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ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, जन्म कुंडली में त्रिकोण स्थानों पर बैठे ग्रहों का विशेष महत्व होता है। त्रिकोण स्थान, अर्थात् पंचम और नवम भाव, जीवन में सुख और समृद्धि के प्रतीक माने जाते हैं। यदि इन स्थानों पर बलवान ग्रह विराजमान हों, तो वे जातक की कुंडली में मौजूद अन्य दोषों को कम करने की शक्ति रखते हैं।
वैदिक ज्योतिष में, लग्न स्थान को भी एक त्रिकोण भाव माना जाता है। यदि लग्न, पंचम, और नवम भाव को जोड़कर एक त्रिकोण बनाया जाए, तो ये तीनों स्थान जीवन के शुभ फलों के लिए जिम्मेदार होते हैं। इन स्थानों के स्वामी यदि बलवान हों, तो वे जातक के जीवन में सकारात्मक परिवर्तन ला सकते हैं।
अशुभ ग्रह भी यदि त्रिकोण स्थान में बैठे हों, तो वे अपनी मूल प्रकृति से हटकर शुभ फल देने लगते हैं। इस प्रकार, त्रिकोण स्थानों का सही विश्लेषण और उनमें बैठे ग्रहों की शक्ति को समझना ज्योतिषीय उपचारों में महत्वपूर्ण होता है। यह जानकारी ज्योतिषीय सलाहकारों द्वारा दी गई है
त्रिकोण भावों का स्वभाव
वैदिक ज्योतिष में लग्न, पंचम, और नवम भाव का बहुत महत्व होता है:
लग्न भाव (प्रथम भाव): यह जन्म कुंडली का पहला घर होता है और इसे आत्मा का घर भी कहा जाता है। लग्न भाव व्यक्ति के शारीरिक लक्षणों, व्यक्तित्व, स्वास्थ्य, और जीवन की दिशा को दर्शाता है।
पंचम भाव (पांचवां भाव): इसे संतान और शिक्षा का भाव माना जाता है। पंचम भाव व्यक्ति की रचनात्मकता, प्रेम संबंधों, और बच्चों के साथ संबंध को भी प्रभावित करता है।
नवम भाव (नौवां भाव): इसे भाग्य और धर्म का भाव कहा जाता है। नवम भाव व्यक्ति के भाग्य, आध्यात्मिकता, और उच्च शिक्षा को प्रभावित करता है।
केन्द्र और त्रिकोण भावों का संबंध – जीवन में समृद्धि का आधार
ज्योतिष शास्त्र में, त्रिकोण भावों को धन और समृद्धि के स्थान के रूप में मान्यता प्राप्त है। जब कुंडली के त्रिकोण भावों के स्वामी शुभ संबंधों में होते हैं, तो जातक को उनकी दशा और अंतर्दशा के दौरान धन लाभ होता है। यदि ये त्रिकोण भाव केन्द्र भावों से संबंधित होते हैं, तो जातक को जीवन में विभिन्न प्रकार की सुख-सुविधाएं प्राप्त होती हैं।
केन्द्र और त्रिकोण भावों के स्वामियों के बीच संबंध से राजयोग का निर्माण होता है, जो जातक के जीवन में उन्नति और सफलता के द्वार खोलता है। यह योग तब भी बनता है जब केन्द्र और त्रिकोण भावों के स्वामी आपस में राशि परिवर्तन करते हैं या एक साथ किसी शुभ भाव में स्थित होते हैं। इसके अलावा, यदि त्रिकोण और केन्द्र भाव के स्वामी एक-दूसरे पर दृष्टि डालते हैं, तो भी राजयोग का सृजन होता है।
इस राजयोग के प्रभाव से जातक को न केवल आर्थिक लाभ होता है, बल्कि उनके करियर में भी उन्नति होती है। इस योग के चलते जातक की निर्णय लेने की क्षमता में वृद्धि होती है, और सेहत तथा पारिवारिक मामलों में भी सुख की प्राप्ति होती है
त्रिकोण के संबंध से धनयोग
यदि कुण्डली में त्रिकोण भावों का संबंध धन भाव या लाभ भाव से बन रहा है तो व्यक्ति को जीवन में कभी भी धन की कमी का सामना करना नहीं करना पड़ता है.त्रिकोण भाव (1, 5, और 9) और केंद्र भाव (1, 4, 7, और 10) को ज्योतिष में सबसे शक्तिशाली माना जाता है। यदि धन भाव (2, 6, और 10) या लाभ भाव (11) का संबंध त्रिकोण भावों से बनता है, तो धनयोग बनता है, जिसका अर्थ है कि जातक को उनके जीवन में धन की कमी का सामना नहीं करना पड़ता।
धनयोग का निर्माण कुंडली में विभिन्न प्रकार से हो सकता है, जैसे कि:
- लग्न भाव (1) का संबंध 5, 9 या 11 भावों से होना।
- पंचम भाव (5) का संबंध 2, 9 या 11 भावों से होना।
- नवम भाव (9) का संबंध 2, 5 या 11 भावों से होना।
धनयोग में शामिल ग्रहों की दशा या अन्तर्दशा आने पर जातक को धन की प्राप्ति होती है। यह ज्योतिषीय विश्लेषण का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है और इसका उपयोग व्यक्ति के भविष्य के बारे में जानकारी प्राप्त करने के लिए किया जाता है।