यह कथा पद्म पुराण की एक प्रसिद्ध लोकगाथा है, जो भक्ति और विश्वास की शक्ति को दर्शाती है। यह कहानी है गोपाल नाम के एक अनपढ़ चरवाहे की, जिसकी श्री कृष्ण के प्रति अटूट श्रद्धा ने स्वयं भगवान को उसके समक्ष प्रकट होने के लिए विवश कर दिया।
कमलावती नगरी में गोपाल नाम का एक भोला-भाला ग्वाला रहता था।वह पढ़ा-लिखा नहीं था और न ही उसे धर्म-ग्रंथों का कोई ज्ञान था। उसका जीवन बहुत ही सरल था – दिनभर गाय चराना और भगवान श्री कृष्ण के नाम का सिमरन करना। उसकी कृष्ण भक्ति निश्छल और गहरी थी। वह प्रतिदिन भोजन करने से पहले प्रेमपूर्वक अपने भोजन का भोग भगवान को अर्पित करता था।
एक दिन उसके गाँव से एक संत गुजर रहे थे। गोपाल ने उनकी सेवा की, जिससे प्रसन्न होकर संत ने उसे गुरु-मंत्र दिया और उपदेश दिया, “गोपाल, भगवान कण-कण में विद्यमान हैं। तुम जो भी भोजन करो, पहले अपने इष्टदेव गोविंद (श्री कृष्ण) को अर्पित करो, फिर प्रसाद के रूप में उसे ग्रहण करो।”
गोपाल ने अपने गुरु के वचनों को अक्षरशः सत्य मान लिया।अपनी सरलता में, उसे लगा कि जैसे हम और आप भोजन करते हैं, वैसे ही भगवान भी आकर भोजन करेंगे।अगले दिन से, वह अपनी रोटी लेकर एक पेड़ के नीचे बैठ गया और पुकारने लगा, “आओ गोविंद, भोग लगाओ।” उसने सुबह से शाम तक प्रतीक्षा की, पर कृष्ण नहीं आए। गुरु की आज्ञा का पालन करते हुए, गोपाल ने बिना भोग लगाए अन्न का एक दाना भी ग्रहण नहीं किया और भूखा ही सो गया।
यह क्रम कई दिनों तक चलता रहा। गोपाल प्रतिदिन अपनी सूखी रोटी लेकर कृष्ण को पुकारता और उनके न आने पर भूखा रह जाता। उसकी भूख-प्यास और कमजोरी बढ़ती जा रही थी, लेकिन उसकी भक्ति और विश्वास तिल भर भी कम नहीं हुआ। वह व्याकुल होकर कहता, “हे प्रभु! मेरे गुरु ने कहा है कि आप हर जगह हैं। फिर आपको मेरी पुकार क्यों नहीं सुनाई देती? क्या मुझसे कोई भूल हो गई?”
सत्ताईस दिन बीत गए, गोपाल का शरीर अत्यंत दुर्बल हो चुका था, लेकिन उसका निश्चय अटल था।उसकी निश्छल और अटूट भक्ति देखकर अंततः भगवान श्री कृष्ण का हृदय द्रवित हो उठा। मुरली मनोहर श्याम सुंदर स्वयं उसके सामने प्रकट हो गए।गोशाला में अचानक एक दिव्य प्रकाश फैल गया और गोपाल ने अपने सामने मनमोहक छवि वाले श्री कृष्ण को खड़े देखा।
भगवान ने मुस्कुराते हुए कहा, “गोपाल, मैं तुम्हारी प्रेम भरी पुकार सुनकर आ गया हूँ। लाओ, क्या लाए हो मेरे लिए?” गोपाल की आँखों से आनंद के आँसू बहने लगे। उसने कांपते हाथों से अपनी सूखी रोटियाँ भगवान को अर्पित कीं। श्री कृष्ण ने बड़े प्रेम से वे रोटियाँ खाईं और कहा, “गोपाल, मैं किसी छप्पन भोग का भूखा नहीं हूँ, मैं तो केवल सच्चे प्रेम और निश्छल भक्ति का भूखा हूँ।” भगवान ने कहा कि मुझे त्रिभुवन का कोई भोग प्रसन्न नहीं कर सकता, मैं तो ऐसे ही प्रेम से दिए गए अन्न की चाह रखता हूँ।
इस प्रकार, एक अनपढ़ चरवाहे ने अपने गुरु के वचनों में अटूट विश्वास और श्री कृष्ण के प्रति अपनी अनन्य भक्ति के बल पर स्वयं भगवान के दर्शन प्राप्त किए और उनकी कृपा का पात्र बना। यह कथा हमें सिखाती है कि सच्ची भक्ति किसी ज्ञान या कर्मकांड की मोहताज नहीं होती, वह तो बस हृदय की सरलता और अटूट विश्वास से ही प्राप्त होती है।
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