
पुरी, ओडिशा — पुरी के प्राचीन जगन्नाथ मंदिर में विराजमान भगवान जगन्नाथ, उनके भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा की प्रतिमाएं अपनी विशाल और गोल आंखों के साथ भक्तों को आकर्षित करती हैं। इन आंखों की अनूठी बनावट और आकार ने सदियों से भक्तों और विद्वानों को चिंतन में डाल दिया है। ये आंखें न केवल दर्शनीय हैं, बल्कि एक गहरे रहस्य को भी समेटे हुए हैं।
इन दिव्य प्रतिमाओं की आंखों के पीछे एक पौराणिक कथा है। कहा जाता है कि जब भगवान श्रीकृष्ण ने द्वारका में अपना निवास स्थापित किया, तो वृंदावन से उनके माता-पिता और रोहिणी मां उनसे मिलने आए। द्वारकावासी उन्हें अपना ईश्वर मानते थे, जबकि वृंदावनवासी उन्हें अपना प्रेमी मानते थे। एक दिन, रोहिणी मां ने द्वारकावासियों को श्रीकृष्ण की वृंदावन में की गई रासलीला की कथाएं सुनाईं। इस दौरान, सुभद्रा को द्वार पर खड़ा होने को कहा गया, जबकि श्रीकृष्ण और बलराम उनके दोनों ओर खड़े हो गए।
जैसे ही रोहिणी मां ने कथा सुनाना शुरू किया, तीनों भाई-बहन की आंखें विस्मय से फैल गईं और उनकी आंखों की पुतलियां इतनी बड़ी हो गईं कि वे पूरी आंख को भर गईं। इस अद्भुत दृश्य को देखकर नारद मुनि ने प्रार्थना की कि यह अनोखा रूप सभी भक्तों को दर्शन हो।
इस प्रार्थना के फलस्वरूप, भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की प्रतिमाएं इसी अनोखे रूप में जगन्नाथ मंदिर में स्थापित की गईं। उनकी विशाल आंखें न केवल उनकी दिव्यता का प्रतीक हैं, बल्कि यह भी दर्शाती हैं कि भगवान सभी जीवों को समान रूप से देखते हैं और उनकी कृपा सभी पर समान रूप से बरसती है। इस तरह, जगन्नाथ मंदिर न केवल एक पवित्र तीर्थस्थल है, बल्कि एक ऐसा स्थान भी है जहां भक्त अपने आराध्य की अनोखी आंखों में अपनी आत्मा का प्रतिबिंब देख सकते हैं।