
भगवान जगन्नाथ को वैसे तो 56 प्रकार के शुद्ध शाकाहारी भोग चढ़ाए जाते हैं, लेकिन एक पौराणिक कथा उनकी एक भक्त से जुड़ी है जो उन्हें मछली अर्पित करना चाहती थी।
प्राचीन काल में ओडिशा में एक वृद्ध महिला रहती थी, जो मछली बेचकर अपना जीवनयापन करती थी।वह भगवान जगन्नाथ की बहुत बड़ी भक्त थी। एक दिन जब वह जगन्नाथ जी के दर्शन करने मंदिर गई, तो उनके मनमोहक रूप को देखकर मोहित हो गई। उसने भगवान को चढ़ाए जाने वाले महाप्रसाद को देखा तो उसे लगा कि इसमें अधिकतर व्यंजन मीठे हैं और कुछ भी मसालेदार नहीं है।
चूंकि वह प्रतिदिन मछली खाती थी, उसे लगा कि भगवान को भी यह स्वादिष्ट और मसालेदार भोजन पसंद आएगा। इसी भोले और निश्छल भाव से उसने निश्चय किया कि वह अपने प्रभु के लिए स्वादिष्ट मछली बनाकर ले जाएगी।
अगले दिन, उस महिला ने बड़े ही प्रेम और श्रद्धा से मछली पकाई और उसे केले के पत्ते में लपेटकर भगवान जगन्नाथ को भोग लगाने के लिए मंदिर ले आई। जैसे ही वह मंदिर की सीढ़ियों पर चढ़ने लगी, मछली की गंध चारों ओर फैल गई।
मंदिर के पहरेदारों और पुजारियों ने जब यह गंध महसूस की, तो वे क्रोधित हो गए और उस महिला को अपवित्र वस्तु के साथ मंदिर में प्रवेश करने से रोक दिया। उन्होंने उसे डांटा और अपमानित किया। एक पहरेदार ने गुस्से में उसके हाथ से पत्ते का दोना छीनकर फेंक दिया।
जैसे ही पत्ते का दोना जमीन पर गिरा, एक चमत्कार हुआ। उसमें से मछली की जगह पके हुए कटहल की स्वादिष्ट सब्जी निकली और मछली की दुर्गंध एक मनमोहक सुगंध में बदल गई। यह देखकर वहां मौजूद सभी लोग, पुजारी और पहरेदार हैरान रह गए।
उन्हें अपनी गलती का एहसास हुआ और उन्होंने उस वृद्ध महिला से क्षमा मांगी। वे समझ गए कि भगवान ने उसकी भोली भक्ति को स्वीकार कर लिया है। इसके बाद उस कटहल की सब्जी को भगवान जगन्नाथ को भोग लगाया गया। कहा जाता है कि उस दिन के बाद से वह वृद्ध महिला भी शुद्ध शाकाहारी बन गई और प्रतिदिन भगवान को कटहल का भोग लगाने लगी।