वृंदावन के राधा रमण मंदिर में एक अद्भुत और रहस्यमयी परंपरा है जो भक्तों और इतिहासकारों को सदियों से आकर्षित करती आ रही है। यहाँ की अग्नि, जो 500 वर्षों से अखंड रूप से जल रही है, न केवल भक्ति की गहराई को दर्शाती है बल्कि एक चमत्कारिक घटना के रूप में भी देखी जाती है।
वृंदावन:राधा रमण मंदिर का इतिहास बहुत ही अद्भुत है। यह मंदिर वृंदावन में स्थित है और इसकी स्थापना गोपाल भट्ट गोस्वामी ने की थी, जो श्री चैतन्य महाप्रभु के छह गोस्वामियों में से एक थे। इस मंदिर की प्रतिमा स्वयं प्रकट हुई थी एक शालिग्राम शिला से, और इसके चेहरे पर एक रहस्यमयी मुस्कान है।
मंदिर की स्थापना वैशाख मास की पूर्णिमा के दिन सन् 1542 में हुई थी, और इस घटना को हर साल दूध और विभिन्न अन्य सामग्रियों से देवता की स्नान करके मनाया जाता है। गोपाल भट्ट गोस्वामी की समाधि भी राधा रमण मंदिर में स्थित है।
यह मंदिर वृंदावन के सात प्राचीनतम मंदिरों में से एक है और यहाँ भगवान कृष्ण की जो मूर्ति है, वह स्वयं प्रकट हुई थी। राधा रमण की मूर्ति की पीठ पीछे से शालिग्राम जैसी दिखती है, अर्थात पीछे से देखने पर शालिग्राम के दर्शन होते हैं
राधा रमण मंदिर की स्थल-पुराण कहानी
राधा रमण मंदिर की स्थल-पुराण कहानी बहुत ही रोचक और प्रेरणादायक है। इस कहानी के अनुसार,
श्री गोपाल भट्ट गोस्वामी जी अपनों प्रचार यात्रा के दौरान गण्डकी नदी में स्नान कर सूर्य भगवान को अर्घ दे रहे थे तभी उनके हथेली में शालिग्राम भगवान का एक अद्भुत शिला उनके हाथ में आ गया। जब गोस्वामी जी दुबारा अर्घ लिया तो पुनः एक और शिला उनके हथेली में आ गयी। इस प्रकार 12 बार करते हुए 12 शालिग्राम जी शिला उनके हाथ में आयी। फिर गोपाल भट्ट गोस्वामी जी सभी शिलाओं को लेकर वृंदावन धाम लेकर आ गए। और यहाँ पर आकर यमुना नदी के केशी घाट तट कर नजदीक ही एक कुटी बनाकर सभी शिलाओं को वहां विराजित कर श्रद्धा भाव से पूजा अर्चना शुरू कर दिए।
एक बार वृंदावन की यात्रा पर निकले हुए एक सेठ जी ने सभी श्री विग्रहों के लिए विभिन्न प्रकार के महंगे वस्त्र और आभूषण दिए। गोपाल भट्ट गोस्वामी जी ने भी वस्त्र और आभूषण प्राप्त किए, लेकिन जब बात श्री शालिग्राम जी की आई, तो उन्होंने सोचा कि वे श्री शालिग्राम जी को कैसे वस्त्र धारण कराएं। उनके मन में भाव आया कि अगर उनके भगवान अन्य विग्रहों के भांति होते, तो वे भी उन्हें अनेक प्रकार से सजाते और झूले पर बिठाकर झूला झुलाते। उस रात उन्हें नींद नहीं आई, और सुबह जब उनकी आँखें खुलीं, तो उन्होंने देखा कि श्री शालिग्राम जी साक्षात् त्रिभंग ललित द्विभुज मुरलीधर श्याम जी के रूप में बैठे हुए हैं। यह घटना विक्रम संवत 1599 वैशाख शुक्ल पूर्णिमा के दिन हुई।
