नई दिल्ली: बहुत समय पूर्व, एक सम्राट ने घोषणा की कि वह छह दिनों में अपने राज्य के प्रमुख मंदिर में पूजा करने जा रहा है। इस खबर को सुनकर, मंदिर के पुजारी ने मंदिर की सजावट के लिए ₹6000/- का कर्ज ले लिया।
समय आने पर, सम्राट मंदिर में पहुंचे, पूजा की और आरती की थाली में चार आने की दक्षिणा छोड़ गए। थाली में मात्र चार आने देखकर, पुजारी निराश हो गया। उसने सोचा कि वह अब अपना कर्ज कैसे चुकाएगा। तब उसने एक योजना बनाई।
उसने पूरे गांव में घोषणा की कि वह सम्राट द्वारा दी गई वस्तु को नीलाम करने जा रहा है। नीलामी के दिन, उसने अपनी मुट्ठी में चार आने रखे और मुट्ठी बंद कर दी। लोगों ने समझा कि सम्राट द्वारा दी गई वस्तु अत्यंत मूल्यवान होगी, इसलिए बोली ₹10,000 से शुरू हुई और धीरे-धीरे ₹50,000 तक पहुंच गई।
यह खबर सम्राट तक पहुंची। सम्राट ने पुजारी को बुलवाया और उससे अनुरोध किया कि वह उसकी वस्तु को नीलाम न करे। सम्राट ने कहा, “मैं तुम्हें ₹50,000 की बजाय ₹1,25,000 दूंगा।” इस प्रकार, सम्राट ने ₹1,25,000 देकर अपनी प्रजा के सामने अपनी गरिमा को बचाया।
इस घटना के बाद से एक कहावत प्रचलित हुई – “बंद मुट्ठी सवा लाख की, खुल गई तो खाक की।” यह मुहावरा आज भी लोकप्रिय है और इसका उपयोग होता है।
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