देहरादून। राजधानी के नगर निगम में 300 करोड़ का होर्डिंग घोटाला लगातार सुर्खियों में बना हुआ है। आरोप लगाने वाले कांग्रेसी नेता अभिनव थापर का कहना है कि साक्ष्य देने के 4 महीने बाद भी मेयर सुनील उनियाल गामा ने होर्डिंग घोटाले की जांच नहीं कराई है।
जबकि मीडिया में उनका बयान आ रहा है कि “टेंडर देना उनके हाथ में नहीं है और अगर गड़बड़ी है तो जांच कराएंगे”।
उन्होंने बताया कि बुधवार को एक बार फिर से मेयर को पत्र लिखकर 30 तारीख को होने वाली अंतिम बोर्ड बैठक में करवाई की मांग की है।
बता दें कि बीते रविवार को कांग्रेस नेता थापर ने नगर निगम पर कंपनी से सांठ गांठ कर 300 करोड रुपए का होर्डिंग–यूनीपोल घोटाला करने का आरोप लगाया था।
थापर ने कहा कि अगर नगर निगम प्रशासन मामले में कोई कार्रवाई नहीं करता है, तो वह हाई कोर्ट, ED और सीबीआई के सामने इस मामले को उठाएंगे। उनका आरोप था कि नगर निगम प्रशासन ने अपने अधिकारों और नियमों का गलत उपयोग करते हुए चहेती तीनों कंपनियों को होर्डिंग–यूनीपोल का काम दिया था। जिसके चलते नगर निगम को 300 करोड रुपए के राजस्व का नुकसान हुआ है। साथ ही कंपनियों पर करवाई करते हुए उनसे जुर्माने के साथ राजस्व वसूलने की भी मांग की है।
ये है पूरा मामला
कांग्रेस नेता अभिनव थापर ने बीते रविवार को प्रदेश कार्यालय में पत्रकार वार्ता की थी। जिसमें अपनी आरटीआई को लेकर हुए खुलासे में उनका आरोप था कि टेंडर की शर्तों में न सिर्फ ” पार्टी के चयन ” का खेल हुआ। जबकि एक्सटेंशन के नाम पर करोड़ों रुपए के कार्य अपने चहेतों को बिना टेंडर आवंटन किया गया।
तकनीकी रूप से 2013 से लेकर 2023 तक 5 से 7 टेंडर होने चाहिए थे। लेकिन, सिर्फ 3 टेंडर हुए है और इन सभी टेंडरों में सारा खेल इन्ही तीनों कंपनियों के ” संभावित कार्टेल ” को मिला है। जिसमें मीडिया 24*7 दिल्ली, Stimulus Advertising, और Catalyst Adv. शामिल हैं।
थापर के मुताबिक नगर निगम देहरादून 2013 से 2023 के बीच में जितने भी होर्डिंग्स के टेंडर निकाले। उनमें उत्तराखंड की अधिप्राप्ति प्राप्ति नियमावली 2008 का उल्लंघन हुआ है।
नियमावली में जिक्र है कि किसी भी टेंडर कार्य को 2% से ज्यादा EMD न ली जाए। जबकि नगर निगम ने इसको 10% किया, जिससे कई Elligible bidders को रोका गया। ये घोटाला नियमों के हेर-फेर से कंपनियों को रोकने से शुरू हुआ और हाईकोर्ट के आदेशों को तोड़ मरोड़कर अपने हिसाब से इस्तेमाल करने से तक चलता रहा।
बहुत खींचातानी करने के बाद जनवरी 2022 में नगर निगम एक टेंडर निकालता है। जिसमें मीडिया 24*7 को फिर से 30 मार्च 2023 को सफल bidder साबित किया गया। टेंडर की शर्तो के अनुसार 3 दिन के अंदर उनको जमानत धनराशि जमा करनी थी। और एक एग्रीमेंट के लिए 2% राशि के स्टांप नगर निगम देहरादून में जमा कराने थे।लेकिन कई नोटिस मिलने के बावजूद कंपनी ने कोई कार्रवाई नहीं की। ऐसी स्थिति में कंपनी ब्लैकलिस्ट होनी चाहिए थी। लेकिन, इसके 2–3 महीने बाद 9 सितंबर 2022 को उसी कम्पनी को फिर से पुनः कार्यादेश जारी होता है ।
सबसे बड़ा घोटाला तो इन टेंडरों में हाई कोर्ट नैनीताल के 13.06.2017 Order के MisInterpretation को लेकर हुआ है। जिसमें हाई कोर्ट नैनीताल ने आदेश दिया था कि इस टेंडर में जो भी कार्यवाही की जाएगी वो माननीय हाई कोर्ट के संज्ञान में लाने और अनुमति के लाने के बाद की जाएगी, लेकिन इन्होंने इसका उल्टा घुमाके उसको अपने हर आदेश में यह लिखा है कि माननीय हाई कोर्ट ने आगे ये कारवाई करने ने मना कर दिया है। और अपने चहेतों को दे दिया।
वहीं, आरोप लगाया था कि 2019 में नगर निगम द्वारा एक सर्वे कमिटी बनाई गई, इसने 325 अवैध होर्डिंग की रिपोर्ट दी किंतु आजतक यह नहीं बताया गया की अवैध होर्डिंग जनता में बेच कौन रहा था? क्या यही तीन कंपनियां थी या इनकी सहयोगी कंपनियां थी? और जो भी कंपनियां अवैध Hoarding बेच रहे थी उस पर नगर निगम ने क्या कार्रवाई की?
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