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दशहरे पर नीलकंठ दर्शन: भगवान शिव और श्रीराम से जुड़ी विजय और समृद्धि की गाथा

Neelkanth Bird on Dussehra: विजयादशमी, यानी दशहरे का पर्व बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। इस दिन के साथ कई पौराणिक मान्यताएं और परंपराएं जुड़ी हुई हैं, जिनमें से एक सबसे खास है नीलकंठ पक्षी के दर्शन करना। हिंदू धर्म में दशहरे के दिन इस पक्षी का दिखना अत्यंत शुभ माना जाता है और इसे भाग्य खोलने वाला कहा जाता है।यही कारण है कि दशहरे के दिन लोग सुबह से ही अपनी छतों और आंगनों से आकाश की ओर इस आस में निहारते हैं कि उन्हें नीलकंठ पक्षी के दर्शन हो जाएं।

नई दिल्ली: विजयदशमी के पावन पर्व पर नीलकंठ पक्षी के दर्शन को अत्यंत शुभ और भाग्यवर्धक माना जाता है। वर्षों से चली आ रही इस मान्यता के चलते, दशहरे के दिन लोग आकाश की ओर टकटकी लगाए इस आस में रहते हैं कि उन्हें नीलकंठ के दर्शन हो जाएं, ताकि उनका आने वाला साल मंगलमय हो।

पौराणिक मान्यताएं और महत्व

लोक मान्यताओं के अनुसार, नीलकंठ पक्षी को भगवान का प्रतिनिधि माना गया है।कहा जाता है कि दशहरे के दिन नीलकंठ के दर्शन से घर में धन-धान्य की वृद्धि होती है और शुभ कार्यों का सिलसिला साल भर बना रहता है। सुबह से शाम तक किसी भी समय इस पक्षी का दिखना देखने वाले के लिए शुभ संकेत होता है।

श्रीराम की विजय से जुड़ा है संबंध

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, नीलकंठ पक्षी के दर्शन का सीधा संबंध भगवान श्रीराम की लंका पर विजय से है। माना जाता है कि जब भगवान राम, लंकापति रावण का वध करने जा रहे थे, तो उन्होंने पहले शमी के पेड़ की पूजा की और फिर उन्हें नीलकंठ पक्षी के दर्शन हुए थे।इस दर्शन को शुभ संकेत मानकर उन्होंने रावण पर विजय प्राप्त की। इसी वजह से नीलकंठ पक्षी को विजय और शुभता का प्रतीक माना जाने लगा।

श्रीराम और रावण युद्ध से जुड़ा प्रसंग

इस परंपरा का संबंध भगवान श्रीराम की रावण पर विजय से भी जुड़ा है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान राम ने रावण से युद्ध करने से पहले नीलकंठ पक्षी के दर्शन किए थे।इस दर्शन को शुभ संकेत मानकर उन्होंने युद्ध का आरंभ किया और अंततः विजय प्राप्त की। इसीलिए विजय दशमी के पर्व को जीत का पर्व भी कहा जाता है और इस दिन नीलकंठ का दर्शन विजय का प्रतीक माना जाता है।

भगवान शिव का स्वरूप है नीलकंठ

जनश्रुति और धर्मशास्त्रों के अनुसार, नीलकंठ पक्षी को भगवान शिव का ही एक रूप माना जाता है।कथा के अनुसार, समुद्र मंथन के दौरान जब हलाहल विष निकला, तो पूरी सृष्टि को बचाने के लिए भगवान शिव ने उस विष को अपने कंठ में धारण कर लिया था। इस विष के प्रभाव से उनका गला नीला पड़ गया और तभी से उन्हें ‘नीलकंठ’ कहा जाने लगा। यही कारण है कि नीले कंठ वाले इस पक्षी को पृथ्वी पर भगवान शिव का प्रतिनिधि और स्वरूप दोनों माना जाता है।

एक अन्य मान्यता के अनुसार, लंका पर विजय प्राप्त करने के बाद भगवान राम पर ब्राह्मण (रावण) हत्या का पाप लगा था। इस पाप से मुक्ति पाने के लिए उन्होंने अपने भाई लक्ष्मण के साथ भगवान शिव की पूजा-अर्चना की। तब भगवान शिव ने नीलकंठ पक्षी के रूप में प्रकट होकर उन्हें दर्शन दिए और पाप से मुक्त किया।

इस प्रकार, दशहरे के दिन नीलकंठ पक्षी का दर्शन न केवल एक प्राचीन परंपरा है, बल्कि यह भगवान राम की विजय और भगवान शिव की कृपा का भी प्रतीक है, जो जीवन में सकारात्मकता, समृद्धि और सफलता का संदेश देता है।

नीलकंठ पक्षी के दर्शन के फायदे 
आज के दिन इस पक्षी का दर्शन हो जाए तो समझ लें कि आपके जीवन में सुख-सौभाग्य में वृद्धि हो सकती है. दशहरे के दिन इस पक्षी का दिखना बहुत ही शुभ माना गया है, लेकिन इस पक्षी का दिखना आसान नहीं है, क्योंकि इसका दिखना दुर्लभ माना गया है. दिखने पर जीवन में सुख-शांति, जीवन में सफलता, तरक्की आती है. भाग्योदय होता है. नीलकंठ पक्षी को शंकर जी का प्रतीक कहा जाता है.

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