विजयदशमी के पावन पर्व पर नीलकंठ पक्षी का दर्शन अत्यंत शुभ और भाग्यवर्धक माना जाता है। सदियों पुरानी इस मान्यता के चलते दशहरे के दिन लोग इस नीले कंठ वाले पक्षी की एक झलक पाने को उत्सुक रहते हैं, ताकि उनका आने वाला वर्ष मंगलमय हो।
लोक मान्यताओं और धर्मशास्त्रों के अनुसार, नीलकंठ पक्षी को साक्षात भगवान शिव का स्वरूप माना गया है। श्रीमद्भागवत के आठवें अध्याय में वर्णित एक कथा के अनुसार, समुद्र मंथन के समय जब हलाहल नामक विष निकला, तो सृष्टि की रक्षा के लिए भगवान शिव ने उस विष का पान कर लिया।विष के प्रभाव से उनका कंठ नीला पड़ गया और तभी से वे ‘नीलकंठ’ कहलाए। इसी कारण इस पक्षी को पृथ्वी पर भगवान शिव का प्रतिनिधि माना जाता है।
इस परंपरा का गहरा संबंध भगवान श्रीराम की रावण पर विजय से भी है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, रावण के साथ अंतिम युद्ध से पहले भगवान श्रीराम ने नीलकंठ पक्षी के दर्शन किए थे। इस दर्शन को शुभ संकेत मानकर उन्होंने युद्ध का आरंभ किया और अंततः विजय प्राप्त की। इसीलिए विजयदशमी को जीत का पर्व कहा जाता है और इस दिन नीलकंठ का दर्शन विजय का प्रतीक माना जाता है।
एक अन्य मान्यता के अनुसार, रावण वध के पश्चात भगवान राम पर ब्रह्महत्या का पाप लगा था। इस पाप से मुक्ति पाने के लिए उन्होंने लक्ष्मण के साथ भगवान शिव की आराधना की। तब भगवान शिव ने नीलकंठ पक्षी के रूप में उन्हें दर्शन दिए और पाप से मुक्त किया।
दशहरे के दिन नीलकंठ के दर्शन से घर में धन-धान्य की वृद्धि होती है और साल भर शुभ कार्यों का सिलसिला बना रहता है। ऐसी मान्यता भी है कि यदि किसी को दशहरे पर नीलकंठ के दर्शन हो जाएं, तो उसका भाग्य चमक जाता है और उसे हर कार्य में सफलता मिलती है। एक प्रसिद्ध लोकोक्ति भी है, “नीलकंठ के दर्शन पाए, घर बैठे गंगा नहाए।”
इस प्रकार, दशहरे के दिन नीलकंठ पक्षी का दर्शन न केवल एक प्राचीन परंपरा है, बल्कि यह भगवान राम की विजय और भगवान शिव की कृपा का भी प्रतीक है, जो जीवन में सकारात्मकता, समृद्धि और सफलता का संदेश देता है। यह परंपरा सांस्कृतिक और पर्यावरणीय महत्व भी रखती है, क्योंकि नीलकंठ पक्षी को किसानों का मित्र भी माना जाता है जो फसलों को कीटों से बचाता है।
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