देहरादून:उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले के डीडीहाट में वन विभाग की अनुसंधान शाखा ने एक अभिनव पहल के तहत एरोमेटिक गार्डन की स्थापना की दिशा में कदम बढ़ाए हैं। इस गार्डन में पर्वतीय क्षेत्र की 70 विभिन्न प्रजातियों के सुगंधित पौधे लगाए जाएंगे, जो न केवल पर्यावरणीय संरक्षण में योगदान देंगे बल्कि स्थानीय लोगों के लिए आजीविका और रोजगार के नए अवसर भी प्रदान करेंगे।
इस परियोजना के अंतर्गत, डीडीहाट गार्डन को जुलाई तक विकसित करने की योजना है। इससे पहले, वन अनुसंधान ने लालकुआं में मैदानी क्षेत्र के लिए एरोमेटिक गार्डन को सफलतापूर्वक विकसित किया था, और अब इसी प्रकार की पहल पर्वतीय क्षेत्रों में भी की जा रही है।
उपवन संरक्षक बीएस शाही के अनुसार, यह पर्वतीय क्षेत्र में एरोमेटिक गार्डन विकसित करने का पहला प्रयास है। इस गार्डन को करीब डेढ़ हेक्टेयर क्षेत्रफल में विकसित किया जाएगा, जिसमें स्थानीय सगंध प्रजातियों को रोपित किया जाएगा। इस पहल से जुड़े लोगों को न केवल पौधों की जानकारी दी जाएगी, बल्कि उनकी खेती और देखभाल के लिए प्रशिक्षण भी प्रदान किया जाएगा। इसके अलावा, एरोमेटिक प्लांट की खेती में रुचि रखने वाले लोगों को निशुल्क पौधे भी उपलब्ध कराए जाएंगे।
वन्य जीवों से सुरक्षित और रोजगार से संपन्न
उत्तराखंड के डीडीहाट में वन अनुसंधान के रिसर्च स्कॉलर मनोज ने बताया कि परंपरागत खेती को अक्सर बंदर और जंगली सूअर जैसे वन्य जीवों से नुकसान पहुंचता है। हालांकि, एरोमेटिक प्लांट्स की खेती में इस प्रकार के नुकसान की संभावना बहुत कम होती है। इस नई पहल से न केवल खेती को सुरक्षा मिलेगी, बल्कि स्थानीय लोगों को रोजगार के नए अवसर भी मिलेंगे।
इस एरोमेटिक गार्डन की स्थापना से पर्यटन क्षेत्र में भी वृद्धि की उम्मीद है। लोग इस गार्डन को देखने आएंगे, जिससे पर्यटन गतिविधियों में इजाफा होगा और स्थानीय अर्थव्यवस्था को बल मिलेगा। इस प्रकार, एरोमेटिक गार्डन न केवल एक आजीविका का साधन होगा, बल्कि यह डीडीहाट को एक पर्यटन स्थल के रूप में भी स्थापित करेगा।
इस उद्यान के माध्यम से नए रोजगार के अवसरों के सृजन के साथ-साथ, लोगों को एरोमेटिक प्लांट्स की खेती और उनके विपणन के बारे में भी जानकारी और प्रशिक्षण प्रदान किया जाएगा। इससे उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में नवाचार और विकास की नई दिशा निर्धारित होगी।
एरोमेटिक प्लांट्स से निखरेगा उत्पादन और पर्यटन
उत्तराखंड के डीडीहाट में वन अनुसंधान के रिसर्च स्कॉलर मनोज ने एरोमेटिक प्लांट्स के विविध उपयोगों पर प्रकाश डाला है। केदार पाती और जाटामासी का उपयोग धूप बत्ती बनाने में, वनीला का आइसक्रीम के फ्लेवर में, चंपा का सोप बनाने में, और शिलिग का परफ्यूम इंडस्ट्री में किया जाता है, जहां इसके तेल की कीमत आठ लाख रुपये प्रति लीटर तक होती है।
इस गार्डन में 2000 मीटर की ऊंचाई पर रोजमेरी, कपूरकचरी, जूफा, चंपा, गुग्गल, धूप लक्कड़, सालविया, बद्रीतुलसी, भूतकेशी जैसी अन्य सगंध प्रजातियों को लगाया जाएगा। इन पौधों की खेती से न केवल उत्पादन में वृद्धि होगी, बल्कि पर्यटन के क्षेत्र में भी नई संभावनाएं खुलेंगी।
इस पहल से डीडीहाट क्षेत्र में नए रोजगार के अवसर सृजित होंगे और स्थानीय उत्पादों को बाजार में एक नई पहचान मिलेगी। इस तरह के उद्यान से उत्तराखंड की आर्थिक और पर्यटन संभावनाओं को एक नया आयाम मिलेगा।
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