
बहुत समय पहले की बात है। एक गाँव के बाहर एक साधु छोटी सी कुटिया में रहते थे। वह बहुत विद्वान और दयालु थे। गाँव के लोग अपनी-अपनी परेशानियाँ लेकर उनके पास आते और साधु हर किसी को समझदारी भरी सलाह देते।
उसी गाँव में एक चोर भी रहता था। जब उसे साधु के ज्ञान की बात पता चली, तो उसने सोचा कि मैं भी जाकर उनसे कुछ सीखता हूँ। वह साधु के पास पहुँचा और बोला —
“गुरुदेव, मैं एक चोर हूँ। मुझे कोई उपदेश दीजिए, लेकिन इतना मत कहिए कि चोरी छोड़ दूँ, क्योंकि यही मेरा काम है, मैं इसे नहीं छोड़ सकता।”
साधु मुस्कुराए और बोले —
“ठीक है, मैं तुमसे चोरी छोड़ने को नहीं कहूंगा। बस एक बात हमेशा याद रखना — हर औरत को अपनी माँ या बहन की तरह देखना। कभी भी किसी महिला का अपमान मत करना, और ऐसा कोई काम मत करना जिससे किसी महिला को दुख पहुँचे।”
चोर ने यह बात दिल से मान ली और वचन दिया कि वह इस नियम को कभी नहीं तोड़ेगा।
कुछ समय बाद, उसी राज्य के राजा और रानी के यहाँ कोई संतान नहीं थी। राजा दुखी होकर रानी से नाराज़ रहने लगा और उसे एक अलग महल में भेज दिया।
एक रात वही चोर रानी के महल में चोरी करने पहुँच गया। जब वह कीमती गहने उठा रहा था, तभी रानी की नज़र उस पर पड़ गई। उधर महल के पहरेदारों ने किसी को अंदर घुसते देखा और राजा को खबर दे दी। राजा तुरंत ही वहाँ पहुँच गया और छिपकर देखने लगा कि क्या हो रहा है।
रानी ने चोर से पूछा, “तू यहाँ कैसे आया?”
चोर बोला, “मैं घोड़े पर आया हूँ।”
रानी बोली, “अगर तू मेरी एक इच्छा पूरी कर दे, तो मैं तेरे घोड़े को सोने-चाँदी से लदवा दूँगी।”
चोर को साधु की बात याद आ गई — हर महिला माँ या बहन के समान होती है।
वह तुरंत बोला, “महारानी जी, आप तो मेरी माँ के समान हैं। बताइए, आपकी क्या इच्छा है? मैं चोर हूँ, लेकिन आपकी मदद ज़रूर करूँगा।”
राजा ये सब बातें सुन रहा था। चोर की बातें सुनकर राजा बहुत प्रभावित हुआ। अगले दिन उसने उसे दरबार में बुलवाया और कहा,
“मैं तुम्हारे अच्छे व्यवहार से बहुत खुश हूँ, जो मांगना हो मांग लो।”
चोर ने सिर झुकाकर कहा,
“महाराज, मेरी बस एक प्रार्थना है — रानी जी को उनके असली स्थान पर वापस ले जाइए। उन्हें दुख मत दीजिए।”
राजा उसकी बात सुनकर भावुक हो गया। उसने रानी से माफी माँगी और उन्हें फिर अपने साथ रहने का निमंत्रण दिया।
रानी बोली, “महाराज, इस चोर का दिल बहुत नेक है। क्यों न हम इसे ही अपना पुत्र बना लें?”
राजा भी सहमत हो गया। उसने चोर को अपना बेटा और राज्य का उत्तराधिकारी घोषित कर दिया।
उस दिन से चोर का जीवन पूरी तरह बदल गया। उसने चोरी छोड़ दी और सच्चे मार्ग पर चलने लगा।