नई दिल्ली: गोवर्धन पूजा हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण त्योहार है, जो भगवान श्रीकृष्ण के प्रति अटूट भक्ति और प्रकृति के प्रति कृतज्ञता का प्रतीक है। यह पर्व हर साल कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को, यानी दीपावली के अगले दिन, बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है इस दिन का मुख्य आकर्षण भगवान कृष्ण को अर्पित किया जाने वाला ‘छप्पन भोग’ होता है, जिसके पीछे गहरा धार्मिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक महत्व छिपा है।
श्रीमद्भागवत पुराण में वर्णित कथा के अनुसार, ब्रजवासी अच्छी वर्षा और फसल के लिए प्रतिवर्ष देवराज इंद्र की पूजा करते थे। तब भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें समझाया कि इंद्र की बजाय उन्हें गोवर्धन पर्वत की पूजा करनी चाहिए, क्योंकि यही पर्वत उनकी गायों को चारा, जल और आश्रय प्रदान करता है। ब्रजवासियों द्वारा इंद्र की पूजा न करने से देवराज क्रोधित हो गए और उन्होंने मूसलाधार वर्षा शुरू कर दी, जिससे पूरे ब्रज में बाढ़ का खतरा उत्पन्न हो गया।
तब भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी छोटी उंगली पर गोवर्धन पर्वत को उठाकर सात दिनों तक ब्रजवासियों और उनके पशुओं की रक्षा की।अंत में, इंद्र का अहंकार टूट गया और उन्होंने श्रीकृष्ण की दिव्यता को स्वीकार कर उनसे क्षमा मांगी। इसी घटना की स्मृति में गोवर्धन पूजा का पर्व मनाया जाता है, जिसमें प्रकृति, गायों और भगवान कृष्ण के प्रति आभार व्यक्त किया जाता है।
गोवर्धन पूजा के दिन भगवान कृष्ण को 56 प्रकार के विभिन्न व्यंजन अर्पित किए जाते हैं, जिन्हें ‘छप्पन भोग’ कहा जाता है। इसके पीछे मान्यता है कि जब श्रीकृष्ण ने सात दिनों तक गोवर्धन पर्वत को अपनी उंगली पर धारण किया था, तब उन्होंने कुछ भी खाया-पिया नहीं था। माता यशोदा दिन में आठ पहर श्रीकृष्ण को भोजन कराती थीं।
जब सात दिन बाद वर्षा रुकी, तो माता यशोदा और सभी ब्रजवासियों ने मिलकर सात दिनों के आठ पहर के हिसाब से (7 दिन x 8 पहर = 56) छप्पन प्रकार के व्यंजन बनाकर श्रीकृष्ण को अर्पित किए। तभी से यह परंपरा ‘छप्पन भोग’ के रूप में प्रचलित हो गई।
छप्पन भोग में सात्विक और शुद्ध खाद्य पदार्थों को शामिल किया जाता है। इसमें मधुर, अम्ल, तिक्त, कटु, कषाय और लवण, इन छह रसों से युक्त व्यंजन होते हैं।[9] इसमें विभिन्न प्रकार के अनाज, दालें, सब्जियां, मिठाइयां, दूध से बने पदार्थ, नमकीन, पेय पदार्थ, फल और मेवे शामिल होते हैं। कुछ प्रमुख व्यंजनों में शामिल हैं:
गोवर्धन पूजा के दिन भक्त सुबह स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करते हैं। घरों और मंदिरों में गोवर्धन पर्वत का प्रतीकात्मक रूप यानी गाय के गोबर से बना गोवर्धन पर्वत बनाया जाता है। इसके बाद भगवान कृष्ण, गोवर्धन पर्वत और गायों की पूजा की जाती है। पूजा में फूल, धूप, दीप, नैवेद्य और छप्पन भोग अर्पित किए जाते हैं। भक्त अन्नकूट का भोग लगाते हैं, जिसमें विभिन्न प्रकार के व्यंजन एक साथ परोसे जाते हैं। पूजा के बाद यह भोग प्रसाद के रूप में भक्तों में वितरित किया जाता है।
गोवर्धन पूजा के दिन सुबह स्नान के बाद घर के आंगन में गाय के गोबर से गोवर्धन पर्वत का प्रतीकात्मक रूप बनाया जाता है। इसे फूलों से सजाया जाता है और उसकी नाभि के स्थान पर मिट्टी का दीपक रखा जाता है, जिसमें दूध, दही, शहद और बताशे डाले जाते हैं। इसके बाद भगवान कृष्ण, गोवर्धन पर्वत और गायों की पूजा की जाती है। पूजा में रोली, चावल, खीर, बताशे, जल, दूध, पान, केसर और फूल अर्पित किए जाते हैं। भक्तजन गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा करते हैं, आरती गाते हैं और फिर छप्पन भोग या ‘अन्नकूट’ का भोग लगाते हैं, जिसे बाद में प्रसाद के रूप में सभी में वितरित किया जाता है।
देहरादून। पक्षी प्रेमियों के लिए एक सुखद खबर है। उत्तराखंड की पहली रामसर साइट, आसन कंजर्वेशन…
देहरादून।उत्तराखंड के सरकारी कर्मचारियों की विभिन्न लंबित मांगों और समस्याओं को लेकर कल (बुधवार को)…
देहरादून। उत्तराखंड में प्रधानाचार्य सीमित विभागीय परीक्षा एक बार फिर स्थगित हो सकती है। सुप्रीम कोर्ट…
एक बार की बात है कि मगध नाम के राज्य में अंगुलिमाल डाकू की दहशत…
एक समय की बात है, मगध राज्य में अंगुलिमाल नाम के एक खूंखार डाकू का…
देहरादून:उत्तराखंड में प्रतिबंधित कफ सिरप के खिलाफ चल रही कार्रवाई के बाद अब स्वास्थ्य विभाग…