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जगन्नाथ जी ने कटहल चुराने की सच्चाई क्या है?

एक दिन जगन्नाथ जी माधवदास जी से कहने लगे कि,”चलो सखा राजा के बगीचे से कटहल चुराते हैं।”

माधवदास जी कहने लगे कि,”प्रभु आपका अगर‌ कटहल‌ खाने का मन है तो मैं कल ही कटहल‌ का फल‌ आपके लिए लेकर आऊंगा। प्रभु उसके लिए चोरी करने की क्या आवश्यकता है?

जगन्नाथ जी मुस्कुराते हुए बोले कि,” माधवदास वो बात नहीं है, मुझे दिन भर छप्पन भोग लगाया जाता है। यूं तो मां यशोदा भी मुझे प्रतिदिन माखन खाने को देती थी लेकिन फिर भी सखाओं के संग माखन चुराने का आनंद ही अप्रतिम होता है। इसलिए चलो माधवदास राजा के बगीचे से कटहल चुराते हैं”

माधवदास जी बोले – लेकिन प्रभु मुझे तो चोरी करना आता ही नहीं है।

जगन्नाथ जी कहने लगे कि,” तुम मेरे सखा हो तो मैं तुम्हें सब सिखा दूंगा, मैं चाहता हूं तुम भी मेरे साथ इस लीला का आंनद लो।”

जगन्नाथ जी की बात मानकर माधवदास जी चल पड़े राजा के बगीचे में चोरी करने। उस समय रात का समय था और सिपाही बाग में पहरा दे रहे थे।

जगन्नाथ जी ने माधवदास जी को कटहल के पेड़ पर चढ़ा दिया और बोले कि बढ़िया सा कटहल तोड़ कर नीचे फैंक दो। मैं नीचे से लपक लूंगा। माधवदास जी जगन्नाथ जी के कहने पर पेड़ पर चढ़ गए। उन्होंने एक बढ़िया सा कटहल तोड़ कर जगन्नाथ जी को आवाज लगाई, मैं कटहल फेंक रहा हूं। आप पकड़ लेना। इतना कहकर उन्होंने कटहल नीचे गिरा दिया। जगन्नाथ जी तो वहां से गायब हो चुके थे और कटहल धड़ाम से जमीन पर गिर‌ गया।

कटहल गिरने की आवाज़ से राजा के सिपाही चौकन्ने हो गए और आवाज़ की दिशा में दौड़े।

लेकिन पेड़ पर माधवदास जी को बैठा देख कर सिपाही चौंक गये और तुरंत राजा को सुचना दी।

राजा तुरंत बाग में पहुंचें और माधवदास जी को पेड़ से नीचे उतारा गया। राजा ने माधवदास से कहा कि,” आपको कटहल खाने की इच्छा थी तो मुझे संदेश भिजवा देते। आपको कटहल चुराने की क्या जरूरत आन पड़ी?”

राजा की बात सुनकर माधवदास जी ने जगन्नाथ जी की सारी लीला राजा को सुना दी। सारा वृत्तांत सुनकर राजा और उनके सिपाही खूब हंसे। राजा ने कटहल का बगीचा जगन्नाथ जी के नाम कर दिया। अगले दिन जगन्नाथ जी माधवदास जी से पूछने लगे कि,” सखा बताओं फिर रात कैसी रही?”

माधवदास जी कहने लगे कि,” आप तो वहां से खाली हाथ लौट कर आ गए। लेकिन मुझे देखो मैं पूरा बगीचा ही आपके नाम लिखवा कर लाया हूं।”

ऐसे ही है जगन्नाथ जी जो अपने भक्तों की कष्टों से रक्षा करते हैं तो कभी कभी अपने भक्तों को फंसाने की लीला भी करते हैं। उस अनुपम सुख का अनुभव तो उनके परम भक्त ही कर सकते हैं।

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