Categories: Dharam Jyotish

एक मुखी रुद्राक्ष के फायदे

एक मुखी रुद्राक्ष को हिंदू धर्म में बहुत पवित्र माना जाता है और इसे भगवान शिव का प्रतीक समझा जाता है। इसकी एक ही दरार होती है जो एक चेहरे या मुख को दर्शाती है, और इसलिए इसे एक मुखी कहा जाता है। इसका आकार आधा अण्डाकार होता है और इसे शिवनेत्र भी कहा जाता है। इसके धारण करने से आध्यात्मिक, शारीरिक और भावनात्मक कल्याण के लाभ मिलते हैं, जैसे कि एकाग्रता और ध्यान में वृद्धि, आंतरिक शांति और सद्भाव को बढ़ावा, और नकारात्मक ऊर्जा से सुरक्षा

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, एक मुखी रुद्राक्ष को धारण करने से जीवन के सभी कष्ट और संकट दूर होते हैं, और यह जीवन में प्रकाश का संचार करता है। इसे पहनने से ब्रह्म हत्या जैसे पापों से भी मुक्ति मिलती है और व्यक्ति मोह माया के जाल से ऊपर उठ जाता है

इसके अलावा, एक मुखी रुद्राक्ष को धारण करने की विधि भी विशेष होती है। इसे श्रावण मास के दौरान या शिवरात्रि और पूर्णिमा के दिनों में धारण किया जा सकता है। इसे धारण करने से पहले, इसे सरसों के तेल में 7 दिन तक डुबो कर रखा जाता है, और फिर पंचामृत और गंगाजल से स्नान कराने के बाद, ‘ॐ तत्पुरुषाय विदमहे महादेवाय धीमहि तन्नो रूद्र: प्रचोदयात’ मंत्र का जाप करते हुए धारण किया जाता है

एक मुखी रुद्राक्ष पहनने के फायदे

एक मुखी रुद्राक्ष को बहुत पवित्र माना जाता है और इसे भगवान शिव का स्वरूप कहा जाता है। इसके धारण करने से व्यक्ति के जीवन में अनेक प्रकार के लाभ होते हैं। यहाँ कुछ मुख्य फायदे दिए गए हैं:

  • मानसिक स्वास्थ्य: एक मुखी रुद्राक्ष मानसिक तनाव, चिंता, और अवसाद को कम करने में सहायक होता है। यह नकारात्मक ऊर्जाओं को दूर करके मन को शांति प्रदान करता है
  • लक्ष्य प्राप्ति: यह आत्मविश्वास बढ़ाने और लक्ष्यों की प्राप्ति में मदद करता है। यह व्यक्ति को बाधाओं से लड़ने की शक्ति देता है।
  • कर्म ऋण से मुक्ति: यह व्यक्ति को कर्म ऋण और पापों से मुक्ति दिलाने में सहायक होता है, जिससे व्यक्ति का अपराधबोध कम होता है
  • इसके अलावा, एक मुखी रुद्राक्ष को धारण करने से व्यक्ति के भाग्य के द्वार खुलते हैं और उसे समाज में प्रसिद्धि मिलती है। यदि किसी की कुंडली में सूर्य ग्रह कमजोर हो तो एक मुखी रुद्राक्ष धारण करना चाहिए, जिससे सूर्य के नकारात्मक प्रभाव दूर होते हैं
  • ध्यान दें कि ये जानकारियाँ धार्मिक और ज्योतिषीय मान्यताओं पर आधारित हैं, और इनका वैज्ञानिक प्रमाणीकरण नहीं हुआ है। इसलिए, इन्हें व्यक्तिगत विश्वास और अनुभव के आधार पर अपनाया जा सकता है।

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