हरतालिका तीज की महिमा को अपरंपार माना गया है. हिन्दू धर्म में विशेषकर सुहागिन महिलाओं के लिए इस पर्व का महात्म्य बहुत ज्यादा है.
देहरादून: हरतालिका तीज व्रत एक कठिन व्रत माना जाता है. इसमें महिलाएं निर्जला व्रत रखकर पति की लंबी उम्र के लिए कामना करती हैं. दरअसल भाद्रपद की शुक्ल तृतीया को हस्त नक्षत्र में भगवान शिव और माता पार्वती के पूजन का विशेष महत्व है. हरतालिका तीज व्रत निराहार और निर्जला किया जाता है. मान्यता है कि इस व्रत को सबसे पहले माता पार्वती ने भगवान शंकर को पति के रूप में पाने के लिए किया था. हरतालिका तीज व्रत करने से महिलाओं को सौभाग्य की प्राप्ति होती है.
हरतालिका तीज व्रत हिंदू धर्म में मनाये जाने वाला एक प्रमुख व्रत है. भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की तृतीया 6 सितंबर को हरतालिका तीज है. भारत में हरियाली तीज और कजरी तीज के बाद अब हरतालिका तीज का त्योहार मनाया जाएगा.
हरितालिका तीज 2024 शुभ मुहूर्त (Hartalika Teej 2024 Muhurat)
भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि 5 सितंबर को दोपहर 12:21 मिनट से शुरू होगी. इस तिथि का समापन 6 सितंबर को दोपहर 3:01 मिनट पर होगा. उदयातिथि के आधार पर हरतालिका तीज 6 सिंतबर शुक्रवार को मनाई जाएगी.
हरतालिका तीज की पूजन सामग्री (Hartalika Teej Puja Samagri)
हरतालिका व्रत से एक दिन पहले ही पूजा की सामग्री जुटा लें- गीली मिट्टी, बेल पत्र, शमी पत्र, केले का पत्ता, धतूरे का फल और फूल, अकांव का फूल, तुलसी, मंजरी, जनेऊ, वस्त्र, मौसमी फल-फूल, नारियल, कलश, अबीर, चंदन, घी, कपूर, कुमकुम, दीपक, दही, चीनी, दूध और शहद.
मां पार्वती की सुहाग सामग्री: मेहंदी, चूड़ी, बिछिया, काजल, बिंदी, कुमकुम, सिंदूर, कंघी, माहौर, सुहाग पिटारी.
हरतालिका तीज पूजा विधि (Hartalika Teej Puja Vidhi): हरतालिका तीज का व्रत सुहागिन महिलाओं और कुंवारी कन्याओं द्वारा सौभाग्य और उत्तम जीवनसाथी की प्राप्ति के लिए रखा जाता है। इस व्रत में भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा विधिपूर्वक की जाती है। आइए जानते हैं हरतालिका तीज की पूजा विधि:
हरतालिका तीज की पूजा प्रदोष काल में की जाती है, जो दिन और रात के मिलने का समय होता है।
व्रत वाले दिन सुबह स्नान करने के बाद साफ और सुंदर वस्त्र धारण करें। संध्या समय फिर से स्नान करके नए कपड़े पहनें। सुहागिन महिलाएं इस दिन सोलह श्रृंगार करती हैं।
शिव-पार्वती और गणेश जी की मिट्टी से प्रतिमा बनाएं। उन्हें उचित स्थान पर स्थापित करें।
दूध, दही, चीनी, शहद और घी मिलाकर पंचामृत तैयार करें। इससे शिव-पार्वती का अभिषेक करें।
माता पार्वती को सुहाग की सामग्री जैसे चूड़ी, बिंदी, सिंदूर, महावर आदि अर्पित करें। शिवजी को वस्त्र अर्पित करें।
पूजन के बाद हरतालिका व्रत की कथा सुनें।
पूजन के अंत में सबसे पहले गणेश जी, फिर शिवजी और माता पार्वती की आरती करें। इसके बाद भगवान की परिक्रमा करें।
रात में जागरण करें।
सुबह स्नान करने के बाद माता पार्वती का पुनः पूजन करें और उन्हें सिंदूर चढ़ाएं।
ककड़ी और हल्वे का भोग लगाएं और फिर व्रत का पारण करें। व्रत खोलने के लिए सबसे पहले ककड़ी का सेवन करें।
पूजन सामग्री एकत्र कर किसी सुहागिन महिला को दान दें।
हरतालिका तीज व्रत में दृढ़ संकल्प और श्रद्धा से शिव-पार्वती की पूजा करने से सुखद वैवाहिक जीवन का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
गौरी हब्बा के नाम से प्रसिद्ध (Gauri Habba vrat)
हरतालिका तीज का व्रत करने से सुहागिन महिला के पति की उम्र लंबी होती है जबकि कुंवारी लड़कियों को मनचाहा वर मिलता है. यह त्योहार मुख्य रूप से बिहार, उत्तर प्रदेश, राजस्थान और मध्य प्रदेश में मनाया जाता है. कर्नाटक, तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश में इस व्रत को “गौरी हब्बा” के नाम से जाना जाता है. मान्यता है कि इस व्रत को रखने से अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है. मान्यता है कि इस व्रत के पुण्य प्रभाव से कुंवारी कन्याओं को मनचाहा वर मिलता है.
