धर्मशास्त्रों के अनुसार भगवान शिव को “नीलकंठ” कहा जाता है, और नीलकंठ पक्षी को पृथ्वी पर उनके स्वरूप और प्रतिनिधि के रूप में माना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि भगवान शिव नीलकंठ पक्षी का रूप धारण कर धरती पर विचरण करते हैं। विजयादशमी (दशहरा) के दिन नीलकंठ पक्षी का दर्शन करना अत्यधिक शुभ माना जाता है और इसे सौभाग्य का सूचक माना जाता है.
देहरादून: तुम नीले रहियो, दूध-भात का भोजन करियो, हमरी बात राम से कहियो… इन पंक्तियों के अनुसार नीलकंठ पक्षी को भगवान का प्रतिनिधि माना गया है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार नीलकंठ को भगवान शिव के प्रतीक के रूप में माना जाता है. विशेषकर विजयादशमी (दशहरा) के दिन इसके दर्शन अत्यधिक शुभ माने जाते हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब समुद्र मंथन के दौरान देवताओं और दानवों ने अमृत प्राप्त करने के लिए समुद्र का मंथन किया, तब विष (हलाहल) उत्पन्न हुआ। इस विष को पीकर भगवान शिव ने संसार की रक्षा की, लेकिन विष उनके गले में अटक गया, जिससे उनका गला नीला हो गया, और उन्हें “नीलकंठ” कहा जाने लगा।
नीलकंठ पक्षी का गला भी नीला होता है, और इसीलिए इसे शिव का प्रतिनिधि माना जाता है। दशहरे के दिन नीलकंठ के दर्शन को विशेष रूप से शुभ इसलिए माना जाता है, क्योंकि यह भगवान शिव का आशीर्वाद और सौभाग्य का प्रतीक है। ऐसा कहा जाता है कि इस दिन नीलकंठ पक्षी के दर्शन से जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है, और व्यक्ति को हर कार्य में सफलता मिलती है। यह मान्यता है कि दशहरे के दिन नीलकंठ पक्षी को देखने से व्यक्ति को शिव का आशीर्वाद प्राप्त होता है, जो उसे सभी बाधाओं से मुक्त कर सफलता की ओर अग्रसर करता है।
इसके अलावा, यह भी कहा गया है कि नीलकंठ पक्षी का दर्शन शांति, सुख-समृद्धि, और सद्भाव का प्रतीक है। इसलिए दशहरे के दिन इसे देखना एक शुभ संकेत माना जाता है, जो जीवन में शुभता और कल्याण का संचार करता है।
दशहरे के दिन नीलकंठ के दर्शन करना भी बहुत शुभ माना गया. क्योंकि मान्यताओं के अनुसार इस पक्षी को माता लक्ष्मी जी का ही एक स्वरूप माना गया है. लेकिन इस पक्षी का दर्शन इतनी आसानी से नहीं होता है, क्योंकि अन्य दिनों की तरह यह दशहरे के दिन भी बड़ी मुश्किल से दिखता है. एक जगह तो ये भी कहा गया है “नीलकंठ के दर्शन पाए, घर बैठे गंगा नहाए.” यदि आपको दशहरा पर नीलकंठ पक्षी के दर्शन हो जाते हैं तो आपका भाग्य चमक जाता है और आपको हर कार्य में सफलता मिलती है.
नीलकंठ को सुख समृद्धि, शांति, सौम्यता और सद्भाव का प्रतीक माना जाता है. दशहरे के दिन नीलकंठ के दर्शन होने से घर के धन-धान्य में वृद्धि होती है और फलदायी एवं शुभ कार्य घर में अनवरत् होते रहते हैं. सुबह से लेकर शाम तक किसी वक्त नीलकंठ दिख जाए तो वह देखने वाले के लिए शुभ होता है.
