
प्राचीन काल की बात है। एक बार देवताओं और दानवों ने मिलकर समुद्र मंथन किया। मंथन से अनेक अद्भुत वस्तुएँ निकलीं — उन्हीं में से एक था एक दिव्य, उज्जवल अश्व, जिसका नाम था उच्चैःश्रवा। यह घोड़ा श्वेत वर्ण का था, तेजस्वी और अनुपम सौंदर्य का प्रतीक।
उसे देखकर नागों की माता कद्रू ने अपनी सौत विनता से कहा, “देखो! यह अश्व तो काले बालों वाला है।”
विनता ने शांत स्वर में उत्तर दिया, “नहीं, यह घोड़ा पूर्णतः श्वेत है — न काला है, न लाल।”
दोनों में विवाद बढ़ा, और अंततः कद्रू ने शर्त रखी —
“यदि मैं इस अश्व के बालों को काले सिद्ध कर दूँ, तो तुम मेरी दासी बनोगी, और यदि न कर सकी तो मैं तुम्हारी दासी बन जाऊँगी।”
विनता ने यह शर्त स्वीकार कर ली।
अब कद्रू ने अपनी योजना बनाई। उसने अपने पुत्रों — नागों — को बुलाया और कहा,
“तुम सब उच्चैःश्रवा के बालों में जाकर लिपट जाओ, जिससे वह काले बालों वाला प्रतीत हो, और मैं यह शर्त जीत लूँ।”
परंतु नागों ने इस छल में भाग लेने से इंकार कर दिया। उन्होंने कहा,
“माँ! यह अनुचित है। हम किसी कपट में भाग नहीं लेंगे।”
कद्रू अपने ही पुत्रों की बात सुनकर क्रोध में भर गई और उन्हें भयंकर श्राप दे दिया —
“पाण्डवों के वंश में उत्पन्न राजा जनमेजय जब सर्प-यज्ञ करेंगे, तब तुम सब उस यज्ञ की अग्नि में भस्म हो जाओगे।”
यह सुनकर सभी नाग भयभीत हो गए। वे अपने प्रमुख वासुकि के साथ ब्रह्माजी की शरण में पहुँचे और अपना दुःख प्रकट किया।
ब्रह्माजी ने उन्हें आश्वस्त किया:
“घबराओ मत। समय आने पर एक तेजस्वी ब्राह्मण आस्तीक मुनि जन्म लेंगे। वे जनमेजय के सर्पयज्ञ को रोक देंगे और तुम सबकी रक्षा करेंगे।”
ब्रह्माजी ने यह भी कहा कि जिस दिन आस्तीक नागों की रक्षा करेंगे, वह तिथि पंचमी होगी। उसी दिन उन्होंने नागों को वरदान दिया था —
“पंचमी तिथि तुम्हारे लिए शुभ और पूज्य होगी।”
बाद में, जब जनमेजय ने सर्पयज्ञ आरंभ किया और अग्नि में लाखों नाग जलने लगे, तभी आस्तीक मुनि वहाँ पहुँचे और अपनी वाणी, ज्ञान और संयम से यज्ञ को रोक दिया। इस प्रकार, नाग जाति का संहार टल गया।
तभी से पंचमी तिथि नागों के लिए विशेष मानी जाती है। इसी दिन नागों की पूजा की जाती है, ताकि उनके कोप से रक्षा हो और उनका आशीर्वाद प्राप्त हो।