्म के अनुयायी भी अपने आध्यात्मिक गुरुओं के प्रति सम्मान प्रकट करने के लिए इसे मनाते हैं।बौद्ध धर्म में माना जाता है कि इसी दिन भगवान बुद्ध ने सारनाथ में अपना पहला उपदेश दिया था।
गुरु पूर्णिमा पूजा विधि
गुरु पूर्णिमा के दिन पूजा के लिए कुछ विशेष विधियों का पालन किया जाता है:
क्यों है गुरु का स्थान ईश्वर से भी ऊँचा?
भारतीय संस्कृति में गुरु को गोविंद (ईश्वर) से भी ऊँचा स्थान दिया गया है। संत कबीरदास ने अपने दोहे में इस भावना को व्यक्त किया है: “गुरु गोविंद दोऊ खड़े, काके लागूं पांय। बलिहारी गुरु आपने, गोविंद दियो बताय॥” इसका अर्थ है कि जब गुरु और गोविंद दोनों एक साथ खड़े हों, तो सबसे पहले गुरु के चरण स्पर्श करने चाहिए, क्योंकि गुरु ही ईश्वर तक पहुंचने का मार्ग दिखाते हैं।
शास्त्रों में ‘गु’ का अर्थ अंधकार और ‘रु’ का अर्थ है उसे हटाने वाला बताया गया है। इस प्रकार, गुरु वह है जो अज्ञान के अंधकार को मिटाकर ज्ञान के प्रकाश की ओर ले जाता है।गुरु के ज्ञान से ही व्यक्ति को सफलता, समाज में मान-सम्मान और बुद्धि का विकास होता है।गुरु शिष्य को आत्म-ज्योति का साक्षात्कार करने में मदद करते हैं। जैसे सूर्य के ताप से तप्त भूमि को वर्षा से शीतलता मिलती है, उसी प्रकार गुरु के चरणों में साधकों को ज्ञान, शांति और भक्ति की शक्ति प्राप्त होती है।भगवान राम ने गुरु वशिष्ठ से और भगवान कृष्ण ने गुरु सांदीपनि से शिक्षा प्राप्त कर गुरु के महत्व को स्वयं दर्शाया है।
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