देहरादून। नगर निगम देहरादून में 2013 से लेकर अब तक होर्डिंग के टेंडर में अनियमितता बरती गई है। जिससे नगर निगम को 300 करोड़ के राजस्व का नुकसान हुआ है। ये आरोप कांग्रेसी नेता अभिनव थापर ने लगाए। वह रविवार को कांग्रेस भवन में मीडिया से मुखातिब थे।
उन्होंने टेंडर में कई योग्य कंपनियों को गलत तरीके से टेंडर में भाग करने से रोके जाने का भी आरोप लगाया।
आरटीआई को लेकर हुए खुलासे में उनका आरोप था कि टेंडर की शर्तों में न सिर्फ ” पार्टी के चयन ” का खेल हुआ। जबकि एक्सटेंशन के नाम पर करोड़ों रुपए के कार्य अपने चहेतों को बिना टेंडर आवंटन किया गया।
तकनीकी रूप से 2013 से लेकर 2023 तक 5 से 7 टेंडर होने चाहिए थे। लेकिन, सिर्फ 3 टेंडर हुए है और इन सभी टेंडरों में सारा खेल इन्ही तीनों कंपनियों के ” संभावित कार्टेल ” को मिला है। जिसमें मीडिया 24*7 दिल्ली, Stimulus Advertising, और Catalyst Adv. शामिल हैं।
थापर के मुताबिक नगर निगम देहरादून 2013 से 2023 के बीच में जितने भी होर्डिंग्स के टेंडर निकाले। उनमें उत्तराखंड की अधिप्राप्ति प्राप्ति नियमावली 2008 का उल्लंघन हुआ है।
नियमावली में जिक्र है कि किसी भी टेंडर कार्य को 2% से ज्यादा EMD न ली जाए। जबकि नगर निगम ने इसको 10% किया, जिससे कई Elligible bidders को रोका गया। ये घोटाला नियमों के हेर-फेर से कंपनियों को रोकने से शुरू हुआ और हाईकोर्ट के आदेशों को तोड़ मरोड़कर अपने हिसाब से इस्तेमाल करने से तक चलता रहा।
बहुत खींचातानी करने के बाद जनवरी 2022 में नगर निगम एक टेंडर निकालता है। जिसमें मीडिया 24*7 को फिर से 30 मार्च 2023 को सफल bidder साबित किया गया। टेंडर की शर्तो के अनुसार 3 दिन के अंदर उनको जमानत धनराशि जमा करनी थी। और एक एग्रीमेंट के लिए 2% राशि के स्टांप नगर निगम देहरादून में जमा कराने थे।लेकिन कई नोटिस मिलने के बावजूद कंपनी ने कोई कार्रवाई नहीं की। ऐसी स्थिति में कंपनी ब्लैकलिस्ट होनी चाहिए थी। लेकिन, इसके 2–3 महीने बाद 9 सितंबर 2022 को उसी कम्पनी को फिर से पुनः कार्यादेश जारी होता है ।
सबसे बड़ा घोटाला तो इन टेंडरों में हाई कोर्ट नैनीताल के 13.06.2017 Order के MisInterpretation को लेकर हुआ है। जिसमें हाई कोर्ट नैनीताल ने आदेश दिया था कि इस टेंडर में जो भी कार्यवाही की जाएगी वो माननीय हाई कोर्ट के संज्ञान में लाने और अनुमति के लाने के बाद की जाएगी, लेकिन इन्होंने इसका उल्टा घुमाके उसको अपने हर आदेश में यह लिखा है कि माननीय हाई कोर्ट ने आगे ये कारवाई करने ने मना कर दिया है। और अपने चहेतों को दे दिया।
थापर ने पत्रकारों से कहा कि 2019 में नगर निगम द्वारा एक सर्वे कमिटी बनाई गई, इसने 325 अवैध होर्डिंग की रिपोर्ट दी किंतु आजतक यह नहीं बताया गया की अवैध होर्डिंग जनता में बेच कौन रहा था? क्या यही तीन कंपनियां थी या इनकी सहयोगी कंपनियां थी? और जो भी कंपनियां अवैध Hoarding बेच रहे थी उस पर नगर निगम ने क्या कार्रवाई की?
उल्लेखनीय है कि 27 मार्च 2015 को भाजपा के ही कम से कम 10 पार्षदगणों ने इसमें जांच के लिए एक पत्र लिखा, इसमें
आरोप लगाया था कि 3 बड़ी कंपनियों ने मिलकर पुल बनाकर ये कार्य किया है इससे नगर निगम को आर्थिक हानि होने की संभावनाएं है, पर नगर निगम प्रशासन ने कोई उनकी अनसुनी करते हुए हुए, उन्हीं कंपनियों को काम दे दिया। इन 10 वर्षो में नगर निगम द्वारा किए गए इस अनैतिक कार्य से कुछ कंपनियों को लगभग 25 से 30 करोड़ रुपए प्रतिवर्ष व्यापार का फायदा हुआ, जो 10 साल में 250 से 300 करोड़ रुपए का व्यापार का अनुमान है। और इससे नगर निगम देहरादून को 50 करोड़ से ज्यादा का राजस्व हानि होने का भी अनुमान है।
थापर ने कहा कि कांग्रेस इस भ्रष्टाचार पर जांच की मांग कर रही है, जिसमें दोषी कंपनियों को ब्लैकलिस्ट कर और एक 3rd पॉर्टी (Audit Assessment) करवाया जाए, पिछले दस वर्षों के नगर निगम देहरादून में हुई राजस्व हानि को ब्याज सहित इन बड़ी कंपनियों से वसूला जाए।* अगर कांग्रेस की भ्रष्टाचार की जाँच की मांगो पर मेयर, सरकार या मुख्यमंत्री ने जल्द ही कोई सख्त कार्यवाही नहीं की तो हाई कोर्ट की शरण ली जाएगी।
उन्होंने बताया कि आरटीआई से सारी जानकारियां एकत्रित करी एकत्रित करने के बाद मेयर नगर देहरादून सुनील उनियाल गामा को बीते 11 अगस्त को पत्र देकर जांच की मांग की। इसके बाद नगर आयुक्त को भी पत्र दिया। वहीं, 12 सितंबर शासन को तथ्यों सहित शिकायत पत्र दिया गया। अब शासन ने 8 नवंबर को नगर निगम से आख्या मांगी है। लेकिन अभी तक कोई कारवाई नहीं हुई।
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