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एक खूंखार डाकू vs महात्मा बुद्ध

एक बार की बात है कि मगध नाम के राज्य में अंगुलिमाल डाकू की दहशत फैली हुई थी. वह लोगों को लूटता था और फिर उनको मार देता था. लोगों को डराने के लिए वह जिसे भी मारता, उसकी एक उंगली काट लेता और उन उंगलियों की माला बनाकर पहनता.

इसलिए, उसका नाम अंगुलिमाल पड़ा. गांव के सभी लोग परेशान थे कि कैसे इस डाकू के आतंक से छुटकारा मिले. एक दिन गौतम बुद्ध उस गांव में आए. गांव के लोग उनकी आवभगत करने लगे. गौतम बुद्ध ने देखा कि गांव के लोगों में किसी बात को लेकर दहशत फैली है! तब गौतम बुद्ध ने गांव वालों से इसका कारण पूछा- ये सुनते ही गांव वालों ने अंगुलिमाल के आतंक का पूरा किस्सा उन्हें सुनाया.अगले ही दिन गौतम बुद्ध जंगल की तरफ निकल गए, गांव वालों ने उन्हें बहुत रोका पर वो नहीं माने. बुद्ध को आते देख अंगुलिमाल डाकू हाथों में तलवार लेकर खड़ा हो गया, पर बुद्ध उसकी गुफा के सामने से निकल गए, उन्होंने पलटकर भी नहीं देखा.
अंगुलिमाल डाकू उनके पीछे दौड़ा, पर दिव्य प्रभाव के कारण वो बुद्ध को पकड़ नहीं पा रहा था. थक हार कर उसने कहा- “रुको”. बुद्ध रुक गए और मुस्कुराकर बोले- मैं तो कब का रुक गया पर तुम कब ये हिंसा रोकोगे. अंगुलिमाल ने कहा- सन्यासी तुम्हें मुझसे डर नहीं लगता. सारा मगध मुझसे डरता है. तुम्हारे पास जो भी चीजें है निकाल दो वरना, जान से हाथ धो बैठोगे. मैं इस राज्य का सबसे शक्तिशाली व्यक्ति हूं. बुद्ध जरा भी नहीं घबराए और बोले- मैं ये कैसे मान लूं कि तुम ही इस राज्य के सबसे शक्तिशाली व्यक्ति हो. तुम्हें ये साबित करके दिखाना होगा.
अंगुलिमाल बोला बताओ- “कैसे साबित करना होगा?”. बुद्ध ने कहा- “तुम उस पेड़ से दस पत्तियां तोड़ कर लाओ”. अंगुलिमाल ने कहा- बस इतनी सी बात, “मैं तो पूरा पेड़ उखाड़ सकता हूं”. अंगुलिमाल ने दस पत्तियां तोड़कर ला दीं. बुद्ध ने कहा- अब इन पत्तियों को वापस पेड़ पर जाकर लगा दो.

अंगुलिमाल ने हैरान होकर कहा- टूटे हुए पत्ते कहीं वापस लगते हैं क्या ? तो बुद्ध बोले – जब तुम इतनी छोटी सी चीज को वापस नहीं जोड़ सकते तो तुम सबसे शक्तिशाली कैसे हुए ?
यदि तुम किसी चीज को जोड़ नहीं सकते तो कम से कम उसे तोड़ो मत, यदि किसी को जीवन नहीं दे सकते तो उसे मृत्यु देने का भी तुम्हें कोई अधिकार नहीं है. ये सुनकरअंगुलिमाल को अपनी गलती का एहसास हो गया. और वह बुद्ध का शिष्य बन गया. और उसी गांव में रहकर लोगों की सेवा करने लगा. आगे चलकर यही अंगुलिमाल बहुत बड़ा संन्यासी बना और अहिंसका के नाम से प्रसिद्ध हुआ. इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि कोई भी इंसान कितना ही बुरा क्यों न हो, वह बदल सकता है.

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