देहरादून: एक गाँव में एक बहुत ही कुशल मूर्तिकार रहता था। उसे पत्थर में छुपी मूरत को पहचानने की अद्भुत कला आती थी। एक दिन वह जंगल से गुजर रहा था, जहाँ उसे एक बहुत ही सुंदर पत्थर दिखाई दिया। उसने निश्चय किया कि वह इस पत्थर से भगवान की एक भव्य प्रतिमा बनाएगा।
मूर्तिकार ने अपने औजार निकाले और छेनी-हथौड़ी से पत्थर पर काम शुरू कर दिया। जैसे ही छेनी और हथौड़ी की तीखी चोट पत्थर पर पड़ती, उसे असहनीय पीड़ा होती। कुछ देर तो पत्थर ने उस दर्द को बर्दाश्त किया, पर जल्द ही उसका धैर्य जवाब दे गया।
वह दर्द से कराहते हुए बोला, “बस करो! मुझसे यह दर्द और सहन नहीं होता। मुझे मेरे हाल पर छोड़ दो और यहाँ से चले जाओ।”
मूर्तिकार ने प्यार से समझाया, “थोड़ा धैर्य रखो। मैं तुम्हारे अंदर छिपी सुंदरता को बाहर निकाल रहा हूँ। यदि तुम आज यह थोड़ा सा दर्द सह लोगे, तो कल युगों-युगों तक लोग तुम्हारी पूजा करेंगे। दूर-दूर से भक्त तुम्हारे दर्शन करने आएँगे और तुम्हारा जीवन सम्मान से भर जाएगा।”
यह कहकर मूर्तिकार ने जैसे ही अपने औजार उठाए, पत्थर क्रोधित होकर चिल्लाया, “मुझे ऐसा कोई सम्मान नहीं चाहिए जिसके लिए इतनी पीड़ा सहनी पड़े। मैं जैसा हूँ, वैसा ही ठीक हूँ। मैं एक पल की भी तकलीफ और नहीं सह सकता!”
मूर्तिकार समझ गया कि यह पत्थर अपनी मूर्खता के कारण एक सुनहरा अवसर खो रहा है। उसने उस पत्थर को वहीं छोड़ दिया और आगे बढ़ गया।
कुछ दूर जाकर उसे एक और साधारण सा पत्थर मिला। मूर्तिकार ने उस पर काम शुरू किया। इस पत्थर ने भी वही दर्द सहा, लेकिन उसने उस पीड़ा को धैर्यपूर्वक सहन किया, क्योंकि उसे मूर्तिकार पर विश्वास था। वह जानता था कि यह अस्थायी दर्द उसे स्थायी सम्मान दिलाएगा। देखते ही देखते, वह पत्थर भगवान की एक भव्य और सजीव मूर्ति में बदल गया।
उस मूर्ति को पास के एक बड़े मंदिर में पूरी विधि-विधान से स्थापित किया गया। अब लोग दूर-दूर से उसके दर्शन करने आते, उसे फूल-माला चढ़ाते और उसकी पूजा करते।
एक दिन, उसी पहले पत्थर को भी मंदिर में लाया गया और उसे मंदिर के प्रवेश द्वार के एक कोने में रख दिया गया। अब जब भी कोई भक्त मंदिर में नारियल चढ़ाने आता, तो उसे फोड़ने के लिए उसी पत्थर का इस्तेमाल करता। हर चोट पर वह पत्थर चीखता, पर उसकी सुनने वाला कोई नहीं था।
अब वह मन ही मन पछताता और सोचता, “काश! मैंने उस दिन मूर्तिकार की बात मान ली होती। कुछ समय का दर्द सह लेता तो आज जीवन भर इस तरह अपमानित होकर चोटें न खानी पड़तीं।”
शिक्षा:
इस कहानी से यह शिक्षा मिलती है कि जीवन में मिलने वाली छोटी-छोटी तकलीफों और संघर्षों से घबराना नहीं चाहिए। आज की कड़ी मेहनत और अनुशासन ही हमारे उज्ज्वल भविष्य का निर्माण करते हैं। जो लोग आज के आराम के लिए संघर्ष से बचते हैं, उन्हें भविष्य में अधिक कष्ट उठाना पड़ता है।
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