नई दिल्ली: सनातन धर्म के अनुसार चार युग होते हैं जैसे कि सतयुग, त्रेता युग, द्वापर युग और कलियुग और अभी का जो युग चल रहा है वह कलयुग। युग का अर्थ होता है कालचक्र या काल अवधि। हिंदू धर्म के अनुसार 3 युग बीत चुके हैं और अभी चौथा युग यानी कि कल युग चल रहा है और समय चक्र के अनुसार जब कलयुग समाप्त हो जाएगा तब फिर सतयुग का आरंभ होगा इसी तरह चारों युग अपने कालचक्र के अनुसार चलते रहते हैं। किसी भी युग का अर्थ होता है कि उस युग में किस प्रकार व्यक्तिगत जीवन, आयु, और उसमे होने वाले मनुष्यों की ऊंचाई, और उस में होने वाले भगवान के अवतारों के बारे में जानना जो युग परिवर्तन के बाद बदल जाते हैं तो चलिए जानते हैं?
सनातन धर्म का सबसे प्रथम युग सतयुग है इस युग की बहुत सी विशेषताएं हैं इस युग में पाप की मात्रा 0% होती है यानि की सीधे शब्दों में कहे तो इस युग में पाप की मात्रा ना के बराबर होता है। इस युग यानि कि सतयुग में पुण्य की मात्रा धर्म का 4 भाग यानी कि 100% होती है। मतलब कि इस युग में पुण्य को अधिक महत्व दिया गया है। इस युग में भगवान विष्णु ने मत्स्य, वराह, नर्सिंग, कुर्म जैसे अवतार लिए है यह सभी अवतारों अमानवीय अवतार है। यह सभी अवतार धर्म की रक्षा के लिए राक्षसों का वध करने, वेदों का उद्धार करने और पृथ्वी की रक्षा करने के लिए किया है। इस युग की मुद्रा रत्न की होती थी जैसे- हीरे, मोती, पन्ना,नीलम,पुखराज। इस युग यानी कि सतयुग के बर्तन स्वर्ण धातु के बने होते थे और यह भी माना जाता है कि इस युग में मनुष्य की आयु 100000 वर्ष होती थी और उसकी लंबाई 40 से 45 फीट होते थे। इस युग की आयु 1728000 साल होती है इस युग में सत्य के चारों स्तंभ थे। जब सतयुग की आयु पूर्ण हुई तब आया त्रेता युग चलिए इस युग के बारे में जानते है।
जब सतयुग समाप्त हो गया तब त्रेता युग का आरंभ हुआ और यह युग सनातन धर्म का दूसरा युग माना जाता है। इस युग में धर्म की मात्रा 75% और पाप की मात्रा 25% होती है जो कि कालचक्र के अनुसार धर्म का 4 में से एक अस्थभ नष्ट हो जाता है इस युग में। इस युग में यानी कि त्रेता युग में भगवान विष्णु ने वामन, परशुराम, और अंतिम में श्री राम के अवतार लिए है। इन अवतारों को लेने का कारण था कि वामन के रूप में राजा बलि का उद्धार करना, परशुराम के रूप में धर्मपथ से भटके हुए दुष्ट क्षत्रियों का नाश करके सबको धर्म पथ पर लाना , श्री राम के रूप में रावण का संहार करके इस समस्त पृथ्वी पर से रावण का आतंक मुक्त करना। इस युग में मनुष्य की आयु 10000 वर्ष रह गई थी और मनुष्यों की लंबाई घटकर 21 फीट तक रह गई थी क्योंकि इस युग से पाप की मात्रा बढ़ने लगी थी। इस युग की मुद्रा स्वर्ण की होती थी और पात्र यानी कि बर्तन चांदी की होती थी और इस युग की आयु 1296000 वर्ष होती है जो समय अनुपात के अनुसार घट जाती है। इसके बाद आता है द्वापर युग
त्रेता युग की आयु पूर्ण होने पर द्वापर युग की शुरुआत होती है। द्वापर युग को सनातन धर्म का तीसरा युग माना गया है इस युग का तीर्थ स्थल कुरुक्षेत्र है। इस युग में पाप की मात्रा बढ़कर 50 प्रतिशत और पुण्य की मात्रा घटकर 50 प्रतिशत हो जाती है इस युग में धर्म का आधा भाग यानी कि 2 स्तंभ खत्म हो जाता है। इस युग में मनुष्य की आयु घटकर 1000 वर्ष रह गई थी और मनुष्य की लंबाई 10 से 11 फीट रह गई थी। इस युग की मुद्रा चांदी की होती थी और इसके पात्र तांबे के होते थे। इस युग की आयु 864000 वर्ष होती है। इस युग के अंत में भगवान विष्णु ने श्री कृष्ण के रूप ने अवतार लिया था और इस पृथ्वी पर से अधर्म का साम्राज्य मिटाया था और फिर पुनः धर्म का साम्राज्य स्थापित किया। उसके कुछ वर्षों बाद कलयुग की शुरुआत हुई।
द्वापर युग के समाप्त होने के बाद अर्जुन के पौत्र राजा परीक्षित के शासनकाल में कलयुग की शुरुआत हुई। कलयुग सनातन धर्म का चौथा और अंतिम युग कहा गया है। कलयुग को मानव जाति के लिए सबसे श्रापित युग भी कहा गया है। इस युग में पाप की मात्रा 75% और पुण्य की मात्रा 25% ही रह जाएगा, इस युग में धर्म का 4 स्तंभ में से 3 स्तंभ खत्म हो जाएगा और धर्म का एक भाग ही रह जाएगा। इस युग यानि कि कलयुग की आयु 432000 साल है। इस युग में मनुष्य की आयु 100 वर्ष और उसकी लंबाई 5 से 6 फीट तक बताई गई है जो कि कलयुग के अंत आते -आते मनुष्य की आयु 10 से 12 वर्ष और इसकी लंबाई 5 से 7 इंच तक ही रह जाएगी, जो कि अभी कलयुग का प्रथम चरण ही चल रहा है।
इस युग के तीर्थ स्थल गंगा नदी है और इस युग की मुद्रा लोहे और कागज की बनी होंगी और इस युग के पात्र मिट्टी का होगा। इस युग अंत में भगवान विष्णु के कल्कि अवतार का जन्म होगा जो कि इस संसार सा अधर्म का विनाश करके पुनः सतयुग की स्थापना करेगा।
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