(एक सच्ची और प्रेरणादायक कथा)

बात बहुत पुरानी है। एक समय की बात है, मलूक दास नाम के एक व्यक्ति थे, जो शुरुआती दिनों में ज़्यादा धार्मिक प्रवृत्ति के नहीं थे। उनका मन ईश्वर भक्ति में बहुत नहीं लगता था।
एक दिन, उनके गाँव में एक पहुँचे हुए साधु कुछ दिनों के लिए पधारे। वे साधु बड़े ही विद्वान और ज्ञानी थे। वे प्रतिदिन सुबह-शाम गाँव वालों को एकत्र कर रामायण का पाठ सुनाते और भगवान राम की महिमा का बखान करते।
एक दिन उत्सुकतावश मलूक दास भी साधु की चौपाल पर पहुँच गए। उस समय साधु गाँव वालों को भगवान राम की अपार महिमा के बारे में बता रहे थे। वे कह रहे थे, ‘राम जी इस दुनिया के सबसे बड़े दाता हैं। वे ही भूखों को अन्न, नंगों को वस्त्र और आश्रयहीनों को आश्रय प्रदान करते हैं।’
साधु की यह बात सुनकर मलूक दास के मन में संदेह पैदा हुआ। उन्हें यह बात ठीक से समझ नहीं आई। उन्होंने साधु से विनम्रतापूर्वक पूछा, ‘क्षमा करें, महात्मन! लेकिन यदि मैं चुपचाप बैठकर केवल राम का नाम जपता रहूँ और कोई काम न करूँ, तो क्या तब भी राम मुझे भोजन देंगे?’
साधु ने बिना किसी संशय के दृढ़ता से कहा, ‘अवश्य देंगे।’
मलूक दास ने फिर पूछा, ‘यदि मैं किसी घने, सुनसान जंगल में बिलकुल अकेला बैठ जाऊँ, तब भी?’
साधु ने अपनी बात पर बल देते हुए कहा, ‘हाँ, तब भी राम तुम्हें भोजन देंगे। वे सबके दाता हैं।’
बस, साधु की यही बात मलूक दास के हृदय में समा गई। वे साधु के इस कथन की सत्यता परखने के लिए तुरंत जंगल की ओर चल पड़े। जंगल में पहुँचकर उन्होंने एक ऊँचा-सा पेड़ देखा और उस पर चढ़कर बैठ गए। जंगल चारों ओर ऊँचे-ऊँचे पेड़ों और कंटीली झाड़ियों से भरा हुआ था।
दिन ढल गया और चारों ओर घना अँधेरा छा गया। मलूक दास पूरी रात उस पेड़ पर ही बैठे रहे, लेकिन उन्हें कहीं से भी भोजन नहीं मिला। वे न तो स्वयं पेड़ से नीचे उतरे और न ही उन्होंने कहीं से भोजन की तलाश की।
पूरी रात ऐसे ही बीत गई। अगली सुबह, जब जंगल का सन्नाटा अभी भी छाया हुआ था, मलूक दास को दूर से घोड़ों की टापों की आवाज सुनाई दी। थोड़ी देर में, चमकदार पोशाकों में कुछ राजकीय अधिकारी उसी पेड़ के पास आकर रुके, जिस पर मलूक दास बैठे थे।
एक अधिकारी ने अपने थैले से भोजन का डिब्बा निकाला ही था कि अचानक एक शेर की ज़ोरदार दहाड़ सुनाई पड़ी। शेर की दहाड़ सुनकर सभी घोड़े डरकर बेतहाशा भाग गए। अधिकारी भी इतने भयभीत हो गए कि वे भोजन का थैला वहीं छोड़कर अपनी जान बचाकर भाग खड़े हुए। शेर भी एक दहाड़ मारता हुआ दूसरी ओर भाग गया। ये सारी घटनाएँ मलूक दास पेड़ के ऊपर से शांत भाव से देख रहे थे।
मलूक दास ने मन ही मन सोचा कि लगता है रामजी ने उसकी सुन ली है, वरना इस घने जंगल में भला मेरे लिए भोजन कैसे पहुँचता? परन्तु फिर भी उन्होंने नीचे उतरकर भोजन नहीं किया। वे राम की कृपा का और अधिक प्रत्यक्ष प्रमाण देखना चाहते थे।
इसके कुछ देर बाद, तीसरे पहर में, डाकुओं का एक दल उधर से गुजरा। उनकी नज़र पेड़ के नीचे पड़े भोजन पर पड़ी। डाकुओं ने उसे देखकर बड़े आश्चर्य से कहा, ‘अरे, भगवान की लीला तो देखो! हम लोग भूखे हैं और इस घने जंगल में हमारे लिए भोजन रखा है। आओ सभी, पहले भोजन करते हैं।’
लेकिन उनमें से एक डाकू ने सतर्क करते हुए कहा, ‘सरदार, जंगल में इस तरह बिना किसी के यह भोजन मिलना मुझे कुछ रहस्यमय लग रहा है। कहीं इसमें जहर न हो!’
डाकुओं के सरदार ने उसकी बात सुनकर कहा, ‘तुम ठीक कह रहे हो। तब तो भोजन लाने वाला भी यहीं कहीं आसपास छिपा होगा, पहले उसे ढूँढ़ते हैं।’ सभी डाकू इधर-उधर बिखरने लगे और तभी एक डाकू की नज़र पेड़ के ऊपर बैठे मलूक दास पर पड़ी।
डाकू ने चिल्लाकर कहा, ‘मिल गया! अरे! भोजन में ज़हर मिलाकर तू ऊपर बैठा है!’
मलूक दास ने पेड़ के ऊपर से ही जवाब दिया, ‘नहीं! भोजन में विष नहीं है।’
डाकू के सरदार ने अब मलूक दास की बात पर विश्वास नहीं किया। उसने कहा, ‘पेड़ पर चढ़कर इसे ही भोजन कराओ, अभी सच-झूठ का पता चल जाएगा।’ तीन-चार डाकू पेड़ पर चढ़े और मलूक दास को वह भोजन खाने पर विवश कर दिया।
मलूक दास ने भोजन किया और नीचे उतरकर डाकुओं को पूरी कहानी विस्तार से बताई कि कैसे अधिकारी भोजन लाए, कैसे शेर की दहाड़ सुनकर वे भाग गए और भोजन वहीं छूट गया। डाकुओं ने उनकी बात सुनी और उन्हें सच्चा मानकर छोड़ दिया।
इस असाधारण घटना के बाद मलूक दास को ईश्वर के प्रति गहरी और अटूट श्रद्धा हो गई। उन्हें साधु की बात का प्रमाण मिल गया था। गाँव पहुँचकर मलूक दास ने सबसे पहले यह प्रसिद्ध दोहा कहा:
अजगर करे न चाकरी, पंछी करे न काम।
दास मलूका कह गए, सबके दाता राम॥
यह दोहा ईश्वर पर पूर्ण विश्वास और उनकी सर्वव्यापकता का प्रतीक बन गया। मलूक दास को उनके इस अनुभव ने एक महान संत बना दिया।