गोलू देवता के मंदिर कई स्थानों पर हैं, जैसे कि चितई, चंपावत, घोड़ाखाल, और चमरखान (तहसील तारिखेत, जिला अल्मोड़ा)। चितई में स्थित गोलू देवता मंदिर उन्हें समर्पित सबसे प्रसिद्ध मंदिर है और यह लगभग 4 किलोमीटर (13,000 फीट) की ऊंचाई पर है। इसके अलावा, यह मंदिर बिनसर वन्यजीव अभयारण्य के मुख्य द्वार से और लगभग 10 किलोमीटर (33,000 फीट) अल्मोड़ा से दूर है।

अल्मोड़ा :वेद पुराणों में उत्तराखंड को देवभूमि बताया गया है. हिमालय पर्वत की गोद में बसे इस पावन जगह को ऋषि-मुनियों द्वारा कर्म भूमि भी कहा जाता है. इस भूमि पर देवी-देवताओं के कई ऐसे मंदिर हैं जो अपनी चमत्कारी शक्तियों के कारण देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी प्रसिद्ध हैं. आज हम ऐसे ही एक ‘चितई गोलू देवता’ के मंदिर के बारे में आपको बताएंगे जिनको सिर्फ चिठ्ठी लिख देने भर से आपकी सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाएंगी.
उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले में स्थित चितई गोलू देवता मंदिर वास्तव में एक अनोखा और पवित्र स्थान है। यह मंदिर गोलू देवता को समर्पित है, जिन्हें न्याय का देवता माना जाता है और उन्हें भगवान शिव का अवतार, गौर भैरव के रूप में पूजा जाता है। इस मंदिर में आने वाले भक्त अपनी मनोकामनाओं को लिखित रूप में चिठ्ठियों के माध्यम से देवता के समक्ष प्रस्तुत करते हैं, और मान्यता है कि गोलू देवता उनकी प्रार्थनाओं को सुनते हैं और उन्हें पूरा करते हैं।
गोलू देवता को उत्तराखण्ड के कुमायूँ समुदाय में एक महत्वपूर्ण देवता माना जाता है। वे न्याय के देवता के रूप में पूजे जाते हैं और उन्हें अत्यधिक श्रद्धा के साथ न्याय के वितरक के रूप में देखा जाता है। ऐतिहासिक दृष्टि से, वे राजा झाल राय और उनकी पत्नी कालिंका के बहादुर पुत्र और कत्यूरी राजा के सेनापति माने जाते हैं।
गोलू देवता को न्याय के देवता के रूप में पूजा जाता है इस मंदिर के अंदर सफेद घोड़े में सिर पर सफेद पगड़ी बांधे गोलू देवता की प्रतिमा है, जिनके हाथों में धनुष बाण है.
मनोकामना पूर्ण होने पर चढ़ाई जाती है घंटी

देश-विदेशों से गोलू देवता के इस मंदिर में लोग न्याय की गुहार लगाने आते हैं. ऐसी मान्यता है कि जब किसी को कोर्ट-कचहरी या फिर अन्य जगहों से न्याय नहीं मिलता है, तो वह यहां आकर गोलू देवता के समक्ष अर्जी लगाता हैं. यहां लोग अपनी मन्नत के लिए पत्र लिखते हैं और जब उनकी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं तो वापिस आकर आभार व्यक्त करते हुए घंटियों की भेंट चढ़ाते हैं.
मन्नत के लिए लिखना होता है आवेदन पत्र

आपने लोगों को मंदिरों में जाकर अपनी मुरादें मांगते देखा होगा। लेकिन उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले में स्थित गोलू देवता के मंदिर में केवल चिट्ठी लिखने से ही मुराद पूरी हो जाती है। मूल मंदिर के निर्माण के संबंध में हालांकि कोई ऐतिहासिक प्रमाण उपलब्ध नहीं हैं परन्तु पुजारियों के अनुसार 19वीं सदी के पहले दशक में इसका निर्माण हुआ था।
मंदिर में लाखों अद्भुत घंटे-घंटियों का संग्रह है। इन घंटियों को भक्त मनोकामना पूरी होने पर ही चढ़ाते हैं। मनोकामना के लिए चितई गोलू मंदिर में भक्त अपने भगवान को चिट्ठी लिखते हैं। इतना ही नहीं कई लोग तो स्टांप पेपर पर लिखकर अपने लिए न्याय मांगते हैं जिसका प्रत्यक्ष प्रमाण मंदिर में हाथ से लिखी लटकी हुई असंख्य चिट्ठियाँ है। इसीलिए गोलू देवता को स्थानीय मान्यताओं में न्याय का देवता कहा जाता है।
इस मंदिर में हस्त लिखित चिट्ठियों की संख्या लगातार बढ़ती जा रहीं है। अगर आप चितई गोलू देवता के मंदिर को ध्यान से देखें तो मंदिर की छत के नीचे अनगिनत चिट्ठियाँ है। मंदिर की भित्तियों पर एवं उनके चारों ओर कई स्टाम्प पेपर भी लटकाए हुए है। इन चिट्ठियों में घर-गृहस्ती, रोजगार, स्वास्थ्य, संपत्ति इत्यादि से सम्बंधित समस्याओं के विषय में याचिकाएं थीं। अगर आप इन चिट्ठियों को पढ़ें तो आपको ये लगेगा कि ये सभी चिट्ठिया गोलू देवता से सहायता की याचना कर रहीं है। यह माना जाता है कि जिन्हें कही से न्याय नहीं मिलता है वो गोलू देवता की शरण में जरुर पहुचते है।इसलिए, अगर आप अपनी किसी मनोकामना को पूरा करना चाहते हैं और न्याय की तलाश में हैं, तो उत्तराखंड के इस ग्वेल देवता के मंदिर का दर्शन अवश्य करें।