
🙏 अनवसर काल हर साल पुरी के श्री जगन्नाथ मंदिर में एक विशेष अवधि होती है, जब भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा बीमार होने का अभिनय करते हैं। यह 15 दिनों का गोपनीय समय होता है जब मंदिर के द्वार आम भक्तों के लिए बंद कर दिए जाते हैं और केवल दैता पति पुजारी ही सेवा कर सकते हैं।
🌟 इसी कालखंड में घटती है एक अद्भुत कथा — महान तांत्रिक कमाम गिरी की, जिनका अहंकार स्वयं भगवान ने तोड़ा।
🔥 अहंकार और सिद्धियों का बोझ
12वीं शताब्दी के तांत्रिक कमाम गिरी ने वर्षों की तपस्या से शक्तियाँ प्राप्त की थीं। परंतु इन शक्तियों ने उन्हें अहंकारी बना दिया। उन्होंने भारत के तीर्थों की यात्रा की, और अंततः पुरी पहुंचे, भगवान जगन्नाथ के दर्शन के लिए।
मंदिर के द्वार बंद देखकर वे चकित रह गए। पुजारियों ने बताया कि यह अनवसर काल है — भगवान विश्राम कर रहे हैं। पर कमाम गिरी को यह असंभव लगा — “ईश्वर कभी बीमार कैसे हो सकते हैं?”
👑 राजा से तर्क और योग बल का प्रयोग
गिरी ने राजा कामेश्वर देव से भेंट कर द्वार खुलवाने की मांग की, पर परंपरा के सामने राजा भी झुक गए। तब गिरी ने अपनी योग शक्ति से मधुमक्खी का रूप लिया और मंदिर में घुस गए।
🌸 कमल में फँस गए तांत्रिक
मंदिर में प्रवेश करते ही उन्होंने एक दिव्य अष्टदल कमल देखा। जैसे ही वे मधुमक्खी के रूप में उस पर बैठे, कमल बंद हो गया। वे उसमें फँस गए। सारी शक्तियाँ व्यर्थ हो गईं। तड़पते हुए उन्होंने भगवान जगन्नाथ और अपने इष्ट महादेव से प्रार्थना की।
👁️ अदृश्य रूप और देवियों का दर्शन
फिर उन्होंने अदृश्य होकर फिर से प्रवेश किया। इस बार उन्होंने देखा कि मंदिर के आठों कोनों में आठ दिव्य देवियाँ खड़ी थीं। देवियों ने उनकी हंसी उड़ाई — और उस पल कमाम गिरी को अपने अहंकार की गहराई समझ में आई।
🕉️ भक्ति का मार्ग और पूर्ण समर्पण
उनका अंतर्मन जागा। उन्होंने राजा से माफी मांगी, और भगवान जगन्नाथ के चरणों में पूर्ण समर्पण कर दिया। उन्होंने अपनी शक्तियों को त्याग दिया और भक्ति का मार्ग चुन लिया।
📖 सीख:
ईश्वर के सामने अहंकार का कोई स्थान नहीं है। सिद्धियाँ, ज्ञान और शक्ति भी तब तक अधूरी हैं जब तक उनमें विनम्रता और भक्ति ना हो।