हरतालिका तीज व्रत कथा (Hartalika Teej Katha)
शिव जी ने माता पार्वती जी को इस व्रत के बारे में विस्तार पूर्वक समझाया था. मां गौरा ने माता पार्वती के रूप में हिमालय के घर में जन्म लिया था. बचपन से ही माता पार्वती भगवान शिव को वर के रूप में पाना चाहती थीं और उसके लिए उन्होंने कठोर तप किया. 12 सालों तक निराहार रह करके तप किया. एक दिन नारद जी ने उन्हें आकर कहा कि पार्वती के कठोर तप से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु आपकी पुत्री से विवाह करना चाहते हैं.. नारद मुनि की बात सुनकर महाराज हिमालय बहुत प्रसन्न हुए. उधर, भगवान विष्णु के सामने जाकर नारद मुनि बोले कि महाराज हिमालय अपनी पुत्री पार्वती से आपका विवाह करवाना चाहते हैं.
भगवान विष्णु ने भी इसकी अनुमति दे दी. फिर माता पार्वती के पास जाकर नारद जी ने सूचना दी कि आपके पिता ने आपका विवाह भगवान विष्णु से तय कर दिया है. यह सुनकर पार्वती बहुत निराश हुईं उन्होंने अपनी सखियों से अनुरोध कर उसे किसी एकांत गुप्त स्थान पर ले जाने को कहा. माता पार्वती की इच्छानुसार उनके पिता महाराज हिमालय की नजरों से बचाकर उनकी सखियां माता पार्वती को घने सुनसान जंगल में स्थित एक गुफा में छोड़ आईं.
यहीं रहकर उन्होंने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए कठोर तप शुरू किया जिसके लिए उन्होंने रेत के शिवलिंग की स्थापना की. संयोग से हस्त नक्षत्र में भाद्रपद शुक्ल तृतीया का वह दिन था जब माता पार्वती ने शिवलिंग की स्थापना की इस दिन निर्जला उपवास रखते हुए उन्होंने रात्रि में जागरण भी किया.
माता के कठोर तप से भगवान शिव प्रसन्न हुए माता पार्वती जी को उनकी मनोकामना पूर्ण होने का वरदान दिया. अगले दिन अपनी सखी के साथ माता पार्वती ने व्रत का पारण किया और समस्त पूजा सामग्री को गंगा नदी में प्रवाहित कर दिया. उधर, माता पार्वती के पिता भगवान विष्णु को अपनी बेटी से विवाह करने का वचन दिए जाने के बाद पुत्री के घर छोड़ देने से व्याकुल थे.
फिर वह पार्वती को ढूंढते हुए उस स्थान तक जा पंहुचे. इसके बाद माता पार्वती ने उन्हें अपने घर छोड़ देने का कारण बताया और भगवान शिव से विवाह करने के अपने संकल्प और शिव द्वारा मिले वरदान के बारे में बताया, तब पिता महाराज हिमालय भगवान विष्णु से क्षमा मांगते हुए भगवान शिव से अपनी पुत्री के विवाह को राजी हुए.
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