देहरादून। उत्तराखंड में प्रधानाचार्य सीमित विभागीय परीक्षा एक बार फिर स्थगित हो सकती है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा शिक्षकों के लिए शिक्षक पात्रता परीक्षा (टीईटी) को अनिवार्य किए जाने के फैसले के बाद इस परीक्षा पर अनिश्चितता के बादल मंडराने लगे हैं। शिक्षा सचिव रविनाथ रामन के अनुसार, इस मामले पर न्याय विभाग से परामर्श लिया जा रहा है और तब तक परीक्षा स्थगित रहेगी।
यह परीक्षा पहले ही राजकीय शिक्षक संघ के विरोध का सामना कर रही है। संगठन के विरोध के बाद सरकार ने सचिव कार्मिक शैलेश बगौली की अध्यक्षता में एक समिति का भी गठन किया है, जिसकी दो बैठकें हो चुकी हैं।
टीईटी की अनिवार्यता बनी बड़ी वजह
शिक्षा सचिव रविनाथ रामन ने बताया कि प्रधानाचार्य सीमित विभागीय परीक्षा में सहायक अध्यापक (एलटी) को भी शामिल किया गया है। परीक्षा के लिए आवेदन करने वाले कई शिक्षक टीईटी उत्तीर्ण नहीं हैं। सुप्रीम कोर्ट ने पदोन्नति के लिए टीईटी को अनिवार्य किया है। अब यह परीक्षण किया जा रहा है कि यह मामला सुप्रीम कोर्ट के दायरे में आएगा या नहीं। इसी स्थिति को स्पष्ट करने के लिए न्याय विभाग से राय मांगी गई है। जब तक इस पर स्थिति साफ नहीं हो जाती, तब तक परीक्षा स्थगित रहेगी। इस संबंध में शासन द्वारा राज्य लोक सेवा आयोग को भी पत्र लिखा जाएगा। यदि नियमावली में बदलाव की आवश्यकता पड़ी तो परीक्षा रद्द भी हो सकती है।
बड़ी संख्या में खाली हैं पद
गौरतलब है कि प्रदेश के राजकीय इंटरमीडिएट कॉलेजों में प्रधानाचार्यों के स्वीकृत 1385 पदों में से 1184 पद खाली हैं।वहीं, प्रधानाध्यापकों के 910 स्वीकृत पदों में से 822 पद रिक्त हैं। इन खाली पदों को भरने के लिए शासन ने प्रधानाचार्य सीमित विभागीय परीक्षा के लिए नियमावली में संशोधन भी किया था।
परीक्षा तिथि हो चुकी थी घोषित
उत्तराखंड लोक सेवा आयोग ने अभ्यर्थियों से आवेदन मांगने के बाद परीक्षा की तिथि भी घोषित कर दी थी। आयोग के कैलेंडर के अनुसार, यह परीक्षा 8 फरवरी, 2026 को होनी थी। लेकिन अब इस पर एक बार फिर संकट के बादल मंडरा गए हैं।
बेसिक शिक्षकों की पदोन्नति भी रुकी
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद शिक्षा विभाग में बेसिक शिक्षकों की पदोन्नति भी रोक दी गई है। हालांकि, सरकार ने इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दायर करने का फैसला किया है, लेकिन फिलहाल शिक्षकों की पदोन्नति रुकी हुई है। शिक्षा सचिव का कहना है कि प्रधानाचार्य सीमित विभागीय परीक्षा पदोन्नति नहीं है, फिर भी इस मसले पर न्याय विभाग का परामर्श लेना आवश्यक है।
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