
एक बार जब युधिष्ठिर इंद्रप्रस्थ पर राज्य कर रहे थे, तब वे अपनी दानशीलता के लिए प्रसिद्ध थे। उनके भाई भीम और अर्जुन को उन पर गर्व था। एक दिन उन्होंने श्रीकृष्ण से कहा, “हमारे भ्राता युधिष्ठिर से बड़ा दानी कोई नहीं।” श्रीकृष्ण मुस्कराए और बोले, “मैंने कर्ण जैसा दानवीर आज तक नहीं देखा।” पांडवों ने इस पर आश्चर्य जताया, और श्रीकृष्ण ने कहा, “समय आने पर यह सिद्ध हो जाएगा।”
कुछ समय बीता और वर्षा ऋतु का आगमन हुआ। ऐसे ही एक दिन एक ब्राह्मण युधिष्ठिर के दरबार में पहुँचा। उसने कहा, “राजन्! मैं एक व्रती ब्राह्मण हूँ। मेरा नियम है कि मैं बिना हवन किए अन्न और जल ग्रहण नहीं करता। लेकिन लगातार वर्षा के कारण मुझे यज्ञ के लिए सूखी चंदन की लकड़ी नहीं मिल रही है। यदि आपके पास हो, तो कृपा करें, अन्यथा मेरा व्रत टूट जाएगा।”
युधिष्ठिर ने तत्काल अपने कोषाध्यक्ष को बुलाकर लकड़ी दिलाने का आदेश दिया, लेकिन दरबार में सूखी चंदन की लकड़ी नहीं थी। तब उन्होंने भीम और अर्जुन को लकड़ी की व्यवस्था करने को कहा, परंतु वे भी लाख प्रयासों के बाद खाली हाथ लौट आए। ब्राह्मण निराश खड़ा था।
तभी श्रीकृष्ण ने मुस्कराते हुए ब्राह्मण से कहा, “आप मेरे साथ चलिए, शायद एक स्थान ऐसा है जहाँ आपकी आवश्यकता पूरी हो सके।” उन्होंने अर्जुन और भीम को भी वेश बदलकर साथ चलने को कहा और वे सब कर्ण के महल की ओर निकल पड़े।
जब ब्राह्मण ने वहाँ पहुँचकर वही निवेदन कर्ण से किया, तो कर्ण ने बिना देर किए अपने भंडारी को सूखी चंदन की लकड़ी लाने का आदेश दिया। परंतु वहाँ भी वही उत्तर मिला — “महाराज, सूखी लकड़ी तो अब कहीं नहीं मिल रही।” ब्राह्मण का चेहरा एक बार फिर उदास हो गया।
लेकिन कर्ण ने ब्राह्मण की निराशा देखकर तुरंत कहा, “हे ब्राह्मणदेव! आप चिंता न करें। मेरे महल में जितनी भी खिड़कियाँ और दरवाज़े चंदन की लकड़ी से बने हैं, वे सब आपके यज्ञ के लिए समर्पित हैं।” कर्ण ने तत्काल अपने सेवकों को आदेश दिया और महल की खिड़कियाँ-दरवाज़े काटकर ब्राह्मण के सामने रखवा दिए।
ब्राह्मण भावविभोर होकर कर्ण को आशीर्वाद देता हुआ चला गया। इसके बाद श्रीकृष्ण, अर्जुन और भीम भी अपने वेश में लौटकर इंद्रप्रस्थ वापस पहुँचे। वहाँ श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर और सभी पांडवों को एकत्र कर कहा, “युधिष्ठिर! आपके महल में भी चंदन की लकड़ी के खिड़की-दरवाज़े थे, पर आपका ध्यान उस ओर नहीं गया।”
यह सुनकर पांडवों का अहंकार चूर-चूर हो गया।