नीलकंठ पक्षी के दर्शन पर इस मंत्र का जाप किया जाता है: कृत्वा नीराजनं राजा बालवृद्धयं यता बलम्, शोभनम खंजनं पश्येज्जलगोगोष्ठसंनिघौ। नीलग्रीव शुभग्रीव सर्वकामफलप्रद, पृथ्वियामवतीर्णोसि खञ्जरीट नमोस्तुते
नीलकंठ दर्शन का महत्त्व भारतीय पौराणिक और धार्मिक परंपराओं में गहराई से जुड़ा हुआ है। खगोपनिषद् के ग्यारहवें अध्याय के अनुसार, नीलकंठ साक्षात् भगवान शिव का स्वरूप है, और यह शुभ और अशुभ दोनों का प्रतीक माना जाता है। इस पक्षी को शिव के सौम्य और शांत रूप से जोड़ा जाता है, जो मंगलकारी और कल्याणकारी है।
श्रीमद्भागवत के आठवें अध्याय में वर्णित कथा के अनुसार, जब समुद्र मंथन के समय समुद्र से हलाहल नामक विष निकला, तब देवताओं और दानवों के बीच उत्पन्न संकट को देखते हुए शिवजी ने वह विष पिया। पार्वती जी की अनुमति से, शिवजी ने वह विष अपने गले में ही रोक लिया, जिससे उनका गला नीला पड़ गया और उन्हें “नीलकंठ” कहा जाने लगा। शिवजी के इस त्याग और बलिदान से संसार की रक्षा हुई, और इस प्रकार नीलकंठ का स्वरूप भी उनकी शांति, शक्ति और करुणा का प्रतीक बन गया।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, नीलकंठ का जूठा फल खाने से मनवांछित लाभ प्राप्त होता है। इसके साथ ही, यह सौभाग्य की वृद्धि और सुखमय वैवाहिक जीवन का योग बनाता है। नीलकंठ के दर्शन को शुभ माना गया है, क्योंकि इससे व्यक्ति के जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है और उसे शिवजी का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
विजयादशमी का पर्व, जिसे दशहरा भी कहा जाता है, असत्य पर सत्य की विजय और अधर्म पर धर्म की जीत का प्रतीक है। इस दिन भगवान राम ने रावण का वध किया था और माता सीता को उसकी कैद से मुक्त कराया था। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, अंतिम युद्ध से पहले भगवान राम ने नीलकंठ पक्षी के दर्शन किए थे, जिसे शुभ शकुन माना गया। तभी से यह मान्यता है कि दशहरे के दिन नीलकंठ पक्षी के दर्शन अत्यधिक शुभ होते हैं। यह विश्वास है कि अगर कोई व्यक्ति नीलकंठ के दर्शन कर किसी काम के लिए जाता है, तो उसका कार्य अवश्य सिद्ध होता है और उसे सफलता प्राप्त होती है।
एक अन्य कथा के अनुसार, रावण के वध के बाद भगवान राम ने ब्रह्महत्या के पाप से मुक्ति पाने के लिए अपने भाई लक्ष्मण के साथ भगवान शिव की पूजा की। उस समय शिवजी ने नीलकंठ रूप में भगवान राम को दर्शन दिए थे। यह दर्शन भी उनके द्वारा किए गए कार्यों के महत्व को दर्शाता है और इसे विशेष रूप से पवित्र और शुभ माना जाता है।
तुलसीदास जी ने रामचरितमानस में भी इसका उल्लेख किया है। जब भगवान राम की बारात निकल रही थी, तब चारों ओर शुभ संकेत मिल रहे थे, जिनमें नीलकंठ पक्षी का बायीं ओर दाना चुगना भी शामिल था। यह शुभ शकुन था, जिसे इस बात का प्रतीक माना गया कि कार्य सफलतापूर्वक संपन्न होंगे। इसलिए नीलकंठ पक्षी का दिखना हमारे कार्यों की सिद्धि और सफलता का संकेत माना जाता है।
यह मान्यता दशहरे के दिन विशेष रूप से प्रचलित है, क्योंकि नीलकंठ पक्षी का दर्शन भगवान शिव का आशीर्वाद और शुभता का प्रतीक है, जो जीवन में सकारात्मक ऊर्जा और सफलता लाता है।
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