
वृंदावन और बरसाना की पावन भूमि में भक्ति की कई ऐसी गाथाएँ हैं जो धर्म और जाति की सीमाओं से परे हैं। इन्हीं में से एक अनूठी और हृदय को छू लेने वाली कहानी है गुलाब सखी की, जो जन्म से एक मुस्लिम होते हुए भी श्री राधा रानी की अनन्य भक्त बन गईं।
लगभग सवा सौ साल पुरानी यह कथा बरसाना गाँव की है, जहाँ गुलाब खान नाम का एक गरीब मुस्लिम सारंगी वादक रहता था। गुलाब खान का जन्म तो मुस्लिम परिवार में हुआ था, लेकिन उनका मन और आत्मा ब्रज की भक्ति में रची-बसी थी। वह बरसाना में स्थित लाडली जी (राधा रानी) के मंदिर की सीढ़ियों पर बैठकर हर दिन अपनी सारंगी बजाता था।उसकी सारंगी की धुनें इतनी मधुर और भक्तिपूर्ण होती थीं कि सुनने वाले मंत्रमुग्ध हो जाते थे। इसी से मिलने वाली भिक्षा से उसके परिवार का गुजारा चलता था।
गुलाब खान की एक छोटी और बहुत प्यारी बेटी थी, जिसे वह लाड़-प्यार से ‘राधा’ कहकर पुकारता था।जब गुलाब खान मंदिर प्रांगण में सारंगी बजाता, तो उसकी नन्हीं बेटी राधा भाव-विभोर होकर श्री जी के सामने नृत्य करती थी। पिता-पुत्री की यह भक्तिमय जोड़ी पूरे गाँव के लिए स्नेह का पात्र थी।
जीवन का महत्वपूर्ण मोड़: बेटी का विवाह और वियोग
समय बीता और बेटी राधा विवाह योग्य हो गई। गाँव वालों और मंदिर के पुजारियों ने गुलाब खान को उसकी शादी करने की सलाह दी और मदद का आश्वासन भी दिया। बेटी के लिए एक अच्छा वर देखकर गुलाब खान ने ब्रजवासियों की सहायता से उसका विवाह कर दिया। पर अपनी लाडली ‘राधा’ की विदाई के बाद गुलाब खान का जीवन मानो सूना हो गया। वह अपनी बेटी के वियोग में इस कदर टूट गया कि उसने खाना-पीना और सारंगी बजाना सब छोड़ दिया।
लोग उसे पागल समझने लगे। बेटी की याद में वह दिन-रात बस “राधा! राधा!” पुकारता रहता।
जब स्वयं राधा रानी ने दिए दर्शन
बेटी के जाने के तीन दिन बाद, वियोग में व्याकुल गुलाब खान भूखा-प्यासा मंदिर की चौखट पर गुमसुम बैठा था।कहते हैं कि तीसरी रात को, जब चारों ओर सन्नाटा था, गुलाब के कानों में एक मधुर आवाज आई, “बाबा, मैं आ गई हूँ! आज सारंगी नहीं बजाओगे क्या? देखो मैं नाचूँगी।”
गुलाब खान ने आँखें खोलीं तो देखा कि उसके सामने एक दिव्य बालिका खड़ी है, जिसका रूप बिल्कुल उसकी बेटी राधा जैसा था। उसे लगा जैसे उसकी राधा लौट आई है। उसने अपनी सारंगी उठाई और बजाना शुरू कर दिया। वह बालिका अलौकिक सौंदर्य के साथ नृत्य करते-करते मंदिर की सीढ़ियों की ओर भागी और फिर अंतर्ध्यान हो गई। गुलाब खान समझ गया कि यह उसकी बेटी नहीं, बल्कि साक्षात श्री राधा रानी थीं, जिन्होंने उसकी पुकार सुनकर उसे दर्शन दिए थे। इस अद्भुत अनुभव के बाद गुलाब खान भी वहाँ से गायब हो गया और फिर किसी को कभी नहीं दिखा।
श्री जी की लीला में प्रवेश का प्रमाण
लोग मान चुके थे कि बेटी के गम में पागल होकर गुलाब खान कहीं चला गया या मर गया। लेकिन कुछ समय बाद एक रात, मंदिर के एक पुजारी जब श्री जी को शयन कराकर परिक्रमा कर रहे थे, तो उन्हें झाड़ियों के पीछे से किसी की आवाज आई। पुजारी ने पूछा, “कौन है?” उत्तर मिला, “तिहारो गुलाब।”
पुजारी ने आश्चर्य से कहा, “गुलाब? तुम तो मर गए थे!” उस दिव्य स्वर ने उत्तर दिया, “मैं मरा नहीं, श्री जी की नित्य लीला में सम्मिलित हो गया हूँ।”जब पुजारी ने इसका प्रमाण माँगा, तो गुलाब ने उनके हाथ में पान का वही बीड़ा रख दिया जो पुजारी जी कुछ देर पहले ही श्री राधा रानी को भोग लगाकर आए थे। यह चमत्कार देखकर पुजारी अवाक रह गए। इसके बाद गुलाब सखी का वह स्वर हमेशा के लिए मौन हो गया।
आज भी बरसाना में प्रेम सरोवर के पास उनकी स्मृति में एक चबूतरा बना हुआ है, जिसे ‘गुलाब सखी का चबूतरा’ के नाम से जाना जाता है।यह स्थान धर्म से परे सच्ची भक्ति का प्रतीक है और यह याद दिलाता है कि निश्छल प्रेम और शुद्ध हृदय से की गई भक्ति से भगवान को भी पाया जा सकता है।