भारत और पाकिस्तान के बीच जब भी सीजफायर (युद्धविराम) की बात होती है, पाकिस्तान की विश्वसनीयता पर सवाल उठते हैं। इसका कारण उसका पुराना रिकॉर्ड रहा है। आइए जानते हैं कि भारत और पाकिस्तान के बीच पहली बार सीजफायर कब हुआ था और कितनी बार यह लागू हो चुका है, साथ ही यह भी कि सीजफायर आखिर होता क्या है।
सीजफायर क्या होता है?
सीजफायर का बहुत ही सरल मतलब है दो पक्षों के बीच एक आपसी समझौता कि अब हम एक दूसरे के खिलाफ किसी तरह से हमला नहीं करेंगे। थल, जल, नभ (आकाश) किसी भी जगह से किसी भी हथियारों का इस्तेमाल नहीं करेंगे। इसका सीधा मतलब होता है तत्काल प्रभाव से जो तनाव है उसे कम करके शांति की तरफ आगे बात बढ़ाना। हालांकि इसके लिए औपचारिक संधि हो ये जरूरी नहीं होता। कई बार दोनों पक्ष आपसी सहमति से भी ये फैसला ले सकते हैं। सीजफायर होने के बाद अगर कोई देश सीमा पर आक्रामक कार्रवाई करता है तो उसे सीजफायर का उल्लंघन (Ceasefire Violations) कहा जाता है।
भारत-पाकिस्तान में पहला सीजफायर कब हुआ?
भारत और पाकिस्तान के बीच पहला औपचारिक सीजफायर 1 जनवरी 1949 को लागू हुआ था। यह 1947-48 में कश्मीर को लेकर हुए पहले भारत-पाकिस्तान युद्ध के बाद संयुक्त राष्ट्र (UN) की मध्यस्थता से संभव हुआ था।
पाकिस्तान का रिकॉर्ड और विश्वास का संकट: कब-कब हुए भारत और पाकिस्तान के बीच सीजफायर, कब हुए उल्लंघन
भारत और पाकिस्तान के बीच सीजफायर (युद्धविराम) का जो इतिहास रहा है, उसी के आधार पर भारत के लोग पाकिस्तान पर विश्वास नहीं कर पाते हैं। आइए देखते हैं कब-कब हुए भारत और पाकिस्तान के बीच प्रमुख सीजफायर और कैसे उनका उल्लंघन होता रहा:
प्रमुख सीजफायर और उनके दिन:-
पाकिस्तान ने कब-कब किए सीजफायर के उल्लंघन:
पाकिस्तान का सीजफायर उल्लंघनों का लंबा इतिहास रहा है।
पाकिस्तान पर अविश्वास क्यों?
पाकिस्तान पर अविश्वास का मुख्य कारण बार-बार सीजफायर समझौतों का उल्लंघन करना, सीमा पार आतंकवाद को प्रश्रय देना और उसकी कथनी व करनी में भारी अंतर होना है। ऐतिहासिक रूप से, पाकिस्तान ने कई बार शांति की बातों के बीच भी आक्रामक कार्रवाइयां की हैं और आतंकी गतिविधियों का समर्थन किया है, जिससे भारत के लिए उस पर पूरी तरह भरोसा करना मुश्किल हो जाता है।
आगे की राह
भारत हमेशा से ही सीमा पर शांति का पक्षधर रहा है, लेकिन राष्ट्रीय सुरक्षा से कोई समझौता नहीं किया जा सकता। किसी भी सीजफायर की सफलता पाकिस्तान की ईमानदारी और उसकी सेना द्वारा समझौतों के प्रति वास्तविक प्रतिबद्धता पर निर्भर करती है। जब तक पाकिस्तान आतंकवाद के खिलाफ ठोस और विश्वसनीय कार्रवाई नहीं करता और सीमा पर शांति बनाए रखने की अपनी प्रतिबद्धता का ईमानदारी से पालन नहीं करता, तब तक संदेह बना रहेगा।
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