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अपरा एकादशी 2025: जानें सही तिथि, पूजा का शुभ मुहूर्त, पारण समय और इस व्रत का विशेष महत्व

हिंदू धर्म में एकादशी व्रत का एक महत्वपूर्ण स्थान है और यह भगवान विष्णु को समर्पित है। ऐसी मान्यता है कि एकादशी के दिन श्रद्धापूर्वक उपवास करने और विधि-विधान से लक्ष्मी-नारायण की पूजा करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। प्रत्येक माह में दो एकादशी तिथियां होती हैं, और ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष में पड़ने वाली एकादशी को ‘अपरा एकादशी’ या ‘अचला एकादशी’ के नाम से जाना जाता है। यह व्रत जीवन में अपार खुशियां, वैभव और धन-धान्य की वृद्धि प्रदान करने वाला माना गया है।[1] आइए, अपरा एकादशी 2025 की पूजा के शुभ मुहूर्त, पारण समय और इसके महत्व को विस्तार से जानते हैं।

अपरा एकादशी 2025: तिथि और पूजा का शुभ मुहूर्त
इस वर्ष अपरा एकादशी का व्रत 23 मई, शुक्रवार को रखा जाएगा।

  • एकादशी तिथि का आरंभ: 23 मई 2025 को प्रातः 01 बजकर 12 मिनट से।
  • एकादशी तिथि समाप्त: 23 मई 2025 को रात्रि 10 बजकर 29 मिनट पर।
  • पूजा के लिए ब्रह्म मुहूर्त: सुबह 04 बजकर 04 मिनट से सुबह 04 बजकर 45 मिनट तक।
  • अभिजित मुहूर्त: सुबह 11 बजकर 51 मिनट से दोपहर 12 बजकर 45 मिनट तक।

इन शुभ मुहूर्तों में भगवान विष्णु की पूजा करना अत्यंत फलदायी माना जाता है।

अपरा एकादशी 2025: पारण मुहूर्त
एकादशी व्रत में पारण का समय बहुत महत्वपूर्ण होता है और इसे शुभ मुहूर्त में ही करना चाहिए।

  • पारण का दिन: 24 मई 2025, शनिवार।
  • पारण के लिए शुभ मुहूर्त: सुबह 06 बजकर 01 मिनट से सुबह 08 बजकर 39 मिनट तक।
  • द्वादशी तिथि समाप्त होने का समय (पारण के दिन): सुबह 07 बजकर 20 मिनट।

शास्त्रों के अनुसार, एकादशी व्रत का पारण द्वादशी तिथि के भीतर करना उत्तम होता है। यदि द्वादशी तिथि सूर्योदय से पहले समाप्त हो जाए तो भी एकादशी व्रत का पारण सूर्योदय के बाद ही किया जाता है।

अपरा एकादशी व्रत का महत्व
अपरा एकादशी का व्रत भक्तों को अक्षय पुण्य प्रदान करने वाला माना गया है।

  • ऐसी मान्यता है कि जो पुण्यफल कार्तिक मास में स्नान करने या गंगाजी के तट पर पितरों का पिंडदान करने से मिलता है, वही फल अपरा एकादशी का व्रत करने से भी प्राप्त होता है।
  • इसके अतिरिक्त, गोमती नदी में स्नान, कुंभ में श्री केदारनाथ जी के दर्शन, बद्रिकाश्रम में निवास और सूर्य-चंद्र ग्रहण के समय कुरुक्षेत्र में स्नान करने के समान ही इस एकादशी का महत्व है।
  • यह व्रत व्यक्ति को पापों से मुक्ति दिलाकर जीवन में सुख-समृद्धि और प्रसिद्धि प्रदान करता है।

पूजा विधि एवं नियम
अपरा एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा विधिपूर्वक करनी चाहिए।

  • व्रत का पालन दशमी तिथि से ही शुरू हो जाता है, जिसमें भोजन और आचार-विचार में संयम बरता जाता है।
  • एकादशी के दिन प्रातःकाल स्नान आदि से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करें और व्रत का संकल्प लें।
  • भगवान विष्णु की प्रतिमा या चित्र को स्थापित कर धूप, दीप, पुष्प, नैवेद्य, फल और चंदन अर्पित करें।
  • “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” मंत्र का जाप करना विशेष लाभकारी होता है।
  • व्रत के दौरान मन को स्वच्छ और विचारों को शुद्ध रखना चाहिए।
  • अगले दिन द्वादशी को शुभ मुहूर्त में पूजा कर ब्राह्मणों या जरूरतमंदों को भोजन कराने के बाद स्वयं व्रत का पारण करें।

अपरा एकादशी का व्रत श्रद्धा और भक्ति भाव से करने पर भगवान विष्णु की असीम कृपा प्राप्त होती है और जीवन में अपार सफलता मिलती है।

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