
देहरादून: उत्तराखंड में इस बार प्री-मानसून की बारिश ने न सिर्फ मई की तपन से राहत दिलाई, बल्कि जून की शुरुआत को भी ठंडी बना दिया है। बीते 10 वर्षों में पहली बार जून के पहले सप्ताह में ऐसा मौसम देखने को मिला, जब पर्वतीय ही नहीं, बल्कि मैदानी इलाकों में भी एसी बंद कर गर्म कपड़े निकालने पड़े।
बारिश और बर्फबारी ने बदला मौसम
मौसम विभाग के अनुसार, ऊंचाई वाले इलाकों में हुई बर्फबारी और बारिश का असर सीधे मैदानी क्षेत्रों पर पड़ा है। श्रीनगर गढ़वाल से लेकर देहरादून तक ठंड बढ़ गई है। दून में लगातार दूसरे दिन तापमान सामान्य से 8 डिग्री तक नीचे दर्ज किया गया है।
- बुधवार को दून का अधिकतम तापमान सिर्फ 27.7 डिग्री सेल्सियस रहा।
- इससे पहले मंगलवार को भी तापमान 27.6 डिग्री दर्ज हुआ था।
- रात का न्यूनतम तापमान 17.3 डिग्री रहा, जो पिछले 10 सालों में सबसे कम है।
10 सालों में दून का सबसे ठंडा जून (न्यूनतम तापमान आधारित आंकड़े):
साल न्यूनतम तापमान तिथि
2015 19.4 26, 29 जून
2016 20.1 6 जून
2017 19.5 1, 10 जून
2018 18.4 2 जून
2019 19.0 18 जून
2020 19.1 1 जून
2021 19.0 12 जून
2022 19.0 19 जून
2023 18.2 1 जून
2024 21.2 2 जून
जलवायु परिवर्तन और मौसम पैटर्न में बदलाव
मौसम विशेषज्ञों का मानना है कि इस साल प्री-मानसून की बारिश में भी इजाफा हुआ है। साथ ही, बदलते जलवायु पैटर्न और मानवीय गतिविधियों जैसे हरे पेड़ों की कटाई भी इस बदलाव की प्रमुख वजह है।
एक रिपोर्ट के मुताबिक, दून घाटी में प्रतिदिन 40 लाख लीटर ऑक्सीजन कम हो रही है, जो विकास परियोजनाओं के लिए पेड़ों की कटाई का परिणाम है।
आज कैसा रहेगा मौसम?
मौसम विभाग ने गुरुवार के लिए भी हल्की बारिश, तेज हवाएं और गरज-चमक की संभावना जताई है।
- अधिकतम तापमान: 31°C
- न्यूनतम तापमान: 18°C
जलवायु परिवर्तन के सात प्रमुख कारण:
मिजोरम विश्वविद्यालय (केंद्रीय विश्वविद्यालय), ऐजाल के भूगोल एवं पर्यावरण विज्ञान विभाग के प्रोफेसर विश्वम्भर प्रसाद सती के अनुसार, जलवायु परिवर्तन वर्तमान युग की सबसे गंभीर वैश्विक चुनौतियों में से एक है।वे बताते हैं कि जलवायु की विविधता तो प्राकृतिक प्रक्रिया है – जैसे दिन-रात का होना, ऋतुओं का बदलना और पृथ्वी की गति। लेकिन जब जलवायु में अत्यधिक और असंतुलित परिवर्तन होने लगें – जैसे अत्यधिक गर्मी, सर्दी, वर्षा या सूखा, तो इसे जलवायु परिवर्तन (Climate Change) कहा जाता है, जो अब पृथ्वी के अस्तित्व के लिए खतरा बनता जा रहा है।
- एंथ्रोपोजेनिक ग्लोबल वार्मिंग (Anthropogenic Global Warming):
मानवीय गतिविधियों, जैसे औद्योगिकीकरण, प्रदूषण, ईंधन का अत्यधिक उपयोग आदि के कारण वातावरण का तापमान तेज़ी से बढ़ रहा है। - बायो थर्मोस्टैट (Bio-Thermostat):
जैविक प्रणाली में असंतुलन, जैसे वनों की कटाई और जैव विविधता में कमी, जलवायु संतुलन को बिगाड़ती है। - बादल निर्माण व एल्बेडो प्रभाव (Cloud Formation and Albedo):
पृथ्वी की सतह से सूर्य के प्रकाश का परावर्तन (एल्बेडो) और बदलते बादल पैटर्न भी तापमान को प्रभावित करते हैं। - ग्रीनहाउस गैसों के अतिरिक्त मानवीय प्रभाव:
CO₂, मीथेन, नाइट्रस ऑक्साइड जैसी गैसों का अत्यधिक उत्सर्जन, पृथ्वी की ऊष्मा को रोककर वातावरण को गरम बनाता है। - महासागरीय धाराएं (Oceanic Currents):
महासागरों की गर्म और ठंडी धाराएं वैश्विक जलवायु को प्रभावित करती हैं। इनमें गड़बड़ी से मौसम चक्र बिगड़ जाता है। - ग्रहों की गति (Orbital Movements):
पृथ्वी की सूर्य के चारों ओर गति और झुकाव में परिवर्तन दीर्घकालिक जलवायु प्रभाव डालते हैं (मिलानकोविच चक्र)। - सौर परिवर्तनशीलता (Solar Variability):
सूर्य की ऊर्जा में उतार-चढ़ाव भी पृथ्वी के तापमान और जलवायु में परिवर्तन ला सकता है।
प्रोफेसर सती का मानना है कि उपरोक्त कारण केवल पृथ्वी के तापमान बढ़ने की नहीं, बल्कि इसके ठंडे होने की संभावनाओं की ओर भी वैज्ञानिक संकेत करते हैं। यह जटिल परिस्थिति दर्शाती है कि पृथ्वी के पर्यावरण को लेकर हमारी समझ और प्रतिक्रिया और अधिक वैज्ञानिक, व्यापक और तात्कालिक होनी चाहिए।