DELHI

सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला: 7 साल वकालत कर चुके न्यायिक अधिकारी भी अब सीधे बन सकेंगे जिला जज

5 न्यायाधीशों की पीठ ने कहाकि “अधीनस्थ न्यायिक सेवा में भर्ती से पहले न्यायिक अधिकारी का बार में 7 वर्ष का अनुभव होना चाहिए.

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को एक ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए जिला न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए पात्रता मानदंडों को व्यापक बना दिया है।मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई की अध्यक्षता वाली पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने फैसला सुनाया कि वे न्यायिक अधिकारी, जिन्होंने न्यायिक सेवा में आने से पहले एक वकील के रूप में कम से कम सात साल की प्रैक्टिस पूरी कर ली है, वे भी सीधी भर्ती के माध्यम से जिला न्यायाधीश के पद के लिए पात्र होंगे।

यह फैसला दशकों से चले आ रहे एक महत्वपूर्ण कानूनी सवाल का समाधान करता है और अधीनस्थ अदालतों में कार्यरत कई न्यायिक अधिकारियों के लिए उच्च न्यायिक सेवा में जाने का मार्ग प्रशस्त करता है।

क्या कहा सुप्रीम कोर्ट ने?

पीठ ने अपने फैसले में स्पष्ट किया कि संविधान के अनुच्छेद 233 की समग्र रूप से व्याख्या की जानी चाहिए। न्यायालय ने कहा, “न्यायिक अधिकारी, जो अधीनस्थ न्यायिक सेवा में भर्ती होने से पहले बार (वकालत) में 7 वर्ष का अनुभव पूरा कर चुके हैं, वे सीधी भर्ती प्रक्रिया के तहत जिला न्यायाधीश के पद के लिए चयन प्रक्रिया में नियुक्त होने के हकदार होंगे।”

इसके अतिरिक्त, न्यायालय ने यह भी व्यवस्था दी है कि कोई भी व्यक्ति जिसके पास अधिवक्ता या न्यायिक अधिकारी के रूप में संयुक्त रूप से 7 वर्ष या उससे अधिक का अनुभव है, वह भी जिला न्यायाधीश के रूप में नियुक्ति के लिए पात्र होगा।

समान अवसर सुनिश्चित करने के लिए, पीठ ने अधिवक्ताओं और न्यायिक अधिकारियों, दोनों के लिए जिला न्यायाधीश के पद पर नियुक्ति के लिए न्यूनतम आयु आवेदन की तिथि को 35 वर्ष निर्धारित की है।पात्रता का निर्धारण आवेदन के समय किया जाएगा, न कि नियुक्ति के समय।

‘धीरज मोर’ मामले का फैसला पलटा

इस फैसले ने सुप्रीम कोर्ट के 2020 के ‘धीरज मोर बनाम दिल्ली उच्च न्यायालय’ मामले में दिए गए निर्णय को प्रभावी रूप से पलट दिया है।धीरज मोर मामले में, तीन-न्यायाधीशों की पीठ ने व्यवस्था दी थी कि न्यायिक सेवा में कार्यरत अधिकारी बार कोटे के तहत सीधी भर्ती के लिए आवेदन करने के पात्र नहीं हैं, भले ही उनके पास सात साल का वकालत का अनुभव हो। मौजूदा संविधान पीठ ने उस व्याख्या को “अन्याय” करार दिया और कहा कि यह संविधान के अनुच्छेद 233 की सही व्याख्या नहीं है। पीठ ने कहा, “यदि हम कानूनी स्थिति को सही करने में विफल रहते हैं, तो हम दशकों से किए जा रहे अन्याय को जारी रखेंगे।”

राज्यों को नियम बदलने के निर्देश

शीर्ष अदालत ने सभी राज्य सरकारों को अपने संबंधित उच्च न्यायालयों के परामर्श से तीन महीने के भीतर इस फैसले के अनुरूप अपने नियमों में संशोधन करने का निर्देश दिया है।न्यायालय ने इस दलील को भी खारिज कर दिया कि सीधी भर्ती के लिए 25% कोटा विशेष रूप से वकीलों के लिए आरक्षित है।

यह फैसला भविष्य में होने वाली नियुक्तियों पर लागू होगा, सिवाय उन मामलों के जहां उच्च न्यायालयों या शीर्ष अदालत द्वारा अंतरिम आदेश पारित किए गए हों। इस महत्वपूर्ण पीठ में मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई के अलावा न्यायमूर्ति एम.एम. सुंदरेश, न्यायमूर्ति अरविंद कुमार, न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा और न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन भी शामिल थे।

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