देहरादून: उत्तराखंड इस समय मानसून और पश्चिमी विक्षोभ के दोहरे प्रभाव का सामना कर रहा है, जिसके कारण प्रदेश के कई हिस्सों में अत्यधिक और तीव्र बारिश हो रही है। इस मौसमी जुगलबंदी ने राज्य के लिए गंभीर चुनौतियाँ खड़ी कर दी हैं, जिससे सामान्य जनजीवन अस्त-व्यस्त हो गया है और प्रशासन को हाई अलर्ट पर रखा गया है।
मौसम विशेषज्ञों के अनुसार, मानसून और पश्चिमी विक्षोभ के एक साथ सक्रिय होने से बारिश की तीव्रता काफी बढ़ गई है। जलवायु विशेषज्ञ डॉ. माधवन नायर राजीवन ने बताया कि हाल के वर्षों में पश्चिमी विक्षोभ की आवृत्ति बढ़ी है और वे अक्सर मानसून प्रणाली के साथ मिल जाते हैं, जिससे हिमालयी क्षेत्र में तीव्र वर्षा हो रही है। इस असामान्य मौसमी पैटर्न के चलते कुछ क्षेत्रों में रिकॉर्ड तोड़ बारिश दर्ज की गई है।
इस साल मानसून के दौरान प्रदेशभर में अब तक 1237.1 मिमी वर्षा हुई है, जो 999.8 मिमी के सामान्य आंकड़े से कहीं ज़्यादा है। बागेश्वर जिले में स्थिति विशेष रूप से गंभीर है, जहाँ सामान्य से 246% अधिक वर्षा दर्ज की गई है। इसके अलावा चमोली, टिहरी, हरिद्वार और देहरादून जैसे जिलों में भी सामान्य से बहुत अधिक बारिश हुई है। कुछ मौसम वैज्ञानिक मौजूदा परिस्थितियों की तुलना 2013 की केदारनाथ आपदा से कर रहे हैं, जब इसी तरह के मौसमी संयोग ने बड़ी तबाही मचाई थी।
इस अनवरत और मूसलाधार बारिश के कारण प्रदेश भर में भूस्खलन, फ्लैश फ्लड और बादल फटने की घटनाओं में वृद्धि हुई है। कई प्रमुख राजमार्गों सहित सैकड़ों सड़कें अवरुद्ध हो गई हैं, जिससे कई गांवों का संपर्क जिला मुख्यालयों से टूट गया है। नदियों का जलस्तर खतरे के निशान से ऊपर बह रहा है, जिससे निचले इलाकों में बाढ़ का खतरा पैदा हो गया है और कई गांवों को खाली कराया जा रहा है। इस आपदा से कृषि और व्यापार को भी भारी नुकसान पहुँचा है, और एक अनुमान के अनुसार मानसूनी बारिश से अब तक लगभग 5,000 करोड़ रुपये का नुकसान हो चुका है।
इन गंभीर चुनौतियों को देखते हुए, प्रशासन पूरी तरह से सतर्क है। मौसम विभाग द्वारा देहरादून, नैनीताल, रुद्रप्रयाग, उत्तरकाशी, बागेश्वर, चंपावत और ऊधमसिंह नगर सहित कई जिलों के लिए भारी बारिश का ‘ऑरेंज’ और ‘रेड’ अलर्ट जारी किया गया है।आपदा प्रबंधन विभाग और जिला प्रशासन ने लोगों से नदियों और जलप्रवाह वाले क्षेत्रों से दूर रहने, अनावश्यक यात्रा से बचने और प्रशासन द्वारा जारी चेतावनियों का सख्ती से पालन करने की अपील की है। विशेषज्ञों ने भविष्य में ऐसी घटनाओं की आवृत्ति और परिमाण में वृद्धि की आशंका जताते हुए पूर्व चेतावनी प्रणालियों को मजबूत करने, मौसम वेधशालाओं में सुधार करने और स्वचालित मौसम केंद्रों का नेटवर्क बढ़ाने की आवश्यकता पर जोर दिया है।
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