जब जगन्नाथ जी की रथ यात्रा निकलती है, तो सिर्फ भक्त ही नहीं, समूचा ब्रह्मांड उस दिव्य दृश्य का साक्षी बनता है। देवी-देवताओं से लेकर अदृश्य शक्तियाँ तक—हर आत्मा उस रथ के दर्शन को लालायित रहती है।
लेकिन क्या आपने कभी गौर किया है कि हर रथ पर रखे गए वे तीन बड़े-बड़े घड़े—आख़िर क्यों तोड़े जाते हैं? और उसमें भरा हुआ प्रसाद, जिसे हम सम्मान के साथ ग्रहण करते हैं—उसे ज़मीन पर क्यों बहा दिया जाता है?
इस रहस्य का नाम है “अधरपाना”।
यह कोई साधारण प्रसाद नहीं होता। अधरपाना वह दिव्य भोग है, जो किसी मनुष्य के लिए नहीं, बल्कि उन भूत-प्रेतों, पिशाचों और भटकी हुई आत्माओं के लिए होता है—जो वर्षों से मोक्ष की तलाश में भटक रही हैं।
किंवदंती है कि जब भगवान जगन्नाथ का रथ नगर भ्रमण पर निकलता है, तब न केवल देवता, बल्कि वे पीड़ित आत्माएँ भी वहाँ उपस्थित होती हैं। उन्होंने स्वयं प्रभु से प्रार्थना की थी—
“हे जगन्नाथ! आप तो सभी के नाथ हैं, हम आत्माओं का उद्धार कौन करेगा, अगर आप नहीं?”
भगवान मुस्कुराए… और तब से हर वर्ष, नौ घड़े—तीन बलराम जी के रथ पर, तीन सुभद्रा जी के, और तीन स्वयं जगन्नाथ जी के रथ पर रखे जाते हैं।
इन घड़ों में भरा होता है अधरपाना—एक ऐसा प्रसाद, जो उन अदृश्य प्राणियों की मोक्ष यात्रा की अंतिम आशा होता है।
रथ यात्रा के अंतिम पड़ाव पर इन घड़ों को ज़मीन पर तोड़ा जाता है, और वह पवित्र तरल पृथ्वी पर बहा दिया जाता है—ताकि वे आत्माएँ उसे ग्रहण कर सकें, और उन्हें शांति प्राप्त हो।
इसलिए यह स्पष्ट आदेश होता है:
“अधरपाना को कोई भी मनुष्य ग्रहण न करे, यह सिर्फ़ उन आत्माओं के लिए है, जो केवल प्रभु जगन्नाथ से ही उद्धार की आशा रखती हैं।”
क्योंकि जगन्नाथ जी केवल भक्तों के ही नहीं,
हर आत्मा के भगवान हैं।
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