
मान्यता है कि प्राचीन काल में बद्रीनाथ धाम भगवान शिव और माता पार्वती का विश्राम स्थल हुआ करता था। यहां वे दोनों आनंदपूर्वक अपने परिवार संग निवास करते थे। किंतु श्रीहरि विष्णु को यह दिव्य स्थान इतना प्रिय लगा कि उन्होंने इसे पाने की लीला रच डाली।
सतयुग की एक जनश्रुति के अनुसार, जब भगवान नारायण बद्रीनाथ आए, तब यहां बदरी यानी बेर के वृक्षों का घना वन फैला हुआ था। इसी मनोहारी वन में भगवान शंकर माता पार्वती संग शांत भाव से वास कर रहे थे। तभी एक दिन श्रीहरि विष्णु ने बालक का रूप धारण कर जोर-जोर से रोना प्रारंभ कर दिया। उनका करूण क्रंदन सुन माता पार्वती का हृदय द्रवित हो उठा। वे सोचने लगीं — इस निर्जन वन में यह नन्हा बालक कहां से आया? इसकी माता-पिता कहां हैं?
करुणा वश माता पार्वती उस रोते हुए बालक को गोद में उठाकर अपने निवास पर ले आईं। भगवान शिव तुरंत ही समझ गए कि यह कोई साधारण बालक नहीं, बल्कि श्रीहरि विष्णु की कोई लीला है। उन्होंने माता पार्वती से विनम्र आग्रह किया कि बालक को वहीं छोड़ दें, वह स्वयं कुछ समय में शांत हो जाएगा। किंतु वात्सल्यमयी पार्वती ने शिवजी की बात न मानी और बालक को अपने घर में सुला दिया।
कुछ समय पश्चात जब बालक गहरी नींद में सो गया, माता पार्वती और भगवान शिव बाहर भ्रमण हेतु निकल गए। श्रीहरि विष्णु को तो इसी क्षण की प्रतीक्षा थी! उन्होंने घर के द्वार भीतर से बंद कर लिए।
जब शिवजी और माता पार्वती वापस लौटे, तो उन्होंने द्वार बंद पाया। भीतर से आवाज आई —
“भगवन्! अब यह स्थान मुझे अत्यंत प्रिय हो गया है। कृपया आप अब केदारनाथ चले जाएं। मुझे यहां विश्राम करने दीजिए।”
भगवान शिव मुस्कराए, वे श्रीहरि विष्णु की इस मधुर बाललीला को समझ गए। तब से भगवान शिव केदारनाथ में प्रतिष्ठित हो गए और श्रीहरि विष्णु बद्रीनाथ में भक्तों को दर्शन देते आ रहे हैं।