इस दिव्य घटना के बाद, गोपाल भट्ट गोस्वामी जी ने अपने भगवान का विशेष रूप से श्रृंगार किया और उनका सेवा भाव किया। उन्होंने अपने गुरुजनों को बुलाया और राधारमण जी के प्राकट्य उत्सव को पूरे श्रद्धाभाव से मनाया। भगवान राधारमण जी गोस्वामी जी के आवास के निकट एक पीपल के पेड़ के नीचे प्रकट हुए थे, जो कि वही दिव्य स्थल है 4500 वर्ष पूर्व भगवान श्री कृष्ण एक रास के दौरान श्री राधा जी से समाधि ले लिए थे। परन्तु गोपाल भट्ट गोस्वामी जी के निवेदन पर फिर से उसी स्थल विग्रह के रूप में प्रकट हुए। जब भगवान श्री कृष्ण उस स्थान से भिन्न हुए थे तो राधा जी ने उन्हें रमन के नाम से पुकारा और फिर उनको सब राधा के रमन के नाम से जानने लगे तो इस प्रकार गोपाल भट्ट गोस्वामी जी ने उनका नाम राधारमण रख दिया।
यह कहानी न केवल भक्ति और श्रद्धा की भावना को दर्शाती है, बल्कि यह भी बताती है कि कैसे भगवान अपने भक्तों की भावनाओं का सम्मान करते हैं और उनकी इच्छाओं को पूरा करते हैं।
राधा रमण मंदिर में एक अद्भुत और रहस्यमयी परंपरा
वृंदावन के राधा रमण मंदिर में एक अद्भुत और रहस्यमयी परंपरा है जो भक्तों और इतिहासकारों को सदियों से आकर्षित करती आ रही है। यहाँ की अग्नि, जो 500 वर्षों से अखंड रूप से जल रही है, न केवल भक्ति की गहराई को दर्शाती है बल्कि एक चमत्कारिक घटना के रूप में भी देखी जाती है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, चैतन्य महाप्रभु के प्रिय शिष्य, गोपाल भट्ट गोस्वामी ने अपनी अगाध भक्ति के बल पर राधा रमण जी के विग्रह को प्रकट किया था। मान्यता है कि जब भगवान प्रकट हुए तब गोपाल भट्ट जी ने उनका भोग बनाने के लिए हवन की लकड़ियों को रख करमंत्रोच्चारण के माध्यम से अग्नि को प्रज्वलित किया, जो आज तक निरंतर जल रही है। तब से अब तक वह अग्नि प्रज्वलित है। आज भी राधा रमण मंदिर में ठाकुर जी का भोग उसी अग्नि पर पकाया जाता है।
इस अग्नि की अखंडता और इसके पीछे की आस्था ने राधा रमण मंदिर को न केवल वृंदावन में बल्कि पूरे भारत में एक पवित्र स्थल के रूप में प्रतिष्ठित किया है। यह अग्नि और इसकी परंपरा भक्तों के लिए अनंत काल तक भक्ति और श्रद्धा का प्रतीक बनी रहेगी।
राधारमण जी के विग्रह के बारे में कुछ ख़ास बातें :
राधा रमण मंदिर में भगवान कृष्ण की जो मूर्ति है, वह स्वयं प्रकट हुई थी. इस मंदिर में ठाकुर जी की मूर्ति तो एक है लेकिन उस एक मूर्ति में तीन छवि नजर आती हैं. कभी यह छवि गोविंद देव जी के समान दिखती है. तो कभी यह छवि वक्ष स्थल गोपी नाथ जी की भांति नजर आती है. तो कभी चरण मदन मोहन जी के विग्रह रूप के दर्शन राधा रमण जी की प्रतिमा में दिखाई देने लग जाते हैं
राधा रमण मंदिर में कई पारंपरिक उत्सव मनाए जाते हैं। विशेष रूप से, होली का उत्सव यहाँ बहुत ही अनोखे और भक्तिमय अंदाज में मनाया जाता है। होली के 40 दिन पहले से ही वृंदावन में होली के उत्सव शुरू हो जाते हैं, और राधा रमण मंदिर में भक्त जमकर होली खेलते हैं। इस दौरान मंदिर को रंग-बिरंगे गुब्बारों से सजाया जाता है, और ठाकुरजी की राजभोग आरती के बाद भक्तों पर प्रसादी गुलाल बरसाया जाता है।इसके अलावा, मंदिर के मुख्य श्रीविग्रह का प्राकट्योत्सव भी बड़े धूमधाम से मनाया जाता है।