
विकासनगर: आस्था और लोक संस्कृति का प्रतीक, जौनसार-बावर का प्रसिद्ध जागड़ा पर्व पूरे क्षेत्र में पारंपरिक वैभव और हर्षोल्लास के साथ मनाया जा रहा है। भाद्रपद महीने में मनाए जाने वाले इस उत्सव के दौरान, आराध्य महासू देवता के मंदिरों में श्रद्धालुओं का सैलाब उमड़ पड़ा है। विशेष रूप से दसऊ गांव में, जहां इन दिनों छत्रधारी चालदा महासू महाराज विराजमान हैं, आस्था का अद्भुत संगम देखने को मिल रहा है।
हरतालिका तीज के अवसर पर मंगलवार (26 अगस्त) की रात को मंदिरों में रात्रि जागरण (जागड़ा) का आयोजन किया गया, जिसमें हजारों श्रद्धालुओं ने हिस्सा लिया। पूरी रात महासू देवता के भजन और लोकगीतों पर लोग झूमते रहे। बुधवार (27 अगस्त) को गणेश चतुर्थी के दिन, शुभ मुहूर्त में देवता की देव-डोलियों और चिह्नों को पवित्र स्नान के लिए बाहर निकाला गया। दसऊ गांव में छत्रधारी चालदा महाराज के देव चिह्नों और सिंहासन को पारंपरिक वाद्य यंत्रों की धुन पर ‘गेव पानी’ से स्नान कराया गया, और इस दौरान महासू महाराज के जयकारों से पूरा वातावरण गुंजायमान हो गया।
न्याय के देवता हैं महासू महाराज
महासू देवता को जौनसार-बावर, गढ़वाल और हिमाचल प्रदेश के कुछ हिस्सों में न्याय के देवता और भगवान शिव का अवतार माना जाता है। “महासू” वास्तव में चार भाई देवताओं का सामूहिक नाम है: बौठा महासू, बासिक महासू, पवासी महासू और चालदा महासू। बौठा महासू का मुख्य मंदिर हनोल में, बासिक महाराज का मैंद्रथ में और पवासी महासू का मंदिर थड़ियार में स्थित है।
चलायमान देवता हैं चालदा महाराज
चौथे भाई, छत्रधारी चालदा महासू, एक चलायमान देवता हैं, जो एक स्थान पर टिक कर नहीं रहते, बल्कि अपनी प्रवास यात्रा पर रहते हैं। इन दिनों वे दसऊ गांव में प्रवास पर हैं, जिसके कारण इस वर्ष जागड़ा पर्व का मुख्य केंद्र दसऊ बना हुआ है। श्रद्धालु दूर-दूर से अपने इष्ट देव के दर्शन और अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए यहां पहुंच रहे हैं।
यह पर्व न केवल गहरी आस्था का उत्सव है, बल्कि यह जौनसार-बावर की अनूठी लोक संस्कृति, परंपराओं और सामुदायिक एकता का भी प्रतीक है। हनोल, थैना, लखवाड़ और बिसोई सहित क्षेत्र के अन्य महासू मंदिरों में भी जागड़ा पर्व की धूम है, जहां हजारों भक्त देव दर्शन के लिए पहुंच रहे हैं। इस अवसर पर प्रशासन द्वारा सुरक्षा और यातायात के पुख्ता इंतजाम किए गए हैं।