
देहरादून: उत्तराखंड के बिजली उपभोक्ताओं के लिए एक बड़ी खुशखबरी है। अब शाम के पीक आवर्स (अधिकतम मांग के समय) में उत्तराखंड पावर कॉर्पोरेशन लिमिटेड (यूपीसीएल) को बाजार से महंगे दामों पर बिजली खरीदने की जरूरत नहीं पड़ेगी। राज्य में अब दिन के समय सस्ती बिजली को बैटरी में जमा किया जा सकेगा और पीक आवर्स में उपभोक्ताओं को सस्ती दरों पर उपलब्ध कराया जाएगा। इससे न केवल यूपीसीएल का वित्तीय बोझ कम होगा, बल्कि आम जनता के बिजली बिल में भी कमी आने की उम्मीद है।
इस महत्वपूर्ण बदलाव को संभव बनाने के लिए, उत्तराखंड विद्युत नियामक आयोग (यूईआरसी) ने एक नए नियम का मसौदा जारी किया है।”यूईआरसी (नवीकरण ऊर्जा स्त्रोतों तथा गैर जीवाश्म-ईंधन आधारित सह उत्पादक स्टेशनों से विद्युत की आपूर्ति हेतु शुल्क एवं अन्य निबंधन)(द्वितीय संशोधन) विनियम 2025″ नामक इस ड्राफ्ट पर आयोग ने 3 अक्टूबर तक आम जनता और संबंधित पक्षों से सुझाव मांगे हैं।
क्या है नई व्यवस्था?
यह नई प्रणाली बैटरी एनर्जी स्टोरेज सिस्टम (BESS) पर आधारित है, जिसे उत्तराखंड जल विद्युत निगम लिमिटेड (यूजेवीएनएल) और यूपीसीएल मिलकर राज्य में स्थापित कर रहे हैं। इस सिस्टम के तहत, यूपीसीएल दिन के समय जब बिजली की दरें कम होती हैं, तब बाजार से सस्ती बिजली खरीदकर इन विशाल बैटरियों में स्टोर करेगा। शाम के पीक आवर्स में, जब बिजली की मांग चरम पर होती है और बाजार में बिजली की दरें 12 रुपये प्रति यूनिट तक पहुंच जाती हैं, तब इन बैटरियों में संग्रहीत बिजली का उपयोग किया जाएगा। यह बिजली उपभोक्ताओं को लगभग 5 रुपये प्रति यूनिट की दर से उपलब्ध होगी, जो बाजार दर से आधे से भी कम है।
यूपीसीएल की होगी मुख्य भूमिका
नए नियमों के मसौदे के अनुसार, बैटरी एनर्जी स्टोरेज सिस्टम की निविदा निकालने की पूरी जिम्मेदारी यूपीसीएल की होगी। चाहे यूजेवीएनएल हो या कोई अन्य सरकारी संस्था, किसी भी बैटरी स्टोरेज सिस्टम की व्यावहारिकता का अंतिम निर्णय यूपीसीएल ही करेगा।
जनता को कैसे मिलेगा फायदा?
इस नई नीति से स्टोरेज सिस्टम लगाने वाली संस्थाओं को अब टैरिफ पर 8 प्रतिशत के बजाय 5 पैसे प्रति यूनिट मिलेंगे, जिससे सीधे तौर पर बिजली सस्ती होगी। इस कदम से पीक आवर्स में महंगी बिजली खरीदने की मजबूरी खत्म हो जाएगी, जिससे यूपीसीएल को सालाना करोड़ों रुपये की बचत होगी। इस बचत का लाभ अंततः प्रदेश के लाखों बिजली उपभोक्ताओं को मिलेगा, जिससे उनकी जेब पर पड़ने वाला बोझ कम होगा। यह कदम राज्य को ऊर्जा के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने और बिजली की दरों को नियंत्रित रखने में एक मील का पत्थर साबित हो सकता है।